मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

राहुल को राहत

07:46 AM Aug 07, 2023 IST

आखिरकार राहुल गांधी को मानहानि के एक मामले में देश की शीर्ष अदालत से राहत मिल ही गई। दरअसल, एक चुनावी सभा में ‘मोदी सरनेम’ को लेकर की गई उनकी विवादित टिप्पणी के बाद उनके खिलाफ गुजरात के एक विधायक ने मानहानि का वाद दायर किया था। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह तथ्य पुष्ट हुआ है कि शीर्ष अदालत भारत में लोकतंत्र की संरक्षक की भूमिका में विद्यमान है। इस धारणा पर जनता के विश्वास को भी बल मिला है। अदालत के इस निर्णय के निहितार्थ यह भी हैं कि राजनीति में अपने विरोधियों के साथ हिसाब-किताब पूरा करने में मानहानि कानून का बेजा इस्तेमाल होता है। निस्संदेह, ऐसे मामलों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी अनावश्यक अंकुश लगता है। जिसे लोकतंत्र के हित में कदापि नहीं कहा जा सकता। राजनीतिक पंडित 23 मार्च को दिये गये सूरत अदालत के निर्णय की तार्किकता को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। दरअसल,इसमें राहुल गांधी को एक अज्ञात समूह के खिलाफ राजनीतिक बयान के लिये दोषी ठहराया गया था। वैसे भी दोष सिद्धि को यदि सही मान लिया जाये तो बिना किसी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को आपराधिक मानहानि के मामले में दो साल की कैद की अधिकतम सजा देना तार्किक नहीं कहा जा सकता। दरअसल, इस मामले में शीर्ष अदालत ने कहा भी है कि ट्रायल कोर्ट के जज द्वारा अधिकतम सजा देने का कोई विशेष कारण नहीं बताया गया है।
ऐसे में तर्क दिया गया कि इस मानहानि मामले में यदि सजा की अवधि एक दिन भी कम होती तो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत उन्हें तत्काल अयोग्य घोषित करने की जरूरत नहीं पड़ती। दलील दी गई कि मानहानि के लिये एक जमानती, गैर संज्ञेय और समझौता योग्य अपराध के मामले में अधिकतम सजा देना अनुचित है। ऐसे ही निचली अदालत के अधिकतम सजा देने के आदेश को सही ठहराने में सूरत सत्र न्यायालय और गुजरात उच्च न्यायालय की भूमिका पर सवाल उठे हैं। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निचली अदालतों के फैसलों से हुई ऊंच-नीच की भरपाई हुई है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि राहुल गांधी के बयान को भी अच्छा नहीं माना जा सकता। यह भी कि सार्वजनिक जीवन में सक्रिय एक व्यक्ति को भाषण देते वक्त सावधान रहना चाहिए। बहरहाल, इस फैसले से राहुल गांधी को राहत मिलेगी। अब उनकी लोकसभा सदस्यता वापस पाने की राह खुल गई है। लेकिन इसके बावजूद यह घटनाक्रम तमाम राजनेताओं के लिये बड़ा सबक है कि ‍वे अपने प्रतिद्वंद्वियों की आलोचना करने में संयम का परिचय दें। इस तरह के घटनाक्रम समाज में अच्छा संदेश नहीं देते। राजनेताओं की यह आक्रामकता कालांतर समाज में नकारात्मक प्रवृत्तियों को ही बढ़ावा देती है। बहरहाल, सामाजिक सद‍्भावना और समरसता के लिए जरूरी है कि राजनेताओं की बयानबाजी में संयम हो। खासकर सार्वजनिक जीवन में बड़े दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनेता ऐसा व्यवहार करें जो आने वाली पीढ़ी के लिये मार्गदर्शक साबित हो। यह वक्त की जरूरत भी है।

Advertisement

Advertisement