समानता पर रार
भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधन में प्रधानमंत्री द्वारा समान नागरिक संहिता की वकालत के बाद लगता है जैसे विवादों का ‘भानुमति का पिटारा’ खुल गया है। यूं तो समान नागरिक संहिता का मुद्दा भाजपा के प्रमुख एजेंडे में शामिल रहा है, लेकिन हाल ही में विधि आयोग द्वारा सार्वजनिक व मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों को अपनी आपत्ति दाखिल करने का मौका देने से यह फिर चर्चा में आया। यह आपत्ति जुलाई के मध्य तक प्रस्तुत की जानी है। निस्संदेह, इस मुद्दे को राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिये उछालने के आरोप विगत में भी लगते रहे हैं। कहा जाता है कि भाजपा इसे बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण के लिये प्रयोग करती रही है तो विपक्षी दल अल्पसंख्यकों के लिये। निस्संदेह, जिस मध्यप्रदेश के जरिये प्रधानमंत्री ने अपनी बात कही है, वहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। यहां तीन बार सत्ता में रही पार्टी की सरकार के प्रति एक वर्ग का मोहभंग होना स्वाभाविक है। ऐसे में जब विपक्षी दल चुनाव की दृष्टि से भाजपा पर समान नागरिक संहिता का मुद्दा उछालने के आरोप लगा रहे हैं तो इसकी तार्किकता की वजह है। बहरहाल, इस बयान के बाद तमाम राजनीतिक दलों में उबाल देखा जा रहा है। एक समुदाय के निजी कानूनों की वकालत करने वाले संगठन पर्सनल लॉ बोर्ड ने विधि आयोग के सामने अपनी आपत्ति दाखिल करने के प्रयास में तेजी ला दी है, बाकायदा बयान के बाद इसकी बैठक भी हुई है। यह भी अप्रत्याशित है कि तमाम राजनीतिक दलों के विरोध के बीच आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता की केंद्र सरकार की पहल का समर्थन किया है। साथ ही कहा है कि सरकार को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सभी हितधारकों से विमर्श करना चाहिए। पार्टी का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद चवालीस में वर्णित पक्षधरता का पार्टी सैद्धांतिक तौर पर समर्थन करती है। यह भी कि इस मुद्दे पर आम सहमति के साथ आगे बढ़ा जाता है तो आप इसके पक्ष में राय रखेगी।
वहीं दूसरी ओर इस मुद्दे पर कांग्रेस भी केंद्र सरकार पर हमलावर हुई है। पार्टी का मानना है कि जैसे प्रधानमंत्री एक परिवार में दो कानून होने की बात कर रहे हैं, वह समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन की सरल व्याख्या नहीं है। पार्टी की दलील है कि जहां परिवार को रक्त संबंध जोड़ते हैं,वहीं विविधता की संस्कृति वाले देश को संविधान जोड़ता है। भारत जैसे विविध संस्कृति वाले देश में इसका क्रियान्वयन एक बड़ी चुनौती है और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का अतिक्रमण है। पार्टी तथा अन्य राजनीतिक दलों का आरोप है कि भाजपा महंगाई,बेरोजगारी और हिंसक प्रतिरोध जैसे मामलों से ध्यान हटाने को नागरिक संहिता का मुद्दा उछाल रही है। पार्टी सवाल उठा रही है कि केंद्र सरकार दो पारी से सत्ता में आसीन है, तो यह मुद्दा कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव तथा आम चुनाव आने से ठीक पहले क्यों उठाया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर, जैसे कि उम्मीद थी कि पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के समान नागरिक संहिता पर स्टैंड के खिलाफ अकाली दल प्रतिक्रिया देगा, वैसा ही हुआ। दल का मानना है कि समान संहिता लागू होने का अल्पसंख्यकों व आदिवासी समाजों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। पार्टी ने 22वें विधि आयोग व संसद में इस मुद्दे पर आपत्ति दर्ज कराने के साथ ही आप पर अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाया। वहीं संहिता के समर्थक आरोप लगाते हैं कि इस मुद्दे पर आम लोगों को हकीकत का भान न होने के कारण राजनीतिक दल दुष्प्रचार करते हैं। उनका मानना है कि विधि आयोग लोगों के सुझाव प्राप्त करने के बाद नागरिक संहिता का मसौदा सार्वजनिक विमर्श के लिये पेश करे। वे एक देश में विभिन्न समुदायों के निजी कानूनों को संविधान की समानता की अवधारणा का अतिक्रमण बताते हैं। इसे महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण के लिये जरूरी बताते हैं। साथ ही संविधान में शामिल नीति-निर्देशक तत्वों में राज्यों से समान कानून की अपेक्षा को अपने तर्क का आधार बनाते हैं। बहरहाल, व्यापक सामाजिक विमर्श के बाद इस जटिल विषय का निस्तारण किया जाना चाहिए ताकि सामाजिक अशांति को हवा न मिले।