राग-रागनी
सत्यवीर नाहडि़या
हटा अँधेरा-करै सबेरा,जाणै दुनिया सारी।
धरम सिखावै-राह दिखावै, गुरुवर महिमा न्यारी।।
जनम-मरण तै पार उतारै,भरम मिटावै सारे।
म्हेर हुवै जिसपै गुरुवर की,होज्यां वारे-न्यारे।
बड़े बताग्ये सारे म्हारे,गुरु की पदवी भारी।
धरम सिखावै-राह दिखावै, गुरुवर महिमा न्यारी।।
कड़ी साधना करड़े तप तै,जा या पदबी पाई।
माया अपरम्पार गुरू की,ना जा सहज बताई।
बण ज्या उणकी दुआ दवाई,कट ज्यां कष्ट-बिमारी।
धरम सिखावै-राह दिखावै गुरुवर महिमा न्यारी।।
गुरू म्हेर तै कला सवाई,सारी होती आवैं।
आँख तीसरी उणकी खुल ज्या,जो नित गुरु नै ध्यावैं।
सदा ग्यान की ज्योत जळावैं,न्यारी ग्यान कटारी।
धरम सिखावै-राह दिखावै, गुरुवर महिमा न्यारी।।
नाम नहीं यो आम गुरू का, तीन लोक म्हं छाया।
तिन्नूँ ताप उतारणिया बस, सतगुरु एक बताया।
कह ‘नाहड़िया’ जिसनै ध्याया, गूँज उठै लयकारी।
धरम सिखावै-राह दिखावै, गुरुवर महिमा न्यारी।।