राग-रागनी
सत्यवीर नाहडि़या
चोल्ला नै बदनाम करैं ये,पाप हुवै जो भारी।
पग-पग पावैं ढोंगी बाबा, खोल बताऊँ सारी।।
एक बखत था बाबा सारे, फरज निभाया करते।
धरम-करम का मरम खोल कै, वे समझाया करते।
कदे नहीं बहकाया करते, पुज्जैं थे नर-नारी।
पग-पग पावैं ढोंगी बाबा, खोल बताऊँ सारी।।
नये दौर के न्यारे बाबा, नित जो ढोंग फलावैं।
अपणे दुक्ख मिटैं कोन्या पर, जग के दुक्ख मिटावैं।
भगत बावळे बढ़ते जावैं, ढोंग-करम न्यूँ जारी।
पग-पग पावैं ढोंगी बाबा, खोल बताऊँ सारी।।
चेल्ले कम अर चेल्ली ज्यादा, नीयत घणी डिगावैं।
कुछ दिन पाच्छै पोल खुलै तै, बंद जेळ म्हं पावैं।
भोळी जंता नै भरमावैं, बणकै खुद अवतारी।
पग-पग पावैं ढोंगी बाबा, खोल बताऊँ सारी।।
किरपा अटकी कोय उतारै, चटणी हरी खुवाकै।
कोये कष्ट मिटावै सारे, धूळी चरण दिवाकै।
कोये दे ताबीज़ बणाकै, कुछ बण ग्ये ब्योपारी।
पग-पग पावैं ढोंगी बाबा, खोल बताऊँ सारी।।
बोट्टां खात्यर नेत्ता सारे, इन्नै सीस नवावैं।
अंधभगत सभ देक्खा-देक्खी, इन्नै पुज्जे जावैं।
कह ‘नाहड़िया’ ढोंग रचावैं, कला सीख ल्यी न्यारी।
पग-पग पावैं ढोंगी बाबा, खोल बताऊँ सारी।।