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राग-रागनी

07:59 AM Jul 28, 2024 IST
राग रागनी
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सत्यवीर नाहडि़या

साढ़ गया इब साम्मण आग्या, पर साम्मण-सी बात नहीं।
मन की क्यारी-सुक्की सारी, पहलम-से हालात नहीं।।

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एक बखत था साम्मण-साम्मण, गुँज्जैं थे मलहार घणे।
पींघ-पाटड़ी लांबे लंगर, झोट्टे न्यारे त्यार घणे।
रळ-मिळ झुल्ले परिवार घणे, पर इब वै जजबात नहीं।
मन की क्यारी-सुक्की सारी, पहलम-से हालात नहीं।।

झड़ लाग्गै था साम्मण-साम्मण, न्यूँ सीळी वा पुरवाई।
एड्डी ठा-ठा बाट देखते, रै इब बरसण की भाई।
कहण लग्यी न्यूँ म्हारी ताई, सुक्कै इब रै गात नहीं।
मन की क्यारी-सुक्की सारी, पहलम-से हालात नहीं।।

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तीज-त्योहारी की सभ त्यारी, रै हुया करै थी न्यारी।
चढ़ी कढ़ाई रह थी भाई, न्यूँ बणी कोथळी प्यारी।
भागदौड़ इब मारामारी, चैन कितै दिन-रात नहीं।
मन की क्यारी-सुक्की सारी, पहलम-से हालात नहीं।।

याद सुहाळी रोज आंवती, न्यारे वै सक्करपारे।
महँगाड़े नै हाल बिगाड़ा, न्यूँ दिन म्हं दिक्खैं तारे।
कह ‘नाहड़िया’ जन-मन हारे, साम्मण इब वो साथ नहीं।
मन की क्यारी-सुक्की सारी, पहलम-से हालात नहीं।।

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