रेडियो और स्मृतियां
रौशन जसवाल ‘विक्षिप्त’
ये आकाशवाणी है...। रेडियो पर ये उद्घोषणा सुनते ही एक अजब अनुभूति का आभास होता है। मैं याद कर रहा हूं आकाशवाणी शिमला को जिससे मेरा जुड़ाव एक लम्बे समय तक उद्घोषक और समाचार वाचक के रूप में रहा। एक समय था जब रेडियो रखने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था और डाकघर में सालाना फीस जमा करवानी होती थी।
रेडियो प्रतिदिन विशेष कर प्रातःकाल और शाम को अवश्य सुना जाता। भजनों और समाचारों के लिए। आकाशवाणी पारिश्रमिक भी देता था। सायंकालीन ड्यूटी के दौरान कार्यक्रम गीत पहाड़ा रे प्रस्तुत करने में मुझे आनन्द आता था। फरमाइशी कार्यक्रम था तो श्रोताओं की फरमाइश पर पहाड़ी गीत प्रसारित किए जाते। रविवार को सैनिकों के लिए फिल्मी गीतों का फरमाइशी कार्यक्रम होता था। इस कार्यक्रम को प्रसारित करने में मुझे आनन्द की अनुभूति होती। आकाशवाणी शिमला को जब-जब याद करता हूं तो बहुत-सी आवाजें और वरिष्ठ सहयोगी याद आते हैं जिन्होंने श्रोताओं के मानसपटल पर अपनी आवाज के दम पर अपना नाम बनाया। कृष्ण कालिया का नाम उन लोगों में लिया जाता है जिन्होंने आकाशवाणी शिमला की स्थापना से कार्य किया। आकाशवाणी शिमला में तैयार किए जाने वाले नाटकों ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त की है।
एफएम के आने से प्राइमरी प्रसारण का सुना जाना जरूर कम हुआ है लेकिन प्राइमरी चैनल के प्रसारणों में लोग आज भी रुचि रखते हैं। मैं आज भी गांव की ऊंची पहाड़ी पर से रेडियो पर बज रहे पहाड़ी गीतों के कार्यक्रम में गीत सुनता हूं। मैं सदा ही आश्वस्त हूं कि रेडियो जनमानस की आवाज़ रहेगा और एक आकर्षण भी।
साभार : आपका ब्लॉग डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम