पारदर्शिता-शुचिता के प्रश्न
हाल के दिनों में देश में विभिन्न रोजगारपरक प्रतियोगी परीक्षाओं व व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने और संदेह के घेरे में आने के मामले लगातार उजागर होते रहे हैं। निश्चित रूप से सुनहरे भविष्य की आस में रात-दिन एक करने वाले प्रतियोगियों के साथ यह अन्याय बेहद कष्टदायक है। जो प्रतिभागियों का विश्वास व्यवस्था से उठाता है। मेडिकल परीक्षा की पुरानी प्रक्रिया में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिये लाई गई नई व्यवस्था भी अब सवालों के घेरे में है। यही वजह है वर्ष 2024 की नीट-यूजी परीक्षा के रिजल्ट आने पर परीक्षार्थियों में गहरा रोष व्याप्त हो गया। जिसके खिलाफ हजारों छात्रों ने कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। छात्र दोबारा प्रवेश परीक्षा आयोजित करने की मांग कर रहे हैं। बीते सोमवार इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए देश की शीर्ष अदालत ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को नोटिस देकर जवाब देने को कहा है। दरअसल, परीक्षार्थी पेपर लीक व नंबर देने में अनियमितताओं के आरोप लगा रहे हैं। कोर्ट ने सवाल उठाया है कि इस अविश्वास पैदा होने की वजह क्या है? जाहिरा तौर पर लाखों छात्रों के भविष्य से जुड़ी परीक्षा प्रणाली को संदेह से परे होना ही चाहिए। यदि व्यवस्था में कोई खामी है तो उसका निराकरण बेहद जरूरी है। दरअसल, इस संदेह की वजह यह भी है कि देश के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिये एनटीए द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता सह-प्रवेश परीक्षा यानी नीट-यूजी को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं। आरोप लगे हैं कि इस बार परीक्षा में 67 कैंडिडेट को शत-प्रतिशत अंक मिले हैं, जबकि पिछले पांच वर्षों में पूर्ण अंक पाने वालों की संख्या सिर्फ तीन थी। सवाल ग्रेस मार्क्स देने की तार्किकता को लेकर भी उठे हैं। वहीं टॉप पर आने वाले 67 छात्र चुनिंदा कोचिंग सेंटरों से जुड़े हैं। कुल मिलाकर परीक्षा की पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं। निश्चित रूप से लाखों छात्रों की उम्मीदों वाली इस देशव्यापी परीक्षा को लेकर किसी किंतु-परंतु की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए।
दरअसल, देश के विभिन्न राज्य भी इस परीक्षा प्रणाली को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। खासकर कोचिंग सेंटरों के खेल व अंग्रेजी के वर्चस्व के चलते आरोप लगाये जाते हैं। आरोप हैं कि इस परीक्षा में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले छात्रों को न्याय नहीं मिलता। तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत के कई राज्य आरोप लगाते रहे हैं कि राज्य की भाषा के छात्रों को नई परीक्षा प्रणाली से नुकसान उठाना पड़ रहा है। तमिलनाडु सरकार ने बाकायदा इस बाबत पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की थी। राज्य सरकार का आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों में तमिल भाषी छात्रों को कम जगह मिल रही है। निश्चित रूप से जहां इस परीक्षा के पेपर लीक व ग्रेस मार्क्स में अनियमितताओं को लेकर उठे सवालों के समाधान तलाशने की जरूरत है, वहीं हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के परीक्षार्थियों के साथ न्याय होना भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जब पूरे देश में हजारों छात्र पुन: परीक्षा कराने की मांग पर अड़े हैं और पूरे देश में इसके खिलाफ याचिकाएं दायर की जा रही हैं तो नीति-नियंताओं को मामले की तह तक जाना चाहिए। गत पांच मई को हुई इस परीक्षा में चौबीस लाख परीक्षार्थी शामिल होने की बात कही जा रही है तो इसके व्यापक दायरे और इससे जुड़ी आकांक्षाओं का आकलन सहज ही हो जाता है। ऐसे में बड़ी संख्या में परीक्षार्थियों को शत-प्रतिशत अंक मिलने तथा पंद्रह सौ छात्रों का अनुग्रह अंक पा जाना तार्किकता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। निस्संदेह, लाखों छात्रों के लिये परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था संदेह से मुक्त होनी चाहिए। परीक्षा की शुचिता बनाये रखने के लिये निष्पक्ष जांच जरूरी है। अन्यथा छात्रों का व्यवस्था से भरोसा उठ जाता है। नीति-नियंताओं को सोचना चाहिए कि इन्हीं अव्यवस्था व अनियमितताओं के चलते हर साल लाखों छात्र पढ़ाई व नौकरी के लिये लगातार विदेश जा रहे हैं। भारतीय प्रतिभाओं व धन का बाहर जाना देश के हित में कदापि नहीं हो सकता है।