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मसालों की गुणवत्ता व व्यापारिक कूटनीति के प्रश्न

08:01 AM May 02, 2024 IST
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प्रेम प्रकाश

समय और संदर्भ मिलकर साझे तौर पर हमारे देशकाल को रचते हैं। इस लिहाज से देखें तो हमारा देशकाल बीसवीं सदी के आखिरी दशक से लेकर अब तक कई ठोस निर्मितियों को लेकर आया है। हम इस पूरे दौर को देखेंगे तो कई बातें जहां साफ होती हैं, वहीं इससे हम अपने समकाल को भी ज्यादा बेहतर समझ पाते हैं। गौरतलब है कि दुनियाभर में बाजार के दरवाजे एक साथ खुलने से जो स्थिति पैदा हुई है, उसमें भारत जैसे बड़ी आबादी और उत्पादक संभावनाओं वाले देश ने बीते दो-तीन दशक में बड़ी छलांग लगाई है। अब इससे आगे की स्थिति पगबाधा दौड़ जैसी है। भारत के लिए यह स्थिति इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उसे खासतौर पर व्यापारिक मोर्चे पर न सिर्फ कठिन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा से गुजरना पड़ रहा है, बल्कि विभिन्न स्तरों पर सक्रिय अंतर्राष्ट्रीय लॉबी भी उसके खिलाफ है। बड़ी बात यह कि खासतौर पर कोविड बाद के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ी मजबूती ने भारत के खिलाफ अघोषित रूप से अंतर्राष्ट्रीय सांठगांठ को जन्म दिया है। लिहाजा इसे व्यापारिक कूटनीति के रूप में देखना ज्यादा सही होगा। किसी एक देश के खिलाफ इस तरह कूटनीतिक मोर्चा खुलना बिल्कुल नई बात है।
इसी पूरे मामले में नई खबर यह है कि भारत में बने कफ सिरप पर रोक से शुरू हुआ मामला अब भारत से निर्यात हुए मसालों तक आ पहुंचा है। सिंगापुर और हांगकांग द्वारा भारत के कुछ बड़े ब्रांड के मसालों को बैन करने के बाद अमेरिकी फूड और ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) भी इस मामले में सक्रिय हो गया है। हैरत नहीं कि बैन का फैसला अमेरिका की तरफ से भी देर-सवेर आ जाए। फिलहाल की स्थिति में एफडीए ने कहा है वह भारतीय कंपनियों को लेकर जारी रिपोर्ट्स को लेकर गंभीर है और वह इस बाबत ज्यादा जानकारी जुटाने में लगा है। वैसे एफडीआई की जांच या किसी निर्णायक जांच या निर्देश से पहले ही अमेरिका में भारतीय मसालों को लेकर सख्ती बढ़ गई है।
आलम यह है कि बीते छह महीने में अमेरिका ने भारत की सबसे बड़ी मसाला कंपनी के 31 फीसद मसालों के शिपमेंट को लेने से मना कर दिया है। अमेरिका से भारतीय मसालों के शिपमेंट को लौटाने के पीछे फिलहाल कारण यह बताया जा रहा है कि यह फैसला साल्मोनेला संक्रमण के खतरों को लेकर लिया गया है। अलबत्ता भारतीय मसालों को लेकर अस्वीकार की स्थिति अमेरिका में नई नहीं है। बल्कि देखा जाए तो यह सिंगापुर और हांगकांग के बैन के पहले से चला आ रहा मामला है। अमेरिकी सीमा शुल्क अधिकारियों ने पिछले साल भी भारत से आने वाले 15 फीसद मसालों को लौटाया था।
वैसे भारत और अमेरिका से आगे बढ़कर यह मामला अब मालदीव तक पहुंच गया है। मालदीव ने भारतीय मसालों की बिक्री पर रोक लगा दी है। मालदीव की फूड एंड ड्रग अथॉरिटी का कहना है कि भारत के दो मशहूर ब्रांड के मसालों में एथिलीन ऑक्साइड मिला है जिसके कारण इनकी बिक्री पर रोक लगाई गई है।
इससे पहले सिंगापुर और हांगकांग ने इन भारतीय ब्रांडों के कुछ उत्पादों में पेस्टिसाइड एथिलीन ऑक्साइड की लिमिट से ज्यादा मात्रा होने के कारण उन्हें प्रतिबंधित किया था। बताया गया कि इनमें पेस्टिसाइड की ज्यादा मात्रा से कैंसर होने का खतरा है। बात अंतर्राष्ट्रीय मानक और चेतावनियों की करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) एथिलीन ऑक्साइड को ग्रुप वन के कार्सिनोजेन के रूप में देखती और वर्गीकृत करती है। लिहाजा इस निष्कर्ष से इनकार मुश्किल है यह लोगों में कैंसर का कारण बन सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय जगत से आई इन खबरों के बाद भारत का सक्रिय होना स्वाभाविक है। यह उसके लिए व्यापार में नुकसान से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय साख का सवाल है। लिहाजा दो देशों के बैन के घोषित फैसले के बाद भारतीय खाद्य सुरक्षा नियामक (एफएसएसएआई) भी इन दोनों कंपनियों के मसालों की जांच कर रहा है। हालिया चर्चा में आए मसालों के दोनों ही ब्रांड देश में भी खासे लोकप्रिय हैं। बात इनकी अंतर्राष्ट्रीय साख और व्यापारिक नेटवर्क की करें तो ये मसाले यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका में खूब प्रचलन में हैं। फूडिंग, कुकिंग और रेसिपी को लेकर प्रभावशाली तरीके से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लिखने-बोलने वालों ने यह बात बीते वर्षों में बार-बार कही है कि भारतीय मसालों ने दुनियाभर के लोगों का स्वाद बदल दिया है। यह बदलाव इतना बड़ा है कि अलग-अलग प्रकार और स्वाद वाले इंडियन करीज और इंटरनेशनल रेसिपीज का हिस्सा हैं। मौजूदा घटनाक्रम का भारत के लिए व्यापारिक महत्व कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2022-23 में भारत ने करीब 32 हजार करोड़ रुपये के मसालों का निर्यात किया। मिर्च, जीरा, हल्दी, करी पाउडर और इलायची भारत से निर्यात होने वाले कुछ प्रमुख मसाले हैं।
इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि सेहत और उससे जुड़ी गुणवत्ता को लेकर सख्ती जरूरी है। इस मुद्दे पर किसी तरह की लापरवाही को हतोत्साहित किया ही जाना चाहिए। आखिरकार यह व्यापार से ज्यादा स्वास्थ्य और मानवता से जुड़ा संवेदनशील मसला है। पर इस मामले को हथियार बनाकर जब किसी एक देश के खिलाफ कार्रवाई हो तो यह भी कहीं से न्यायसंगत नहीं है। माना जाना चाहिए कि जो स्थिति है उसमें भारतीय उद्योग जगत के साथ सरकार भी दूरगामी नीति और विवेक के साथ कार्य करने का सबक लेंगे।

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