मानवीय तबाही को लेकर जवाबदेही का सवाल
डॉ. कृष्ण कुमार रत्तू
हिजबुल्लाह के दक्षिणपंथी रेडियो अल मानार तथा फ्री वॉयस ऑफ़ फिलिस्तीन से इस समय जिहाद के नारे तथा मौत के आंकड़े बताए जा रहे हैं। इसी तरह इस्राइल का अखबार टाइम्स ऑफ़ इस्राइल जिस तरह की तस्वीरों को प्रसारित कर रहा है वे मानवीय इतिहास की ऐसी घटनाएं हैं जो कभी पहले नहीं देखी गई। इस्राइल और फिलिस्तीन के हमास के बीच युद्ध में बेकसूर महिलाओं, बच्चों तथा बूढ़े लोगों की जान चली गई है। फिलिस्तीनी हमास के इस हमले में जिस तरह से मौत का आंकड़ा सामने आ रहा है उसमें यह गाजा का अब तक का सबसे बड़ा हमला है।
इस्राइल-फिलिस्तीन के इस विवाद में मज़हब और जमीन को लेकर एक शताब्दी पुरानी युद्ध की विभीषिका जारी है। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर भी इस विवाद को लेकर देश बंटे हुए हैं। कुछ देशों ने हमास के हालिया हमले की निंदा की है और कुछ देश हमास संगठन की वकालत भी कर रहे हैं। लेकिन प्रश्न है कि यहां जो कत्लेआम हो रहा है उसका जिम्मेदार कौन है। खबरों की मानें तो दोनों पक्षों से हजारों लोग मारे गए हैं। फिलिस्तीन के चरमपंथी संगठनों ने पिछले शनिवार को अचानक गाजा पट्टी से इस्राइल पर 5000 से ज्यादा राकेटों से भयानक हमला किया जिसमें मानवता का कत्ल हुआ है।
पूरे विश्व में फैले इस्लामिक संगठनों में हमास बेहद ताकतवर है जो इस्राइल के विरुद्ध खुलेआम युद्ध का ऐलान करता है। हालांकि यासर अराफात के वक्त में इस संगठन की उस तरह से मान्यता नहीं थी परंतु उनकी मृत्यु के बाद यह उभर कर सामने आया है।
मौजूदा हमले के संदर्भ में हमास के मुताबिक, 2021 में इस्राइल ने यरूशलम में मुसलमानों की पवित्र अल अक्सा मस्जिद को जो नुकसान पहुंचाया तथा गाजा पट्टी के लोगों की घेराबंदी की, यह उसका विरोध है। दूसरी ओर, दुनिया में सबसे चुस्त-दुरुस्त सैन्य ताकत एवं मोसाद जैसी काउंटर इंटेलिजेंस एजेंसी होने के बाद भी जिस तरह से इस्राइल पर यह योजनाबद्ध हमला किया गया, उसने कई प्रश्न खड़े किए हैं। दरअसल, साल 1947 के बाद जब यहूदियों और फिलिस्तीनियों का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में पहुंचा तो वहां पर यहूदियों की अधिक संख्या होने के कारण इसे इस्राइल और बाकी बचे बहुसंख्यकों को देने का फैसला किया गया था।
ऐतिहासिक रूप में यहां मजहब और जमीन की लड़ाई है। मिडिल ईस्ट में स्थित देश इस्राइल के दक्षिणी हिस्से में गाजा पट्टी है जिसे नेशनल कमेटी चलाती है तथा इसे संयुक्त राष्ट्र में भी मान्यता है। यह वह स्थान है जहां पर इस्लाम और ईसाई धर्म के पवित्र स्थान हैं। यहूदियों के लिए टेंपल माउंट और मुसलमानों के लिए अल हरम अल शरीफ के पवित्र स्थल अल अक्सा मस्जिद डोम ऑफ द रॉक इसी शहर में हैं। पैगंबर मोहम्मद से जुड़े होने के कारण मुसलमान भी इसे पवित्र स्थान मानते हैं।
दरअसल, फिलिस्तीन और इस्राइल में यहां कब्जे को लेकर विवाद की नींव पहले विश्व युद्ध के बीच में ऑटोमन साम्राज्य की हार के साथ ही रखी गई थी। विश्वयुद्ध खत्म हो गया उस वक्त इस्राइल नाम का कोई देश नहीं था और पूरा इलाका फिलिस्तीनी क्षेत्र था। वर्ष 1917 में ब्रिटेन ने यहूदी लोगों के लिए राष्ट्रीय घर के उद्देश्य की घोषणा की गई। यह व्यापक नरसंहार के बाद एक यहूदियों के लिए अलग देश की कोशिश थी। यहूदियों के मुताबिक, यह उनके पूर्वजों का घर था, दूसरी तरफ से फिलिस्तीनी लोग इसको अपना घर मानते थे। यही वह समय था जब इस्राइल ने अपनी आजादी का ऐलान किया था।
चौदह मई, 1948 को इस्राइल राज्य की स्थापना की घोषणा की गई और अमेरिका ने इसे मान्यता दी थी। साल 1917 से 2020 तक फिलिस्तीन पर इस्राइल का कब्जा बढ़ता गया। पहले यहूदी कुल 6 फीसदी थे। साल 1950 तक यहूदी सैन्य बलों ने 75000 फिलिस्तीनियों को निष्कासित किया। फिलिस्तीन के 78 फीसदी हिस्से पर कब्जा किया गया, शेष 22 फीसदी को वेस्ट बैंक व गाजा पट्टी में विभाजित किया गया है। कुछ साल बाद फिर एक बार इस्राइली सेना ने पूरे इलाके पर कब्जा कर करीब तीन लाख फिलिस्तीनियों को दरबदर कर दिया।
इन दिनों यह विवाद दुनिया के देशों को बांट रहा है। अमेरिका और भारत ने सीधे तौर पर इस्राइल का पक्ष लिया है तथा आतंक की किसी भी घटना को उन स्थितियों में नकारा है कि यह मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। अब दुनिया के बड़े देशों के साथ इस्राइल के दोस्ताना संबंध हैं, इस्लामिक देश सऊदी अरब के साथ संबंध बन रहे हैं तो भारत ने भी बीते वर्षों से इस्राइल के साथ समझौते किए हैं। सामने आ चुका है कि पूरी दुनिया में दो धड़े हैं- एक वह जो आतंक के पक्ष में हैं और दूसरे वे जो आतंक के विरोध में खड़े हैं।
हालिया हमलों व उसके प्रत्युत्तर में युद्ध के दौरान सबसे ज्यादा मानवता का खून बहा है -जमींदोज होती इमारतें, बारूद और तबाही का गुब्बार और हजारों लोगों के सड़कों पर पड़े शव। जंग में इस्राइल की महिलाओं से जिस तरह से बेहूदगी की घटनाएं सामने आयीं उससे मानवता का सिर झुकता है। संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के कई लोगों ने युद्ध को बंद करने की संभावना पर अपनी राय जताई है। परंतु कुल मिलाकर यह बेहद भयानक परिदृश्य है जिसमें मानवता को बचाने की आवश्यकता है।