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धरातल पर दिखे गुणवत्ता का जीवन

06:28 AM Mar 21, 2024 IST
धरातल पर दिखे गुणवत्ता का जीवन
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जयंतीलाल भंडारी

हाल ही में 14 मार्च को संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट 2022 में भारत अब 193 देशों में से 134वें स्थान पर है। भारत की रैंकिंग में पिछले वर्ष की रिपोर्ट के मुकाबले एक पायदान का सुधार हुआ है। जहां 19 मार्च को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो रही है, वहीं राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के मुताबिक भारत में आम आदमी की आमदनी बढ़ने और उनके द्वारा भोजन पर कम और कपड़े, मनोरंजन व अन्य मदों पर अधिक खर्च किए जाने से उनके जीवनस्तर में धीरे-धीरे बेहतरी आ रही है।
दरअसल, एचडीआई का तात्पर्य मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों- लंबा और स्वस्थ जीवन, शिक्षा तक पहुंच और सभ्य जीवन स्तर में औसत उपलब्धियों के आकलन से है। इस नई एचडीआई रिपोर्ट 2022 में भारतीयों की प्रतिव्यक्ति आय 6951 डॉलर (करीब 5.76 लाख रुपए) दर्ज की गई है। वहीं भारत में जीवन प्रत्याशा में एक वर्ष पहले का औसत 62.2 था जो अब बढ़कर 67.7 हो गया है। भारत ने लैंगिक असमानता को कम करने में भी प्रगति की है।
नि:संदेह भारत के मानव विकास सूचकांक में बढ़त का एक प्रमुख कारण भारत में गरीबी में कमी आना है। हाल ही में अमेरिकी के प्रसिद्ध थिंक टैंक द ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां वर्ष 2011-12 में भारत की 12.2 फीसदी आबादी अत्यधिक गरीब थी, वहीं यह वर्ष 2022-23 में घटकर महज दो फीसदी ही रह गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल आबादी में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों (प्रतिदिन 1.90 डालर से कम खर्च करने वाले) की संख्या 2011-12 की 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में दो प्रतिशत आ गई है। गरीबों की संख्या में हर वर्ष 0.93 प्रतिशत की कमी के बराबर है। ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबों की संख्या घटकर 2.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में एक प्रतिशत रह गई है।
इसी तरह थिंक टैंक नीति आयोग ने कहा है कि भारत में सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों से बीते नौ वर्षों में करीब 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिली। भारत वर्ष 2030 तक बहुआयामी गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य में सफलता प्राप्त करने की पूरी संभावनाएं रखता है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज, स्वच्छ ईंधन के लिए उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना, पेयजल सुविधा के लिए जल जीवन मिशन व जन-धन खाते की सुविधा आदि से लोगों को गरीबी से ऊपर लाने में मदद मिली है। खासतौर से गरीबों के सशक्तीकरण में करीब 51 करोड़ से अधिक जनधन खातों (जे), करीब 134 करोड़ आधार कार्ड (ए) तथा करीब 118 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं (एम), की शक्ति वाले जैम से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचे की विशिष्ट भूमिका रही है।
भारत में बढ़ती हुई तेज अर्थव्यवस्था के कारण रोजगार-स्वरोजगार के मौके बढ़ रहे हैं। भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है और देश में स्टार्टअप्स की संख्या अब 1.25 लाख के आसपास पहुंच रही है। इनमें बड़ी संख्या में स्टार्टअप टियर 2 और टियर 3 शहरों में हैं।
सरकार का दावा है कि युवाओं के लिए रोजगार और स्वरोजगार के लिए निजी क्षेत्र के साथ सरकारी क्षेत्र में भी नए रोजगार अवसर बढ़े हैं। सरकार द्वारा रोजगार बढ़ाने के लिए लागू की गई विभिन्न योजनाओं पीएम ऋण योजना, पीएम स्वनिधि योजना, आत्मनिर्भर भारत योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, मनरेगा आदि के तहत युवाओं के लिए रोजगार के मौके बढ़ रहे हैं।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि देश में आम आदमी के कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य योजनाएं स्वास्थ्य की चुनौती को कम करने में सहायक रही हैं। लेकिन अभी भी देश दुनिया के अनेक देशों की तुलना में मानव विकास सूचकांक में बहुत पीछे है। ऐसे में हमें यह ध्यान रखना होगा कि जहां अर्थव्यवस्था समाज का अहम हिस्सा है वहीं मानव विकास भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
सरकार द्वारा सामाजिक अधोसंरचना पर उसी तरह निवेश किया जाना होगा, जिस तरह भौतिक अधोसंरचना पर खर्च किया जा रहा है। अभी देश में करोड़ों लोगों की गरीबी और स्वास्थ्य की चुनौतियां बड़े पैमाने पर स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। देश में अभी भी 15 करोड़ से अधिक लोग गरीबी की चिंताओं का सामना कर रहे हैं।
आशा है कि सरकार द्वारा यूएनपीडी की मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट 2022 के मद्देनजर देश में मानव विकास की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, न्यायसंगत और उच्च गुणवत्ता वाली सार्वजनिक शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार, सार्वजनिक सेवाओं में स्वच्छता, बहुआयामी गरीबी, भूख और कुपोषण खत्म करने के लिए नई जनकल्याण योजनाओं, सामुदायिक रसोई व्यवस्था तथा पोषण अभियान-2 सफल बनाया जाएगा।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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