मूर्ति के गुण
विचारक डायोजिनीज सुकरात के शिष्य थे और उनके विचारों से बहुत प्रभावित थे। वे अपने व्यक्तित्व में सुधार के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे। कभी वे फूलों के पास जाकर, उनसे बात करते तो कभी यूं ही समुद्र के किनारे शांत मन से आंखें बंद करके ध्यान में बैठ जाते और अपने मन को नियंत्रित करने का प्रयास करते। एक दिन वे एक पत्थर की मूर्ति के पास गए और उससे बातें करने लगे। एक युवक वहां से गुजरा। वह डायोजिनीज को पत्थर की मूर्ति से बात करते देखकर हैरान रह गया कि इतने बुद्धिमान आदमी निर्जीव पत्थर से कैसे बात कर रहे हैं? वह उनके पास जाकर बोला, ‘महानुभाव, हम लोग तो आपके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने का प्रयास करते हैं और आप ऐसी छोटी एवं अजीब हरकत कर रहे हैं। एक मामूली पत्थर से बात करने का आखिर क्या मतलब है? किसी पत्थर से आप शराफत से बात करो या बदतमीजी से वह तो शांत ही रहेगा।’ युवक की बात सुनकर डायोजिनीज मुस्कुरा कर बोले, ‘बिल्कुल सही कहा, तुमने कि भला एक पत्थर क्या जवाब देगा? वह तो शांत ही रहेगा तो मैं भी इस पत्थर से यही सीखने का प्रयास कर रहा हूं। इस पत्थर के गुण को अपने में धारण करने की कोशिश कर रहा हूं।’ युवक डायोजिनीज की बात सुनकर दंग रह गया और मन ही मन उनकी सोच के प्रति नतमस्तक हो उठा।
प्रस्तुति : सुरेन्द्र अग्निहोत्री