For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

साधना से शुचिता

06:40 AM Oct 17, 2024 IST
साधना से शुचिता
Advertisement

एक बार रामकृष्ण परमहंस ने अपने गुरु तोतापुरी जी महाराज से पूछा, ‘गुरुजी, आपने तो इतनी साधना और आराधना की है। आपको ब्रह्म की प्राप्ति भी हो गयी है। फिर अब आप प्रतिदिन आसन लगाकर क्यों बैठते हैं? अब आपको पूजा-पाठ या अध्ययन की क्या आवश्यकता है?’ तोतापुरी जी ने उत्तर दिया, ‘अपने मन में कभी भी यह अभिमान नहीं आना चाहिए कि मैंने सब कुछ पा लिया। अपनी साधना प्रतिदिन नियमित रूप से चलती रहनी चाहिए।’ उन्होंने अपने लोटे को दिखाते हुए कहा, ‘रामकृष्ण! यह लोटा इतना साफ है कि तुम इसमें अपना मुंह देख सकते हो। मैं इसे प्रतिदिन रेत से रगड़कर मांजता हूं। यदि ऐसा न करूं तो इस पर दाग पड़ जायेंगे और इसका पानी भी पीने योग्य नहीं रहेगा। इसी प्रकार अपने मन को भी साधना और आराधना से प्रतिदिन साफ करना चाहिए। मुझे अब कुछ करने की आवश्यकता नहीं- यह अभिमान व्यर्थ है। इसलिए अपने मन को सदा ठीक बनाये रखने के लिए मनुष्य को प्रतिदिन प्रयास और अभ्यास करते रहना चाहिए।’

Advertisement

प्रस्तुति : अंजु अग्निहोत्री

Advertisement
Advertisement
Advertisement