रक्षक बने भक्षक
निश्चित रूप से नशीली दवाओं के खतरों के खिलाफ पंजाब पुलिस एक मुश्किल लड़ाई लड़ रही है। पंजाब पुलिस को उस समय शर्मिंदगी उठानी पड़ी जब एक ड्रग इंस्पेक्टर को कथित तौर पर मादक पदार्थों के तस्करों से मिलीभगत के आरोप में गिरफ्तार किया गया। हकीकत में नशे के खिलाफ जारी मुहिम ऐसी विभागीय काली भेड़ों की वजह से कमजोर ही होती है। एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स ने अवैध ड्रग धंधे के संचालन में मदद करने के लिये इस ड्रग इंस्पेक्टर की गहरी भूमिका का खुलासा किया है। इतना ही नहीं, नशे के काले कारोबार से हासिल सात करोड़ से अधिक की राशि का पता आरोपी के बैंक खातों से चला है। कैसी विडंबना है कि जिस व्यक्ति की नियुक्ति नशे पर नियंत्रण में मदद करने के लिये हुई है, वही जिम्मेदार व्यक्ति विश्वासघात करके पहले से कमजोर नशीले पदार्थ नियंत्रक तंत्र को कमजोर करने का काम करता रहा है। वैसे विगत में भी ऐसे कई मामले उजागर हुए हैं कि पुलिस महकमे के लोग नशा तस्करों की राह आसान करते रहे हैं। यही वजह है कि वर्ष 2017 में अदालत में दायर एक जनहित याचिका पर कार्रवाई करते हुए पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की कथित रूप से नशीली दवाओं के तस्करों से मिलीभगत के आरोपों की जांच के लिये एक विशेष जांच दल का गठन किया था। पिछले साल अप्रैल में सार्वजनिक किए गए एसआईटी के निष्कर्षों ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए थे।
उल्लेखनीय है कि इस जांच में खुलासा हुआ था कि एक पुलिस इंस्पेक्टर ने मोगा में तैनात एक एसएसपी के साथ मिलकर बीएसएफ कर्मियों की मदद से पाक से ड्रग्स की तस्करी की थी। इतना ही नहीं, आरोप लगा कि पुलिस इंस्पेक्टर ने लोगों पर नशीले पदार्थ बेचने के झूठे आरोप लगा पैसे की उगाही भी की थी। विडंबना देखिए कि इन तमाम आरोपों के बावजूद उसकी दोहरी विभागीय प्रोन्नति की गई थी। निश्चय ही रक्षक जब भक्षक बनने लगें तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। जिससे समाज की रक्षा के लिये बनी संस्थाओं से लोगों का विश्वास उठने लगता है। दरअसल, नौकरशाही की अक्षमता और व्यवस्थागत खामियां ऐसे विभागीय अपराधियों के निरंकुश खेल को आसान बना देती हैं। लंबे समय से ड्रग्स इंस्पेक्टर का स्वच्छंद रूप से काले धंधे में लिप्त रहना और जांच देर से होना एक मजबूत निवारक तंत्र की जरूरत को बताता है। इक्का-दुक्का लोगों की गिरफ्तारी के इतर बड़े संरचनात्मक सुधारों की जरूरत होगी। इसमें संदिग्ध अधिकारियों की समय रहते जांच, विशेष एनडीपीएस अदालतों के गठन, जेल की निगरानी में सतर्कता-सजगता और स्वतंत्र एजेंसियों के साथ समन्वय भी शामिल है। आंतरिक भ्रष्टाचार और जमीनी स्तर पर नशीली दवाओं के कारोबार को रोकने के लिये व्हिसलब्लोअरों को संरक्षण देने व समुदाय स्तरीय पुलिसिंग को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए। निश्चित रूप से व्यवस्थागत बदलावों के बिना नशीली दवाओं के खिलाफ राज्य की लड़ाई मुश्किल होगी और इस दिशा में पर्याप्त सफलता नहीं मिल पाएगी।