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संस्कृति-पर्यावरण का संरक्षण भी हो सुनिश्चित

07:50 AM Jan 17, 2024 IST
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पंकज चतुर्वेदी

नये साल के पहले ही हफ्ते में 4 जनवरी को लक्षद्वीप के एकमात्र जिले के कलेक्टर ने एक अधिसूचना के माध्यम से बीच रोड बनाने के इरादे से किलतान गांव के 218 लोगों की 1.9 हेक्टेयर जमीन को अधिगृहीत कर लिया। इनमें से किसी का भी पुनर्वास नहीं होगा, यह आदेश में लिखा है। यह ठीक वही तारीख है जिस दिन लक्षद्वीप के समुद्र तट पर प्रधानमंत्री के फ़ोटो-शूट से चर्चा में आया था। दावे किए जा रहे हैं कि इससे इंटरनेट पर लक्षद्वीप को तलाशने वालों की संख्या बढ़ गई। इससे इस सुरम्य और शांत द्वीप में पर्यटन बढ़ जाएगा। दूसरी तरफ प्रकृति की गोद में सहजता से जीवन जीने वाले यहां के बाशिंदे आशंकित भी हैं। साल 2021 में जब यहां ‘लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेगुलेशन, 2021’ का मसौदा आया था, तब स्थानीय लोगों ने प्रतिरोध किया था।
लक्षद्वीप समेत सभी जगह स्थानीय जीवन शैली एवं पारिस्थितिकीय तंत्र प्रभावित करके कथित कॉर्पोरेट हितों को तरजीह देने की कोशिशों से स्थानीय लोग सहज नहीं हैं। स्थानीय लोगों में आशंका है कि कहीं अचानक लक्षद्वीप जाना पर्यटन बढ़ाने के नाम पर कंक्रीट के विकास के स्थानीय विरोध को ढकने के लिए तो नहीं।
समझना होगा कि जलवायु परिवर्तन का असर लक्षद्वीप के समुद्री तटों पर दिनों दिन गहरा रहा है। यहां की संस्कृति और लोक को गढ़ने वाले मूंगे के पहाड़ों का रंग अब धुंधला हो रहा है। समुद्र तट पर तेजी से भूमि कटाव, समुद्री चक्रवात और पानी का तापमान बढ़ने से इस द्वीप का पर्यावरणीय संतुलन पहले से ही डगमगा रहा है। मछली पकड़ने के लिए बाहरी बड़े ट्रोलर्स को अनुमति, अधिक पर्यटक आने से मानवीय दखल बढ़कर बाद यहां जलवायु परिवर्तन की मार गहरी हो सकती है।
कोचीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञान विभाग के एस. अभिलाष कहते हैं ‘ये द्वीप बेहद संवेदनशील हैं। यहां सालभर समुद्र अधिकांश समय अशांत बना रहता है। तूफानी लहरें, बदलती समुद्री धाराएं और कोरल रीफ के सफेद होने के चलते यहां नैसर्गिक संरक्षण अनिवार्य है। निर्माण जैसी गतिविधि से बड़े पैमाने पर मानवीय हस्तक्षेप स्थिति और भी खराब करेगा।’
लक्षद्वीप में कुल 36 द्वीपों में से केवल 10 में आबादी है। साल 1973 में लक्की दीव, मि‍नीकाय और अमीनदीवी द्वीपसमूहों का नाम लक्षद्वीप कर दिया गया। लक्षद्वीप प्रवाल द्वीपों का समूह है। आबादी बमुश्किल 71 हज़ार है। अधिकांश आबादी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। वैसे तो यहां कोई पारम्परिक आदिवासी हैं नहीं लेकिन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सूची (संशोधन आदेश), 1956 के अनुसार, लक्षद्वीप के निवासी, जिनके दोनों माता-पिता इन द्वीपों में पैदा हुए थे, उन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में माना जाता है।
यहां की प्रमुख फसल नारियल है और प्रतिवर्ष 2,598 हेक्टेयर भूमि में 580 लाख नारियल का उत्पादन होता है। लक्षद्वीप के नारियलों में विश्व के अन्य नारियलों के मुकाबले सर्वाधिक तेल यानी 72 प्रतिशत पाया जाता है। कम ही लोग जानते होंगे कि लक्षद्वीप में शत-प्रतिशत ऑर्गेनिक खेती होती है| अनौपचारिक समुदाय आधारित शिक्षा यहां जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और आजीविका के प्रति बचपन से ही जागरूक करती है।
प्रकृति कि गोद में संतोषी जीवन जी रहे लोगों के जीवन में पिछले दिनों तब चिंताएं पैदा हुईं जब लक्षद्वीप को मालदीव जैसा बनाने की ठानी गई। चर्चा है कि प्रशासक ने तटरक्षक अधिनियम के उल्लंघन के आधार पर तटीय इलाकों में मछुआरों की झोपड़ियों को हटाने को कहा है, जिससे स्थानीय लोगों में रोष है। दूसरी तरफ यहां के लोग दुकानें खोलने का विरोध करते हैं। यहां लोगों का कहना है कि पर्यटन के उद्देश्य से स्थानीय पांच या तीन सितारा होटलों या बार में शराब की अनुमति दी जाती तो ठीक था।
नए कानून के दो प्रावधानों से स्थानीय लोग सरकार की मंशा पर शक कर रहे हैं। एक है ‘लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेगुलेशन, 2021’ जिसके तहत शहर के विकास के लिए प्रशासन किसी को भी उसकी संपत्ति से बेदखल कर सकता है। साथ ही प्रिवेंशन ऑफ एंटी-सोशल एक्टिविटीज एक्ट जो किसी भी व्यक्ति को बगैर कारण बताये गिरफ्तार करने और जेल में रखने की छूट देता है। लक्षद्वीप की स्थानीय आबादी में अपराध बहुत कम हैं। नागरिक प्रशासन पंचायतों द्वारा संचालित है, लेकिन नए प्रावधान में किसी भी ऐसे व्यक्ति को चुनाव लड़ने की इजाज़त नहीं है, जिसके दो से अधिक बच्चे हों। जनप्रतिनिधि कहते हैं कि ‘लक्षद्वीप में जो अभी हो रहा है, वह पीढ़ियों से विकसित हुई लोक-मान्यताओं और उनके प्राकृतिक पर्यावास को बदलने की कोशिश है।’
पर्यटन बढ़ाने के नाम पर लक्षद्वीप समूह में शानदार पर्यटन विला विकास की योजना से स्थानीय पर्यावरण और समुदाय प्रभावित होंगे। स्थानीय लोगों का मानना है कि इससे प्राकृतिक वातावरण और द्वीप निवासियों की पारंपरिक जीवनशैली, विशेषकर अनुसूचित जनजातियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। बेहतर होता कि नए प्रावधान को लागू करने से पहले यहां के जनप्रतिनिधियों से विमर्श किया जाता।

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