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गुणों की सुगंध

06:40 AM Oct 24, 2024 IST
गुणों की सुगंध
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संत सुखानंद जी अपने गुरुकुल में शिष्यों को उपदेश दे रहे थे कि आत्म-विकास करो। आत्म प्रचार कभी मत करो। इससे दूर रहो। अपने विचारों के ताने-बाने से अपना चरित्र विकसित होने दो। इतना सुनकर कुछ शिष्य संशय में थे। संत सुखानंद जी ने उनकी मानसिकता भांप ली। उन्होंने बाहर उपवन की ओर संकेत किया। सभी शिष्य बाहर देखने लगे। ‘देखो उन फूलों पर कितनी दूर से तितलियां आकर बैठ रही हैं। यह फूल इनको कब बताने गये कि हमारे पास सुगंध और पराग है।’ ‘परन्तु गुरुजी यह तो फूल का गुण है। इसके प्रचार की कोई आवश्यकता नहीं होती।’ एक शिष्य ने कहा। ‘तो तुम भी ऐसे बनो। खुद -ब-खुद लोग गुण भांपकर, तुम पर रीझकर तुमसे मिलने आयें।’ प्रत्येक शिष्य को यह गूढ़ अर्थ समझ में आ गया।

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प्रस्तुति : पूनम पांडे

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