For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

सही देखभाल से बनेगी खुशहाल जीवन की सांझ

10:43 AM Oct 01, 2024 IST
सही देखभाल से बनेगी खुशहाल जीवन की सांझ
Advertisement

योगेश कुमार गोयल
भारतीय संस्कृति में बुजुर्गों की बड़ी अहमियत है। इसके बावजूद उनके साथ दुर्व्यवहार और उपेक्षा के मामले निरंतर बढ़ रहे हैं। कोरोना महामारी के बाद वृद्धों की आय, स्वास्थ्य, सुरक्षा और जीवनशैली में आए व्यापक बदलाव को समझने के लिए एक एनजीओ ‘हेल्प एज इंडिया’ द्वारा एक राष्ट्रव्यापी सर्वे किया गया था, जिसमें यह तथ्य सामने आया था कि भारत में बुजुर्ग काफी हद तक उपेक्षित और हताश हैं। सर्वे के अनुसार देश में करीब 41 प्रतिशत बुजुर्ग कोई काम नहीं कर रहे और 61 प्रतिशत बुजुर्गों का मानना था कि देश में उनके लिए पर्याप्त और सुलभ रोजगार के अवसर ही उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि एक रिपोर्ट ‘ब्रिज द गैप: अंडरस्टैंडिंग एल्डर्स नीड्स’ के मुताबिक बुजुर्गों ने इस विसंगति के निवारण के लिए ‘वर्क फ्रॉम होम’ तथा ‘सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि’जैसे कुछ व्यावहारिक सुझाव भी दिए थे लेकिन बुजुर्गों के पुनर्वास को लेकर ठोस पहल नहीं हो रही।

Advertisement

अकेलापन बड़ी समस्या

बीते कुछ वर्षों में बुजुर्गों में अकेलेपन या सामाजिक अलगाव के कारण भय और निराशा के लक्षण तो बढ़े ही हैं, आत्महत्या के मामले भी बढ़े हैं। बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और उनकी उपेक्षा के निरन्तर बढ़ते मामलों को देखते हुए ही प्रतिवर्ष एक अक्तूबर को बुजुर्गों को प्रति सम्मान व्यक्त करने, उनकी समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा उनकी उपेक्षा और उनके साथ होते दुर्व्यवहार को रोकने के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस’ मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस 2024 की थीम है ‘गरिमा के साथ वृद्धावस्था : दुनियाभर में वृद्ध व्यक्तियों के लिए देखभाल और सहायता प्रणालियों को मजबूत करने का महत्व’।

उपेक्षापूर्ण व्यवहार

कुछ समय पूर्व ‘हेल्प एज इंटरनेशनल नेटवर्क ऑफ चैरिटीज’ नामक संस्था द्वारा एक सर्वे कराने के बाद 96 देशों का ‘ग्लोबल एज वाच इंडेक्स’ जारी किया गया था, जिसके मुताबिक करीब 44 प्रतिशत बुजुर्गों का मानना था कि उनके साथ सार्वजनिक स्थानों पर दुर्व्यवहार किया जाता है जबकि करीब 53 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना था कि समाज उनके साथ भेदभाव करता है। रिपोर्ट के अनुसार बुजुर्गों के लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन जगहों की विश्व रैंकिंग में स्विटजरलैंड का नाम सबसे अच्छा है जबकि उसमें भारत को 71वें पायदान पर रखा गया था, जो भारत में बुजुर्गों के प्रति होने वाली उपेक्षा को दर्शाता है। हालांकि बुजुर्गों की उपेक्षा के मामले केवल भारत तक ही सीमित नहीं।

Advertisement

बदलते दौर की चुनौतियां

बदलते दौर में छोटे और एकल परिवार की चाहत में संयुक्त परिवार की धारणा खत्म होती जा रही है, जिसके चलते लोग जहां अपने बुजुर्गों से दूर हो रहे हैं, वहीं बच्चे भी दादा-दादी, नाना-नानी के प्यार से वंचित हो रहे हैं। अकेले रहने के कारण अब बुजुर्गों के प्रति अपराध बढ़ने लगे हैं। भारत में बुजुर्गों की जनसंख्या वर्ष 2011 में 10.4 करोड़ तथा 2016 में करीब 11.6 करोड़ थी और अनुमान है कि यह 2026 में बढ़कर 17.9 करोड़ तक पहुंच जाएगी। एक अन्य अनुमान के मुताबिक 2050 तक दुनियाभर में 65 वर्ष के आसपास की आयु के लोगों की संख्या एक अरब होगी, जिनमें से अधिकांश वृद्ध भारत जैसे विकासशील देशों में होंगे। वृद्धों में भी महिलाओं की संख्या ज्यादा होगी क्योंकि वे प्रायः पुरुषों से लंबा जीवन जीती हैं। ऐसे में बुजुर्गों की विभिन्न समस्याओं के प्रति संजीदा होने और उम्र के इस आखिरी पड़ाव में उन्हें आर्थिक संबल देने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की दरकार है।

स्वास्थ्य की संभाल

पिछले कुछ वर्षों में बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी बहुत बढ़े हैं। एक गैर-सरकारी संगठन ‘एजवेल फाउंडेशन’ द्वारा बुजुर्गों की समस्याओं को लेकर पांच हजार से अधिक बुजुर्गों पर एक अध्ययन कराया गया था। जिसके मुताबिक, बुजुर्गों में स्वास्थ्य चिंताएं, अनिद्रा, हताशा, चिड़चिड़ापन, तनाव, खालीपन की भावना और भविष्य से जुड़ी चिंता जैसी समस्याएं बढ़ी हैं। आईआईटी मद्रास ने भी बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर एक सर्वेक्षण किया था, जिसकी रिपोर्ट ‘ग्लोबलाइजेशन और स्वास्थ्य’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी कि बुजुर्गों में मधुमेह, रक्तचाप तथा हृदय संबंधी बीमारियां ज्यादा आम मौजूद मिलीं। इनमें केवल 18.9 प्रतिशत बुजुर्गों के पास स्वास्थ्य बीमा की सुविधा थी। चिंता यह है कि अकेलेपन के कारण बुजुर्गों की मौत जल्दी हो जाती है। बीमारियों के अलावा घुटनों तथा जोड़ों में दर्द और रीढ़ की हड्डी के मुड़ने जैसी समस्याओं सहित शारीरिक स्थिति में बदलाव आना सामान्य बात है। ऐसे में बुजुर्गों को उचित पोषण मिलना बेहद जरूरी है।

संबल की दरकार

बुजुर्गों की स्थिति पर आईआईटी मद्रास की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 80 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की 27.5 प्रतिशत आबादी गतिहीन है और बुजुर्गों की करीब 70 प्रतिशत संख्या आंशिक या पूरी तरह से दूसरों पर आर्थिक रूप से निर्भर है। हालांकि देश में प्रतिमाह वृद्धावस्था पेंशन का प्रावधान है। वहीं 70 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों को आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने का निर्णय भी लिया गया। बहरहाल, बुजुर्गों की विभिन्न समस्याओं को लेकर समाज को संजीदा होने और विपरीत परिस्थितियों में उनका संबल बनकर उन्हें बेहतर जीवन जीने के लिए सकारात्मक माहौल उपलब्ध कराने की दरकार है।

Advertisement
Advertisement