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बेकार का उद्धार करने के जिम्मेदार पेशेवर

07:47 AM Mar 07, 2024 IST

कुमार गौरव अजीतेन्दु
वेस्ट मैनेजमेंट से पर्यावरण प्रदूषण को दूर करके बेकार दिखनेवाली चीजों को पुनः इस्तेमाल लायक बनाया जाता है। वर्तमान परिवेश में इस फील्ड के प्रोफेशनल्स की मांग बढ़ी है। पिछले कुछ वर्षों से देश में पर्यावरण के प्रति लोगों में बढ़ती जागरूकता एवं सरकारी तथा व्यक्तिगत स्तर भी इस दिशा में होते विभिन्न छोटे-बड़े प्रयासों ने इस क्षेत्र में कैरियर का माहौल बेहतर बनाया है। उद्योग-धंधों से निकलने वाले कूड़े-कचरे या घर की बेकार चीजों को फेंकने से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है। इसकी रोकथाम के लिए रीसाइकिल की प्रक्रिया अपनाई गई। अपशिष्ट पदार्थों को फिर से एक नया रूप देने की इस प्रक्रिया को वेस्ट मैनेजमेंट नाम दिया गया। वेस्ट मैनेजमेंट इसी पर्यावरण प्रबंधन एवं संरक्षण का ही महत्वपूर्ण बिन्दु है। अब तो ई-वेस्ट मैनेजमेंट का चलन जोर पकड़ने लगा है। इसमें ज्यादातर वेस्टेज मेटल इलेक्ट्रॉनिक व प्लास्टिक के होते हैं। मुरादाबाद, दिल्ली तथा मुंबई में धारावी इसके प्रमुख केंद्र हैं। वेस्ट ट्रीटमेंट एजेंसियों ने रोजगार के अवसर सामने लाए हैं।

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ई-वेस्ट मैनेजमेंट

विकासशील देश होने के चलते हमारे देश में ई-वेस्टेज की मात्रा भी तेजी से बढ़ रही है। उसी अनुपात में उसे दोबारा प्रयोग में लाए जाने की प्रक्रिया भी अपनाई जाने लगी है। ई-वेस्ट के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक कचरों में कंप्यूटर, टीवी, डिस्प्ले डिवाइस, प्रिंटर, सेलफोन, पुरानी फैक्स मशीन, एलसीडी, सीडी, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट, ऑटोमोबाइल कम्पोनेंट, सेंसर, अलार्म, सायरन इत्यादि आते हैं।

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कार्यशैली की रूपरेखा

वेस्ट मैनेजमेंट का पूरा कार्यक्षेत्र एनवायरमेंटल साइंटिस्ट एवं उसके आसपास ही होता है। पर्यावरण सुरक्षा संबंधी कार्य साइंस एवं इंजीनियरिंग के विभिन्न सिद्धांतों के उपयोग से आगे बढ़ता है। वातावरण में व्याप्त भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रदूषण को दूर करने के लिए साइंटिस्ट कई तरह की अनुसंधानात्मक विधियों को अपनाते हैं। वेस्ट मैनेजमेंट प्रोसेस में एनवायरमेंटल साइंटिस्ट का कार्य अनुसंधान आधारित ही होता है, जिसमें एडमिनिस्ट्रेटिव, एडवाइजरी व प्रोटेक्टिव, तीनों ही स्तरों पर काम करना होता है।

ये लोग कर सकते हैं कोर्स

वेस्ट मैनेजमेंट से संबंधित अभी ज्यादा कोर्स प्रचलन में नहीं आए हैं। अतः इन्हें अधिकतर एनवायरमेंटल साइंस के कोर्स के एक विषय के रूप में शामिल किया गया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि इसमें कोर्स बैचलर अथवा मास्टर लेवल के ही होते हैं। इसके तहत 3 साल के बैचलर कोर्स बीएससी/बीई इन एनवायरमेंटल साइंस व 2 साल के मास्टर कोर्स एमएससी/ एमटेक इन एनवायरमेंटल साइंस आयोजित किए जाते हैं। बीएससी व बीई में प्रवेश साइंस विषयों सहित 12वीं के बाद मिलता है और इसके लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाता है, जबकि एमएससी व एमटेक में प्रवेश एनवायरमेंटल साइंस में बीएससी अथवा बीटेक के बाद मिलता है। कुछ संस्थान एमफिल अथवा पीएचडी का कोर्स भी कराते हैं। इसमें मास्टर लेवल के कोर्स के बाद पंजीकरण कराया जाता है।

स्किल्स के साथ टीम वर्क जरूरी

वेस्ट मैनेजमेंट के अंतर्गत न केवल अपशिष्ट पदार्थों के दोबारा उपयोग के बारे में जानकारी दी जाती है, बल्कि प्रोफेशनल्स को इस फील्ड में स्थापित होने के लिए कई अन्य तरह की स्किल्स भी प्रदान की जाती हैं। यह एक टीम वर्क है, इस फील्ड में सफलता के लिए प्रकृति के साथ लगाव आपकी बहुत सहायता कर सकता है। इसमें जुड़े पेशेवरों को प्रोजेक्ट के रूप में काम करना होता है।

अवसरों की कमी नहीं

इस क्षेत्र में ग्रेजुएट प्रोफेशनल्स के सामने रोजगार के कई अवसर हैं। वे विभिन्न सरकारी विभागों व एजेंसियों, जैसे फॉरेस्ट एवं एनवायरमेंट डिपार्टमेंट, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, अर्बन प्लानिंग, इंडस्ट्री, वॉटर रिसोर्सेज, एग्रीकल्चर आदि में अपने लिए अवसर तलाश सकते हैं। पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित एनजीओ में काम करने के लिए संबंधित प्रोफेशनल्स को बेहतर अवसर मिल रहे हैं। प्राइवेट कंपनियां भी बड़े रोजगार प्रदाता के रूप में सामने आ रही हैं। वेस्ट ट्रीटमेंट इंडस्ट्री, रिफाइनरी, डिस्टिलरी, माइन्स, फर्टिलाइजर प्लांट्स, फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री एवं टेक्सटाइल मिल्स में प्रोफेशनल्स के लिए अवसर निकलते हैं। एनवायरमेंटल जर्नलिस्ट व टीचिंग में विकल्प हैं।

प्रमुख शिक्षण संस्थान

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंटल मैनेजमेंट, मुंबई www.siesiiem.net, यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान, जयपुर www.uniraj.ac.in, डॉ.राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद www.rmlau.ac.in, और गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार (हरियाणा) www.gjust.ac.in.

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