प्रियंका का डंका
केरल के वायनाड में प्रियंका गांधी वाड्रा की 4.1 लाख से अधिक वोटों के अंतर से हुई भारी जीत कांग्रेस पार्टी के लिये एक उत्साहजनक संदेश है। निश्चित रूप से उनके राजनीतिक जीवन और कांग्रेस पार्टी के लिये यह एक महत्वपूर्ण क्षण है। शायद यह पहली बार है कि संसद में गांधी परिवार के तीन लोग सदस्य हैं। उनसे पहले राज्यसभा में मां सोनिया गांधी और लोकसभा में भाई राहुल गांधी की सक्रिय उपस्थिति बनी हुई है। उनकी इस जीत से निश्चित रूप से संसद में गांधी परिवार के प्रभाव को मजबूती मिलेगी। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि यह आज भी वंशवादी नेतृत्व पर पार्टी की निर्भरता को रेखांकित करता है। निस्संदेह, प्रियंका गांधी अपने आकर्षक व्यक्तित्व व प्रभावी कुशल वक्ता के रूप में पहचान रखती हैं। वह कांग्रेस पार्टी के लिए भविष्य की बड़ी उम्मीद हैं। उनकी उपस्थिति पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करती है। एक ओर जहां राहुल गांधी के नेतृत्व व अभिव्यक्ति को लेकर आलोचना की जाती रही है, मगर प्रियंका गांधी वाड्रा अपने नपे-तुले शब्दों में मुद्दों को तार्किक ढंग से उठाने के लिये भी जानी जाती हैं। उनका यह राजनीतिक कौशल वायनाड में चुनाव प्रचार अभियान के दौरान बखूबी देखा गया। अपने इसी गुण के चलते वह चुनाव अभियान के दौरान तमाम मतदाताओं, खासकर महिलाओं के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने में कामयाब रहीं। लोगों को साथ जोड़ने की यही क्षमता उनकी निर्णायक जीत में खासी मददगार साबित भी हुई। उनके चुनाव अभियान ने कार्यकर्ताओं में नये उत्साह का संचार किया। यही वजह है कि पार्टी के भीतर उनकी सफलता को लेकर खासा जोश भी है। पार्टी के भीतर भी कई लोगों को उम्मीद है कि उनकी इस रिकॉर्ड जीत से कांग्रेस पार्टी संगठन में नई ऊर्जा का संचार हो सकेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो देश में पार्टी की अपील में आशातीत विस्तार की संभावनाओं को बल मिल सकेगा। फलत: पार्टी को मौजूदा संकट से उबरने में मदद मिलेगी।
यह निर्विवाद सत्य है कि राजनीतिक समय की दृष्टि से प्रियंका गांधी वाड्रा की सफलता के खास मायने हैं। उनकी संसद में दस्तक ऐसे समय में हुई जब देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी बेहद चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना कर रही है। पार्टी को हाल के दिनों में महत्वपूर्ण चुनावी झटकों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दिनों महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा है। वहीं दूसरी ओर हरियाणा में सत्ता की चाबी पार्टी के हाथ से फिसलकर भाजपा की झोली में जा गिरी है। राजनीतिक पंडित इन असफलताओं को पार्टी की घटती प्रासंगिकता के रूप में देखते रहे हैं। साथ ही कहा जाता है कि पार्टी भाजपा की संगठनात्मक ताकत को चुनौती दे पाने में विफल रही है। दूसरे शब्दों में, पार्टी भाजपा के राजनीतिक विमर्श का विकल्प नहीं दे पा रही है। साथ ही यह अहम सवाल भी उठाया जा रहा है कि सक्रिय राजनीति में प्रियंका का उदय क्या संघर्षरत कांग्रेस में नई जान फूंक सकने में कामयाब होगा? दरअसल, वायनाड में उनकी जीत को स्थानीय सफलता के रूप में देखा जा रहा है। इसमें दो राय नहीं कि राष्ट्रीय स्तर पर दमदार उपस्थिति के लिये उन्हें अभी और मेहनत करनी होगी। इस जीत को राष्ट्रीय गति में बदलने के लिये रणनीतिक सुधारों, गठबंधनों और भविष्य के लिये स्पष्ट दृष्टिकोण की जरूरत होगी। अभी यह देखना बाकी है कि क्या भविष्य के लिये वे एक स्पष्ट दृष्टिकोण का लाभ पार्टी का जनाधार विकसित करने के लिये दे पाएंगी। या फिर वह कांग्रेस की वंशवादी राजनीति की निरंतरता के रूप में उभरती हैं। निस्संदेह, जैसे ही वह राष्ट्रीय सुर्खियों में कदम रखेंगी, उन्हें पार्टी में नई प्राणवायु का संचार करने के लिये कठिन चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें कालांतर यह भी साबित करना होगा कि कांग्रेस मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में एक व्यवहार्य विकल्प पेश कर सकती है। बहरहाल, प्रियंका गांधी वाड्रा की वायनाड में हुई शानदार जीत से न केवल केरल बल्कि पूरे देश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नई आशा का संचार हुआ है।