Prime Minister Modi's article दिव्यांगजनों की सेवा और स्वाभिमान का अमृत दशक
नरेंद्र मोदी
(प्रधानमंत्री)
Prime Minister Modi's article अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि मानवता के समर्पण और साहस का प्रतीक है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो, सम्मान और समान अवसरों का हकदार है। दिव्यांगजनों के आत्मबल और उपलब्धियों को समर्पित यह दिन उनके संघर्षों से प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करता है।
भारत की सांस्कृतिक और वैचारिक परंपराओं में दिव्यांगजनों का विशेष स्थान रहा है। हमारे शास्त्रों और लोक कथाओं में दिव्यांगजनों को सम्मानित दृष्टि से देखा गया है। आत्मविश्वास और उत्साह को हर बाधा पार करने की कुंजी बताया गया है।
पिछले दस वर्षों में भारत ने दिव्यांगजनों की उन्नति के लिए कई कदम उठाए हैं। 2014 में 'विकलांग' शब्द को बदलकर 'दिव्यांग' शब्द अपनाना एक अहम कदम था, जो उनकी गरिमा और समाज में उनके योगदान का सम्मान करता है।2015 में शुरू किया गया 'सुगम्य भारत अभियान' दिव्यांगजनों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में सफल रहा। इस अभियान ने सार्वजनिक स्थलों, परिवहन और डिजिटल माध्यमों को दिव्यांगजनों के लिए अधिक सुलभ बनाया।
सरकारी सेवाओं और उच्च शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था को सुदृढ़ करना और दिव्यांगजनों के कल्याण के लिए बजट को तीन गुना बढ़ाना उनके सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ है। 2016 में विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के लागू होने के बाद, दिव्यांगता की श्रेणियों को बढ़ाकर 21 करना और एसिड अटैक पीड़ितों को इसमें शामिल करना सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम था। पैरालंपिक में भारतीय खिलाड़ियों की सफलता ने यह साबित कर दिया कि दिव्यांगजन किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। उनके आत्मविश्वास और समर्पण ने देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गौरव दिलाया है।
2047 में जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष मनाएगा, तब हमारे दिव्यांगजन पूरे विश्व के लिए प्रेरणा बनेंगे। शिक्षा, खेल, तकनीक, और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में उनकी भागीदारी भारत को एक समावेशी और विकसित राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण होगी।
आज का दिन हम सबके लिए एक संकल्प का अवसर है। हमें एक ऐसा समाज बनाना है, जहां कोई भी सपना असंभव न हो। समावेशी और सशक्त भारत का सपना तभी साकार होगा, जब दिव्यांगजन इस यात्रा के प्रमुख भागीदार बनेंगे।
इस महत्वपूर्ण अवसर पर मैं सभी दिव्यांग साथियों को शुभकामनाएं देता हूं और उनकी अनोखी यात्रा को सलाम करता हूं।
जैसा कि रामायण में उल्लेख है
उत्साहो बलवानार्य, नास्त्युत्साहात्परं बलम्ा।
सोत्साहस्यास्ति लोकेस्मिन्ा, न किञ्चिदपि दुर्लभम्ा।।
(अर्थ: जिसके मन में उत्साह है, उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।)
इसी भावना को साकार करते हुए, आज हमारे दिव्यांगजन देश की प्रगति और सम्मान की ऊर्जा बन गए हैं।