अनमोल कला
एक अमेरिकी करोड़पति ने पिकासो को अपनी तस्वीर बनाने को दी। वह करोड़पति इस बीच बार-बार पूछता रहा कि तस्वीर बनी कि नहीं। पिकासो खबर भिजवाता कि थोड़ा धैर्य रखिये। दो वर्ष के बाद पिकासो ने खबर भिजवाई कि अपना चित्र ले जाएं। करोड़पति ने पूछा, ‘इसका दाम?’ पिकासो ने कहा, पांच हज़ार डॉलर! करोड़पति चौंक उठा बोला, ‘क्या? पांच हज़ार! थोड़ा-सा कैनवास और थोड़े से रंग और इसके दाम पांच हज़ार डॉलर? पांच-दस डॉलर में ये सारे सामान बाजार में मिल जायेंगे!’ पिकासो ने अपने सहयोगी को कहा कि जाओ भीतर इससे बड़ा कैनवास और रंगों की ट्यूब लेकर आओ और इन्हें दे दें। ये जितना भी दाम देते हों, ले ले। उसने ऐसा ही किया सारा सामान उस करोड़पति के सामने रख दिया और कहा ये रहा आपका पोर्ट्रेट अब आपकी जो मर्जी दस-पांच डॉलर दे जाएं और यह सब लेते जाएं। करोड़पति घबरा कर बोला, ये सब ले जाकर मैं क्या करूंगा?’ तब पिकासो ने कहा, ‘तस्वीर रंगों और कैनवास का जोड़ नहीं है उससे कहीं ज्यादा है। इनके द्वारा तो हम उसे उतारते हैं जो कैनवास और रंग नहीं है। और हम दाम उसके मांगते हैं जिसका रंग और कैनवास से सम्बन्ध नहीं है। अब पांच हज़ार में निपटारा नहीं होगा पचास हज़ार देते हो तो ठीक वरना यह तस्वीर अब नहीं बिकेगी। वह तस्वीर आखिर पचास हज़ार डॉलर में बिकी।
प्रस्तुति : रेनू शर्मा