अगली-पिछली कसर निकालने की है तैयारी
शमीम शर्मा
बूढ़े बैल की तरह बरसों से जनता नेताओं को ढोते-ढोते हांफ गई है। अब तो उसकी सांस फूलनी शुरू हो गई है। लोगों ने नेताओं की पीढ़ियां की पीढ़ियां पीठ पर बिठाई हैं, सिंहासन के शिखर तक पहुंचाई हैं। पर नेताओं ने जनता की पीठ पर मीठे वादों की भारी-भरकम बोरियां टिका-टिका कर कूब निकाल दिया है।
एक ही परिवार की पैठ देखकर कई बार तो राजतंत्र जैसा भ्रम होने लगता है। बार-बार घिसे सिक्के अपनी खनक पैदा करने की कोशिश करते हैं पर कौन समझाये कि जो करंसी आउट डेटिड हो जाती है, वह मार्केट में नहीं चलती। पर घिसे मोहरे चेहरा और चमक बदलकर फिर-फिर भ्रमित करते हैं। वे सिंहासन पर कब्जा कर ही लेते हैं। जो भी कुर्सी-दौड़ में शामिल होगा उसे धीरे-धीरे नोट समेटना, छीना-झपटी, तूं-तड़ाका, इल्जामबाजी स्वतः आ जाती है जैसेे लड़कियों को कब रोटी गोल बेलनी आ जाती है पता ही नहीं चलता।
पता नहीं क्या वजह है कि विजय के बाद नेता अपने इलाके से यूं गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। फिर गुमशुदा की तलाश में जनता पांच साल मारी-मारी घूमती है। जिन महान आत्माओं ने पांच साल तक अपने वोटरों की धरा पर पांव तक नहीं धरा और अब अचानक अवतरित हो रहे हैं तो उन्हें बता दो कि ऐसे नेताओं का चोखटा ठीक करने की जनता मन में ठान चुकी है और उन्हें गायब करके ही दम लेगी।
सब जानते हैं कि बारिशों में खाट में काण पड़ जाती है और नतीजा यह होता है कि खाट टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है। वोटों की बारिश के बाद नेताओं में भी टेढ़ापन आ जाता है। पर चुनाव तो अच्छों-अच्छों की काण और मरोड़ निकाल देता है। जैसे खाट को मचका-मचका कर उसके दोनों सिरों का मिलान ठीक किया जाता है वैसे ही लोग नेताओं को खूब मचका रहे हैं। कहीं-कहीं तो उन्हें अपने गांव-गली में घुसने ही नहीं दे रहे। कहीं काले झंडे दिखाकर जता रहे हैं कि हम तुम्हारे काले कारनामे खूब जानते हैं। जनता अगली-पिछली सारी कसर निकालने के लिये कमर कस चुकी है। तभी तो चुनावी सिंहों के सामने जनता पूरा सिंहावलोकन यानी पैनी नज़र रख रही है।
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एक बर की बात है अक नत्थू की यमराज तैं भेंट होगी। नत्थू बूज्झण लाग्या- रै मेरे फूफे न्यूं बता, जद कोय माणस हरियाणा मैं मरै है तो थम उसकी आत्मा नैं लेण खुद क्यूं नी जाते? यमराज बोल्या- भाई! गया था मैं एक बर। नत्थू नैं बूज्झी- फेर के होया? यमराज बोल्या- वो हरियाणे आला मेरै ताहिं बोल्या- तू पाच्छै बैठ, झोट्टा तेरा भाई चलावैगा।