भारतीय अहसासों में सदैव रहेंगे अनमोल रतन
जब बृहस्पतिवार की सुबह देश ने आंखें खोली तो देशवासियों को शॉक लगा कि उन्होंने अपना एक अनमोल रत्न खो दिया है। यूं तो देर रात ही सोशल मीडिया पर मानवीय सरोकारों के विख्यात उद्योगपति रतन नवल टाटा के निधन की खबरें फैलनी शुरू हो गई थी। हर किसी को लगा जैसे कोई अपना हमें छोड़ गया। रतन टाटा को भारतीय समाज में दरियादिली, जीवन मूल्यों की प्रतिबद्धता व उद्योग जगत में नैतिकता के लिये जाना जाता है। टाटा के उत्पादों व सेवाओं को भरोसे का प्रतीक कहा जाता है। तेजी से संवेदनहीन होते समाज में कम ही होता है कि आम आदमी किसी राजनेता या उद्योगपति से भावनात्मक रूप से जुड़ा हो। लोग उनके अवसान पर दिल से दुखी होते देखे गए। व्यक्ति की विश्वसनीयता, सामाजिक प्रतिबद्धता, कथनी-करनी में साम्य और कारोबार में नैतिक मूल्यों की समाज आज भी कद्र करता है। देश में कई पीढ़ियां टाटा परिवार के आदर्शों से प्रेरित हुईं। उनकी उद्यमशीलता का अनुकरण करते हुए कई उद्यमी स्थापित हुए। रतन टाटा भारतीय समाज के लिये एक आदर्श पुरुष रहे हैं। उनके प्रेरक विचार अक्सर दोहराए जाते हैं। भरोसे का आलम यह है कि लोग अक्सर मजाक में कह दिया करते हैं कि हमने टाटा का नमक खाया है।
बेहद सादगी की जीवनशैली अपनाने वाले रतन टाटा दिखावे से हमेशा कोसों दूर रहे। आमतौर पर मंत्री, नौकरशाह और धनाढ्य अपने आगे-पीछे सहयोगियों-कर्मचारियों का लाव-लश्कर लेकर चलते हैं, वो रतन टाटा के साथ कभी नहीं रहा। आम आदमी की पीड़ा हमेशा उनके मन में रही। उन्होंने कहा था कि एक बार बारिश में भीगकर स्कूटर पर सफर करते परिवार को देखकर उनके मन में विचार आया कि देश में एक सस्ती कार बनायी जाए, जिसे आम आदमी खरीद सके। उन्होंने नैनो कार बनायी भी, लेकिन उसे सकारात्मक प्रतिसाद नहीं मिला। इस प्रसंग से रतन टाटा की सामाजिक प्रतिबद्धता और संवेदनशीलता का पता चलता है।
पहले सोमवार को सोशल मीडिया पर खबर आई थी कि रतन टाटा ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती हुए हैं। तब उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर करके कहा था कि मैं ठीक हूं और ज्यादा उम्र के कारण रूटीन चैकअप के लिये अस्पताल गया था। लेकिन बुधवार की रात इस 86 वर्षीय अनमोल रतन ने इस नश्वर दुनिया को अलविदा कह दिया। हर किसी को लगा कि अपना कोई सगा हमारे बीच से चला गया। देशवासियों के इस आत्मीय लगाव की वजह यह भी रही है कि अकूत संपदा के मालिक होने के बावजूद वे सहज-सरल जीवन जीते रहे। कभी उनके मुंह से किसी के प्रति कटुता के शब्द नहीं सुने गए। वे कहते रहे कि धन व शक्ति मेरे मुख्य लक्ष्य कभी नहीं रहे। उनका आदर्श था कि मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही बनाता हूं। अमेरिका में अच्छी नौकरी और व्यवस्थित जीवन जी रहे रतन टाटा सब कुछ छोड़कर भारत लौटे। यहां तक कि इस निर्णय से निजी जीवन गहरे तक बाधित हुआ। जिसके बाद वे जीवनपर्यंत अविवाहित रहे। उनका निजी जीवन दस वर्ष की उम्र में माता-पिता के अलगाव की वजह से गहरे तक प्रभावित हुआ। उनकी दादी ने उनका लालन-पालन किया। पिता ने दूसरा विवाह किया जब ये 18 साल की उम्र में थे। कालांतर में मां ने भी दूसरा विवाह किया। लेकिन परिवार की इस असामान्य स्थिति का उनके व्यवहार व जीवन के नजरिये पर असर नहीं पड़ा। वे समाज के प्रति गहरे तक संवेदनशील रहे।
शुरुआती दिनों में रतन टाटा अपने सरनेम को लेकर असहज रहते थे। जब वे अमेरिका में पढ़ रहे तो खुश थे कि उनको ज्यादा नहीं पहचाना जाता। हालांकि, उन दिनों आरबीआई के सख्त नियमों के चलते विदेशों में विदेशी मुद्रा कम खर्च करने की अनुमति थी, अत: खर्चे के लिये उन्हें कम ही पैसे मिल पाते थे। पिता ने भी देश के कानून का उल्लंघन करके उन्हें ब्लैक में डॉलर उपलब्ध नहीं कराये। तब पैसे महीने से पहले खत्म होने पर उन्हें अमेरिका में छोटे-मोटे काम करने पड़ते थे। जिसमें दोस्तों से उधार लेने से लेकर बर्तन धोना भी शामिल था। उन्होंने कॉर्नेल वि.वि. से स्थापत्य कला व इंजीनियरिंग में डिग्री ली।
ये रतन टाटा की मेहनत-लगन के जुनून की बानगी थी कि उन्होंने एक श्रमिक की तरह जमशेदपुर में टाटा स्टील में काम की शुरुआत की। फिर उन्हें प्रोजेक्ट मैनेजर बनाया गया। कालांतर में प्रबंध निदेशक के सहयोगी बने। टाटा समूह के संस्थापक जेआरडी टाटा उनकी मेहनत व लगन से खासे प्रभावित हुए और उन्हें रुग्ण कंपनियों को संवारने का दायित्व दिया। जिसमें नेल्को की जिम्मेदारी भी शामिल थी, जो बाद में मुनाफा उगलने लगी। इस तरह उनके टाटा उद्योग का प्रमुख बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। उनकी सादगी व जीवन मूल्यों का आलम ये था कि जब वे टाटा सन्स के प्रमुख बने तो जेआरडी के कमरे में बैठने के बजाय अपने बनाये साधारण कमरे में बैठे। उन्होंने कभी छोटे कर्मचारी व बड़े अधिकारी के आत्मसम्मान के बीच फर्क नहीं किया।
कालांतर में 86 वर्ष की अवस्था में जेआरडी टाटा द्वारा 1991 में रतन टाटा को टाटा समूह का अध्यक्ष बनाये जाने के बाद समूह की समृद्धि व साख में आशातीत वृद्धि हुई। वर्ष 2000 में उन्होंने टाटा समूह से दुगने बड़े ब्रिटिश टेटली ब्रांड को खरीदा। फिर यूरोप की दूसरी बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी कोरस का अधिग्रहण किया। वर्ष 1998 में टाटा मोटर्स ने भारत में डिजाइन की गई पहली कार ‘इंडिका’ बाजार में उतारी, जिसे बाजार में सकारात्मक प्रतिसाद नहीं मिला। जब आर्थिक संकट से उबरने के लिये उन्होंने अमेरिका की मशहूर कार कंपनी फोर्ड से सौदा करना चाहा तो मालिक बिल फोर्ड ने तंज किया कि वे इस क्षेत्र में अनुभव के बिना क्यों उतरे। टाटा की टीम बातचीत छोड़कर वापस आ गई। लेकिन इसके दस साल बाद ऐसा मौका आया कि आर्थिक संकट में फंसे होने पर रतन टाटा ने फोर्ड के मशहूर लग्जरी उत्पाद जैगुआर व लैंडरोवर का 2.3 अरब डॉलर में अधिग्रहण किया। तब फोर्ड ने उन पर उपकार करने की बात कही। भले ही आर्थिक विशेषज्ञ इन सौदों की तार्किकता पर सवाल उठाते रहे लेकिन उनके द्वारा स्थापित टाटा समूह की सॉफ्टवेयर कंपनी टीसीएस यानी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने पूरी दुनिया में धाक के साथ खासा मुनाफा कमाया।
दूसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से सम्मानित रतन टाटा न केवल मनुष्य बल्कि जीवों के प्रति भी बेहद संवेदनशील रहे। उनके दो जर्मन शैफर्ड कुत्ते टीटो और टैंगो को उनका सबसे करीबी माना जाता था। एक बार समाजसेवा के लिये जब उन्हें ब्रिटिश राजकुमार चार्ल्स द्वारा बकिंघम पैलेस में बड़े पुरस्कार से नवाजा जाना था, अंतिम समय में अपने कुत्ते के बीमार होने पर उन्होंने पुरस्कार लेना स्थगित कर दिया। इस फैसले की सराहना राजकुमार चार्ल्स ने भी की। इतना ही नहीं, जब वे अपने कार्यालय बॉम्बे हाउस पहुंचते थे, तो सड़क के लावारिस कुत्ते उन्हें घेर लेते। उनकी पहुंच दफ्तर में उस जगह तक थी जहां आम लोगों का जाना मुश्किल था।
समय के खासे पाबंद रतन निजी जीवन में एकांतप्रिय थे। समय पर दफ्तर छोड़ने के बाद वे घर में दफ्तर के काम के लिए संपर्क पसंद नहीं करते थे। उनके व्यक्तित्व में गहराई थी तो संवेदनशीलता भी थी। उन्हें दिखावा पसंद नहीं था। कोरोना संकट में उन्होंने लॉकडाउन के प्रभावों से उबरने को टाटा ट्रस्ट से पांच सौ करोड़ व टाटा कंपनियों की तरफ से एक हजार करोड़ रुपये दिये। टाटा न्यास निरंतर समाज सेवा, शिक्षा व समाज उत्थान के लिये आर्थिक योगदान देता रहा है। भारत के ऐसे अनमोल रत्न रतन टाटा आम भारतीय के अहसासों में सदैव विद्यमान रहेंगे।