आएगी रोशनी बनकर दुआ कोई
प्रगति गुप्ता
कहते हैं जो व्यक्ति अपने अनुभवों से विभिन्न परिस्थितियों का आकलन विवेकपूर्ण तरीके से करना सीख जाता है, वो यथार्थ को स्वीकार कर जीवन जीने की कला सीख लेता है। ऐसे व्यक्तित्व आनंदमय रहकर सभी के खुश रहने की कामना भी करते हैं।
लेखिका ज्योत्सना कलकल के काव्य संग्रह ‘खुश रहना तुम’ 108 छोटी-बड़ी सकारात्मक भावाभिव्यक्तियों से जुड़ा हुआ संग्रह है। जहां साथ चलने वाले हर व्यक्ति के लिए सद्भावनाएं जुड़ जाती हैं। प्रेम के उत्कृष्ट भाव कई कविताओं में दृष्टिगत होते हैं :-
कुछ शब्द/ संपूर्ण वाक्य होते हैं/ और कुछ/ महान ग्रंथ।
अन्य कविताएं :-
गणित दोस्ती का/ अक्सर मैं/ समझ नहीं पाती हूं/ तुम्हारे साथ जुड़कर/ कई गुणा हो जाती हूं...।
आज के संवेदनहीन होते समाज में रिश्तों पर भरोसा करना टेढ़ी खीर होता जा रहा है। ऐसे में कवयित्री उम्मीद बनाए रखना चाहती है, मगर उनकी कुछ शिकायतें भी हैं :-
दस्तूर है दुनिया का/ तकलीफ़ हर सहो/ मसला यह भी मगर/ तुम पहले जैसे रहो।
कविमन ईश्वर पर भरोसा बनाए रखना चाहता है। वह परम द्वारा निमित्त सब पीड़ाएं स्वीकार कर, उसकी बनाई कायनात और लोगों में विश्वास भी खोजना चाहता है :-
आएगी देखना/ जाने कहां से/ रोशनी बनकर दुआ कोई/ देर तक छाई रहें घटाएं/ ऐसा तो यहां चलन नहीं है।
कविताओं में यथार्थ और उम्मीद ध्वनित होते हैं, जो पाठकों को बहुत कुछ सोचने को मजबूर करते हैं।
पुस्तक : खुश रहना तुम लेखक : ज्योत्सना कलकल प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 150.