कष्ट से साधना
देवता और दैत्य अपना-अपना प्रतिनिधिमंडल लेकर भगवान के पास पहुंचे। उन्होंने भगवान के सम्मुख अपना निवेदन रखा और बोले, ‘प्रभु! सृष्टि के चक्र से मुक्त होने के लिए आपने जो साधना का विधान बनाया है, वह बड़ा कष्टसाध्य है। कृपया यह व्यवस्था उन्हें दे दें, ताकि हम थोड़ा सरल मार्ग निकाल सकें।’ भगवान ने सहजता से यह व्यवस्था उनको प्रदान कर दी। कुछ दिनों तक सब ठीक चला, बाद में समूह ने देखा कि बिना कष्टसाध्य प्रयास के जो आत्माएं जीवनमुक्त हो रही हैं, जनसामान्य के मन से जीवन के प्रति सम्मान की भावना जा रही है। लोग बे-मन से थोड़ी-बहुत साधना में रत होते और उसका त्वरित प्रभाव मिलने पर पुनः भोग-विलास में लिप्त हो जाते। सृष्टि में धीरे-धीरे अव्यवस्था फैलने लगी। चिंतातुर प्रतिनिधिमंडल पुनः भगवान के पास पहुंचा और स्थिति का विवरण उन्हें किया। भगवान हंसे और बोले, ‘साधना का अर्थ ही संघर्ष है। बीज पृथ्वी के साथ संघर्ष करता है, तभी उसमें से अंकुर निकल पाता है। भ्रूण शरीर के साथ संघर्ष करता है तो जन्म पाता है। तुमने साधना में से संघर्ष निकाल लिया तो वह मूल्यहीन हो गई।’
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि