लोकतंत्र के मंच पर सत्ता का प्रपंच
पूरन सरमा
सरकारें अपनी सफलता-उपलब्धियों का महीना-वर्ष, दिन मनाती हैं। सौ दिन बीत गये तो सफलता के सौ दिन। एक वर्ष निकल गया तो सफलता का एक वर्ष। इस तरह सरकार गिरे नहीं तो पांच वर्ष तक इसी तरह के नाटक होते रहते हैं। आजकल सरकारें जोड़-तोड़ का जुगाड़ हैं। इसलिए एक दिन गुजर जाये तो उसे अपनी सफलता माननी चाहिए। उस दिन को हम सफलता का एक दिन कह सकते हैं। अपनी सफलताओं और उपलब्धियों को गिनाने के लिए राज्य सरकारें या केन्द्र सरकार करोड़ों रुपया फूंकती हैं। वह सिर्फ इसलिए ताकि वे पुनः सत्तारूढ़ हो सकें।
वैसे अमन-चैन का तो एक दिन भी बहुत होता है। इसलिए हर दिन उत्सव होना चाहिए। सरकारी पैसा है, खुद का क्या जाता है? लुटाओ, जितना लुटा सको। सरकार का प्रचार विभाग इसी चारणगिरी में लगा रहता है तथा गिन-गिन कर उपलब्धियां बताता है। हमने कुएं बनवाये, गांवों का विद्युतीकरण किया या बांध बनाये या गरीबों को आवास दिये तो इसमें नया क्या है? लोकतंत्र में कल्याणकारी सरकारों का काम ही यही है। आपको चुना क्यों है?
जनता द्वारा चुनाव ही इसलिए किया जाता है ताकि सरकारें उनके लिए काम करें। काम करो और फिर गिनाओ कि हमने फलां-फलां काम किया। यह बदखर्ची तथा जनता को बेवकूफ बनाने जैसा है। हमने पांच वर्ष पूरे किये, हमने हैट्रिक लगाई, हमने सात वर्ष पूरे किये, क्या बकवास है? यह तो क्रम है जो चलेगा ही चलेगा। इसमें गिनाने जैसा क्या है? बिजली-पानी या ऋण दे दिया तो नेताओं ने अपनी जेब से दिया क्या? जनता का राजस्व जनता के विकास में खर्च करना प्रशासन के दायित्वों में है। इसमें नया कुछ नहीं।
आजकल लूटतंत्र चल रहा है, इसलिए गाल बजाओ और जनता को मूंडो। ऐसा उस्तरा चलाते हैं कि जनता सिर पर हाथ फेरती रह जाती है। चोरी और सीनाजोरी वाला खेल है आज का लोकतंत्र। लोकतंत्र की आड़ में सिर्फ तानाशाही का नंगा नाच और राजनेताओं द्वारा जनता की आंखों में सिर्फ धूल झोंकना। क्या यही है हमारा लोकतंत्र? कोई काम मंत्री, सांसद, विधायक करता है तो अहसान थोड़े ही है। उसे वेतन मिलता है। जनसेवा करने का शौक है तो आओ न मैदान में। गरीबी, भूख और भ्रष्टाचार से लड़ो। वरना काम करो भाई चुपचाप। बिना शोर मचाये। लोकतंत्र को नाटक मत बनाओ।