For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

विभाजन के बाद का संत्रास

06:33 AM Jul 02, 2023 IST
विभाजन के बाद का संत्रास
Advertisement

सर्वजीत अरोड़ा

लेखिका ललिता विम्मी का उपन्यास ‘उजड़ी हुई औरतें’ नारी के मन और उसकी भावनाओं पर की गई सूक्ष्मतम टिप्पणी है। उपन्यास की नायिका अंजना का संपूर्ण जीवन सोचने को विवश करता है कि विभाजन से पहले और विभाजन के बाद हमारी सामाजिक और मानसिक सोच में क्या कुछ बदलाव हुए हैं? इन बदलावों ने हमारे जीवन को विभिन्न आयामों में प्रभावित किया है। यह बहुआयामी प्रभाव निश्चित रूप से सकारात्मक नहीं है।
विभाजन के बहुत बाद आये इस नवीन युग ने स्वार्थ और लोलुपता को अपने में जोड़ लिया है। प्रतिस्पर्धा की दौड़ जो आज स्त्री और पुरुष दोनों ही लगाने को विवश हैं, नायिका अंजना इससे अनभिज्ञ न होते हुए भी, इसके भीतर स्वयं को रखने में असमर्थ पाती है।
भारत विभाजन ने अच्छाइयों को सदा के लिए अवमूल्यन की गर्त में भी डाल दिया। अंजना का जीवन इससे अछूता कैसे रहता? संकीर्णता और अवसरवादिता की मानसिकता में बढ़ोतरी जिसका परिणाम अंजना के परिवार ने भी आजीवन भुगता।
लेखिका ने आसपास के संपूर्ण परिवेश को बड़ी सफलता से चित्रित किया है। समस्याओं की अति से डरकर, दुःखी और त्रस्त होते, पलायन करते पात्रों की बात करनी जरूरी भी थी। क्या हार कर, परिस्थितियाें के सामने किया बेबस समर्पण उपन्यास को पूरी सार्थकता दे देता है? या उसके पीछे छिपे कारणों से लड़ने के लिए प्रस्तुत होना भी आवश्यक होता है? उपन्यास के पात्र इस ‘लड़कर’ उभरने की पात्रता से अनजान ही नज़र आते हैं।
पूरे उपन्यास में, दर्द की पराकाष्ठा, अंतहीन दुख से सराबोर होता नायिका अंजना का व्यक्तित्व सहानुभूति उत्पन्न करता है पूरी सार्थकता से, पर एक झुंझलाहट से भी भर देता है।
पुस्तक : उजड़ी हुई औरतें लेखिका : ललिता विम्मी प्रकाशक : देवप्रभा प्रकाशन, गाज़ियाबाद, उ.प्र. पृष्ठ : 142 मूल्य : रु. 200.

Advertisement

Advertisement
Tags :
Advertisement
Advertisement
×