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बाढ़ में एडवेंचर टूरिज्म की संभावनाएं

07:09 AM Aug 06, 2024 IST
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आलोक पुराणिक

दिल्ली वाले शिकायत कर रहे थे जून में कि हाय-हाय हरियाणा वाले, हिमाचल वाले पानी न छोड़ते, तो दिल्ली प्यासी रह जाती है। अगस्त तक शिकायत उलटी हो गयी कि हाय हरियाणा वाले, हिमाचल वाले इतना पानी छोड़ दे रहे हैं कि दिल्ली डूब रही है।
दिल्ली वालों का एक काम पक्का है, वह है शिकायत करना। दिल्ली में तरह-तरह की सरकारें हैं, सबका एक ही काम है एक-दूसरे की शिकायत करो। पानी बहुत ज्यादा बह रहा था, क्यों बह रहा था। फलां सरकार को पानी को लाइसेंस देना चाहिए बहने का। अगर बिना लाइसेंस के पानी बहे, तो पानी को अरेस्ट कर लेना चाहिए। धूप पर चालान कर लेना चाहिए, पर नेताओं को बकवास के अलावा कुछ नहीं करना चाहिए। दिल्ली डूब जाती है जुलाई-अगस्त में हर साल, पर नेता बारहों महीने डूबे रहते हैं, आरोपबाजी में।
अब कुछ नहीं हो सकता। बाढ़ आयेगी, लोग डूबेंगे, पुल टूटेंगे, सड़कें बहेंगी हर साल कोई कुछ न कर सकता। हां, दिल्ली-हरियाणा के पुल कह सकते हैं कि हम शर्मदार पुल हैं, बारिश आये, तो हम गिर जाते हैं। बिहार के पुल बहुत ही नालायक किस्म के पुल है, बिना बारिश के ही गिर जाते हैं, बेवजह। पुल गिर जाते हैं, पब्लिक मर जाती है। नेता हेलिकाप्टर पर सर्वे करते हैं।
अब वक्त है कि बाढ़ टूरिज्म को प्रमोट किया जाये। कुछ कमा ही लिया जाये बाढ़ से। देश-विदेश से पर्यटकों को लाया जाये, उन्हें पुल जादू दिखाया जाये। देखो वह पुल दिख रहा है न बस पांच मिनट की बारिश में वह गायब हो जायेगा। इंग्लैंड का टूरिस्ट कहेगा कि हमारे यहां तो पुल कई शताब्दियों तक खड़े रहते हैं। उन्हें ज्ञान दिया जायेगा कि दुनिया क्षणभंगुर है। पुल कुछेक हफ्ता भंगुर है। सब भंग हो जाता है। जो आया है, वह जायेगा। पुल आया था, पुल को जाना था। पुल चला गया। जाने वाले को कौन रोक पायेगा।
पर मेरा टेंशन दूसरा है। कभी ऐसा न हो कि हम बतायें फिनलैंड के टूरिस्ट को कि देखो पुल पांच मिनट में बह जायेगा और पुल कतई बेशरम निकल जाये और बहने से इनकार कर दे। वह वहीं का वहीं टिका रह जाये। ऐसे में बहुत बेइज्जती खराब हो जायेगी। ऐसी सूरत में उस पुल को बनाने वाले इंजीनियर को सज़ा देनी चाहिए। दिल्ली में आठ सौ साल पुरानी कुतुबमीनार टिकी हुई है, पर आठ साल पुरानी सड़क गायब हो रही है। मतलब इसमें कुतुबमीनार की ही गलती मानी जानी चाहिए कि टिकी क्यों हुई है। पीडब्ल्यूडी वाले बनाते कुतुबमीनार तो आठ सौ सालों में सोलह सौ बार बना चुके होते। हर दूसरे साल पर टूटती कुतुबमीनार। इस थीम पर अगले साल बारिश में टूरिस्ट बुलाये जा सकते हैं।

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