बीडीपीओ बेचारे...काम के बोझ के मारे!
ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 25 नवंबर
पंचायती राज के माध्यम से लोकतंत्र मजबूत करने का संवैधानिक सपना कम से कम हरियाणा में तो धूमिल होता नजर जा रहा है। ग्रामीण विकास के उलझे ताने-बाने को लयबद्ध करने के लिए जिम्मेवार अफसर यानी बीडीपीओ के 144 में से 60 पद सालों से खाली हैं। अनेक बीडीपीओ को अपने ब्लॉक के साथ-साथ पास लगते एक-एक, दो-दो अन्य ब्लॉक की भी जिम्मेदारी संभालती पड़ती है। लिहाजा कभी इस ब्लॉक, कभी उस ब्लॉक में हाजिरी बजाने के चक्कर में अफसरों की भागा-दौड़ी तो बढ़ी हुई है ही, गांवों की तरक्की का पहिया भी धीमा हो गया है।
किसी भी खंड के बीडीपीओ यानी खंड विकास पंचायत अधिकारी के पास केंद्र सरकार व राज्य सरकार की अनेक अनेक योजनाओं को लागू करवाने की जिम्मेदारी तो होती ही है, इसके अलावा प्रशासनिक कार्यों की भी जिम्मेदारी होती है। अगर इन अधिकारियों के राज्य में करीब 40 प्रतिशत खाली हो तो ग्रामीण विकास कैसे होगा। कैथल जिले की बात करें तो यहां कैथल ब्लाक, कलायत ब्लाक, पूंडरी ब्लाक, गुहला ब्लाक में बीडीपीओ के पद खाली हैं। जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी के पास कैथल बीडीपीओ की भी जिम्मेदारी है। ऐसे में जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी कंवर दमन सिंह को अधिकतर समय तो प्रशासनिक बैठकों में व्यस्त रहना पड़ता है। कई-कई जिम्मेदारी होने के कारण वे फील्ड में समय नहीं दे पाते हैं। इससे न केवल पंचायतों के कार्यों में देरी हो रही है, बल्कि ग्रामीण विकास योजनाओं का समय पर क्रियान्वयन भी मुश्किल हो रहा है।
अन्य जिलों में भी ठीक नहीं हालात
इसी प्रकार कुरुक्षेत्र जिले के पिहोवा ब्लाक व पिपली ब्लाक में खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी के पद खाली पड़े हैं। अंबाला जिले के शाह, अंबाला-1, शहजादपुर में पद रिक्त पड़े हैं। जिला पंचकूला के बरवाला में पद रिक्त पड़ा है। राज्यभर में कुल 60 बीडीपीओ के पद रिक्त पड़े हैं।
पंचायत मंत्री के गृह जिले में भी दो पद रिक्त
खास बात यह है कि हरियाणा के विकास एवं पंचायत मंत्री कृष्ण लाल पंवार के गृह जिले में भी बीडीपीओ के पद खाली पड़े हैं। उनके छह ब्लाक में से दो ब्लाक में बीडीपीओ के पद रिक्त पड़े हैं। पानीपत और सनोली ब्लाक में खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी नहीं है। यह समस्या न केवल प्रशासनिक स्तर पर बाधा उत्पन्न कर रही है, बल्कि जनता को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
कई बार लिख चुके उच्च अधिकारियों को : डीडीपीओ
जब जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी कंवर दमन सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वे इस समस्या को लेकर विभाग के उच्च अधिकारियों को कई बार लिख चुके हैं। फील्ड में बीडीपीओ की समस्या के कारण प्रशासनिक कार्यों में कई बार देरी होती है। एक अधिकारी कई जगहों पर जिम्मेदारी होने के कारण काम ठीक से भी नहीं हो पाता है। पंचायत ग्राम सभा के कार्यों के साथ प्रशासनिक बैठकों में भी बीडीपीओ को होना जरूरी होता है।
बिना बीडीपीओ ग्रामीण विकास की कल्पना बेमानी
जब राजनीतिक शास्त्र विभाग के प्रो. डा. अशोक कुमार अत्रि से बात की गई तो उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में शासन और प्रशासन का आपस का समन्वय काम करता है। बीडीपीओ वह प्रशासनिक अधिकारी है, जो योजनाओं को लागू करने का विशेषज्ञ होता है। अगर बीडीपीओ के पद खाली होंगे तो सरकारी योजनाओं को अमलीजामा पहनाना बेमानी लगता है। गांव के पंच सरपंच गांव के बहुमत द्वारा चुने होते हैं, लेकिन जो योजनाएं हैं, वे उनके विशेषज्ञ नहीं होते हैं। उन्हें नहीं पता होता कि फंड कहां से लिए जाए। वे काम करने वाले लोग होते हैं, लेकिन उन्हें फंड मुहैया करवाना, योजनाएं समझाना ये काम खंड विकास पंचायत अधिकारी का होता है।