आस्था पर राजनीति
सही मायनों में बालाजी तिरुपति लड्डू विवाद प्रसंग में शीर्ष अदालत की वह टिप्पणी देश के सभी राजनेताओं के लिये एक नजीर बननी चाहिए, जिसमें कोर्ट ने कहा कि आस्था को राजनीति से मुक्त रखना चाहिए। हाल के वर्षों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा आस्था को वोट जुटाने के सरल रास्ते के रूप में इस्तेमाल करने से तमाम तरह की विसंगतियां पैदा हुई हैं। दरअसल, जनाधार बढ़ाने की क्षमताओं से चूकते राजनेता अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिये धार्मिक विश्वासों के दोहन को सफलता का शार्टकट मानकर चल रहे हैं। पिछले दिनों में बालाजी तिरुपति से जुड़े लड्डू विवाद मामले में बिना जांच-पड़ताल के आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने जिस तरह पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी को लपेटने का प्रयास किया, उसे कोर्ट ने एक अनुचित परंपरा के रूप में देखा है। कहा जा रहा है कि नायडू ने अपना जनाधार बढ़ाने हेतु विपक्षी राजनेता की छवि धूमिल करने का प्रयास इस विवाद के जरिये किया है। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि नेतागण कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखें। खासकर संवैधानिक पदों पर विराजमान नेताओं को राजनीतिक लाभ के लिये अनर्गल बयानबाजी से बचना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर भी सख्त नाराजगी जाहिर की कि बिना अंतिम जांच व निष्कर्ष के सार्वजनिक रूप से लड्डू विवाद पर टिप्पणी करना न केवल गैर-जिम्मेदार रवैया था बल्कि लोगों की आस्था से खिलवाड़ भी है। वह भी तब जब इस मामले में जांच चल रही थी। वहीं दूसरी ओर अभी स्पष्ट नहीं है कि राजनीतिक लाभ के लिये जिस चर्बी वाले घी की कथित जांच-परिणामों का दावा किया जा रहा है, उसके बारे में ठीक-ठीक कहना मुश्किल है कि वास्तव में इस घी का ही प्रयोग लड्डू बनाने में किया गया था। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एक सार्वजनिक सभा में आरोप लगाया था कि पिछली सरकार के दौरान तिरुपति बालाजी के प्रसाद में पशु चर्बी का इस्तेमाल किया गया। जिसके बाद इस पर राजनीतिक क्षेत्रों व सार्वजनिक जीवन में खासा विवाद पैदा हो गया।
बताया जाता है कि इस विवाद के जरिये घी आपूर्ति करने वाली कंपनी तथा ठेकेदार व मंदिर प्रबंधन में पूर्व मुख्यमंत्री के परिजनों की भागीदारी को विवाद में लाने की कोशिश की गई। जिसके जरिये आंध्रप्रदेश की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी का कद छोटा करने की भी कोशिश हुई। रेड्डी ने खुलेआम नायडू पर राजनीतिक लाभ के लिये इस विवाद को तूल देने का आरोप लगाया। यहां तक कि मंदिर में प्रवेश में व्यवधान पैदा करने के मकसद से रेड्डी की धार्मिक आस्था पर भी सवाल खड़े किए गए। उनसे कहा गया कि वे निर्धारित फॉर्म में अपने धर्म का खुलासा करें। कहने को तो यह विवाद दो राजनीतिक दलों की लड़ाई का है मगर इस विवाद ने देश-विदेश में करोड़ों भक्तों की आस्था पर गहरी चोट पहुंचायी है। निस्संदेह, बालाजी तिरुपति मंदिर पर करोड़ों लोगों की गहरी आस्था है, इस विवाद को राजनीतिक लाभ का माध्यम बनाने से श्रद्धालुओं को खासा कष्ट हुआ। यह विडंबना ही है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोगों की धार्मिक आस्थाओं को राजनीतिक लाभ के लिये इस्तेमाल करने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। जिसमें कमोबेश सभी राजनीतिक दलों की भूमिका रही है। राजनेता अकसर विभिन्न धार्मिक स्थलों में उपस्थिति का खासा प्रचार राजनीतिक लाभ के लिये करते नजर आते हैं। वे लोगों की आस्था का लाभ अपने निहित स्वार्थों के लिये करते हैं। उन्हें लगता है कि जनाधार बढ़ाने का यह एक छोटा रास्ता है। विडंबना यह भी है कि आस्थावान लोग भी राजनेताओं की अनर्गल बयानबाजी को तर्क की कसौटी पर कस कर देखने से गुरेज करते हैं। यदि लोगों की दृष्टि तार्किक हो तो राजनेता उनकी भावनाओं से खिलवाड़ नहीं कर पाएंगे। सही मायनो में राजनेताओं की धार्मिक मामलों में इस तरह की दखलंदाजी हमारे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के भी खिलाफ है। जिस ओर देश की शीर्ष अदालत ने भी ध्यान खींचने का प्रयास किया है। जनता की सजगता व तर्कशीलता को बढ़ावा देकर ही ऐसी चुनौतियों का मुकाबला किया जा सकता है।