मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

प्रतिशोध की राजनीति

01:06 PM Aug 27, 2021 IST

केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के विवादित बोल के बाद शिव सैनिकों के उत्पात और राणे की गिरफ्तारी ने बदले की राजनीति का विद्रूप चेहरा ही उजागर किया। निस्संदेह मर्यादा दोनों ओर से लांघी गई। लेकिन शिव सेना सरकार ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का बदला जिस तरह सरकार की ताकत से लिया, वह भारतीय लोकतंत्र के लिये अच्छा संकेत तो कदापि नहीं है। राणे व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बीच टकराव कोई नयी बात नहीं है। कभी शिवसेना में बाला साहब ठाकरे का प्रिय होने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक हासिल करने वाले नारायण राणे को बाद में जिस तरह शिवसेना से बाहर का रास्ता दिखाया गया, उसमें उद्धव ठाकरे की भूमिका को राणे मुख्य मानते रहे हैं। तब राणे कांग्रेस में गये, अपनी पार्टी बनायी और फिर भाजपा में शामिल हो गये। कालांतर में राज्यसभा के रास्ते केंद्र सरकार में मंत्री पद हासिल करने में सफल रहे। फिलहाल राणे भाजपा द्वारा नये मंत्रियों के जरिये पूरे देश में शुरू की गई जन आशीर्वाद यात्रा के तहत जनसंपर्क अभियान में जुटे थे। वैसे तो वे पहले से ही शिवसेना के निशाने पर थे। यही वजह है कि महज चार दिनों में उनकी यात्रा के खिलाफ चालीस मुकदमें दायर किये गये थे, जिसमें कोरोना काल में कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन भी शामिल है। वहीं अगले साल देश के सबसे बड़े बजट वाले वृहन्नमुंबई नगर निगम के चुनाव को लेकर भी बिसात बिछनी शुरू हो गई है। इस विवाद को भी इसी कड़ी के विस्तार के रूप में देखा जा रहा है। वर्ष 2019 में जो भाजपा शिवसेना कार्यकर्ता कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव की तैयारी में जुटे थे, उन्होंने राणे के बयान के बाद हिंसा व पथराव में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। राजनीतिक टकराव के चलते महाराष्ट्र की कानून-व्यवस्था पर असर पड़ना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। जब राजनीति में मर्यादाएं टूटती हैं तो ऐसी अप्रिय स्थितियां ही पैदा होती हैं। निस्संदेह राणे की गिरफ्तारी भारतीय राजनीति में क्षरण की बानगी दिखाती है।

Advertisement

इसमें दो राय नहीं कि राणे द्वारा उद्धव ठाकरे के विरुद्ध की गई टिप्पणी अमर्यादित थी, जिसके चलते शिवसेना ने तल्ख प्रतिक्रिया दी। उनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गईं। शुरुआत में उन्हें अग्रिम जमानत भी नहीं मिली और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पुराने टकराव के चलते उद्धव ठाकरे ने भी सरकार की ताकत दिखाने में कोई देरी नहीं की। ऐसा भी नहीं है कि पहली बार किसी राजनेता ने ऐसा अमर्यादित बयान दिया हो। खुद विधानसभा चुनाव के दौरान उद्धव ठाकरे पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध ऐसा ही अपमानजनक बयान देने का आरोप लगा था। आये दिन ऐसे अमर्यादित बयान देने वाले नेताओं की यदि गिरफ्तारी होने लगे तो गिरफ्तार नेताओं की सूची खासी लंबी हो जायेगी। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताओं का मुकाबला राजनीति के जरिये करने के बजाय कानून की ताकत के जरिये करने की प्रवृत्ति दुर्भाग्यपूर्ण ही है। वैसे अतीत में भी राजनेता अपने विरोधियों के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बहुत कुछ कहते रहे हैं लेकिन भाषा को इतने निचले स्तर पर नहीं गिरने दिया जाता था। ये न तो समाज में स्वीकार्य है और न ही इसके बाद संसदीय व्यवहार सहजता से संभव हो पाता है। यही वजह है मुखर विरोध के बावजूद राजनेता आपसी व्यवहार की गुंजाइश बनाये रखते हैं। लेकिन धीरे-धीरे भारतीय राजनीति में मर्यादाओं को भंग करने का फैशन हो गया है। जो जितना ज्यादा तीखा व अप्रिय बोलता है, उसे जनता का ध्यान आकृष्ट करने का सक्षम जरिया मान लिया जाता है। राजनीतिक दलों को भी अपने मंत्रियों व नेताओं को मर्यादित भाषा के प्रयोग के लिये बाध्य करना चाहिए। दरअसल, जब नेता लक्ष्मण रेखा लांघते हैं तो कार्यकर्ता उससे कहीं आगे निकलकर मर्यादाएं भंग करने निकल पड़ते हैं, जिसका समाज पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। वहीं केंद्रीय मंत्री की गिरफ्तारी से एक संकेत यह भी है कि राज्य सरकारों की मनमानी कार्रवाई से देश के संघीय ढांचे पर भी आंच आती है।

Advertisement
Advertisement
Tags :
प्रतिशोधराजनीति