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असंतुष्ट-बेचैन आत्माओं का अंतिम ठिकाना राजनीति

04:00 AM Dec 04, 2024 IST

प्रदीप कुमार दीक्षित

दिग्गज राजनीतिज्ञ और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गूढ़ रहस्य की बात कही है कि राजनीति असंतुष्ट आत्माओं का सागर है। इस रहस्योद्घाटन से राजनीतिज्ञों के क्रिया-कलापों को समझने में मदद मिली है। यह सौ टके की बात है कि असंतुष्ट आत्माएं राजनीति के सागर में डुबकी लगाने के लिये बेताब रहती हैं। उन्हें पता होता है कि इससे उनका कुछ और हो न हो, आर्थिक रूप से तो कल्याण हो ही जायेगा। लोग उन्हें तवज्जो देने लगेंगे और उनकी सल्तनत कायम हो जायेगी। अपने सहपाठियों से आगे निकल जायेंगे और यह संयोग भी हो सकता है कि वे उनके बॉस बन जायें।
इस उद्घाटित रहस्य से यह भी समझने में मदद मिली है कि नेताओं की आत्मा क्यों असंतुष्ट और बेचैनी रहती है और चुनाव के निकट आने पर इसकी तीव्रता क्यों बढ़ जाती है। अपना दल क्यों बेकार लगने लगता है और पराए दल में क्यों आकर्षण नजर आता है। अपना दल के जीतने की संभावना न होने पर आत्मा को यह लगता है कि पांच वर्ष का वनवास क्यों भोगा जाये। इस अवधि में तो कितना ही पानी नदियों में बह जायेगा। लोग उन्हें भूल जायेंगे। वे न तो घर के रहेंगे और न ही राजनीति के। इससे उनकी असंतुष्ट आत्मा की बेचैनी और बढ़ जायेगी, इसीलिए वे दूसरे दल को अपना लेते हैं। वे जिस दल को अपना प्राणप्रिय बतलाते थे, अब उसे लुप्तप्राय बताने लगते हैं। नये दल में उन्हें उम्मीद का सूरज नजर आता है। यह बात अलग है कि नये दल में यदि उनकी आत्मा को मलाई नहीं मिलती है तो वहां भी उनकी आत्मा असंतुष्ट और बेचैन हो उठती है। किसी ने कहा है कि पैसा बहुत कुछ है, लेकिन सब कुछ नहीं। लेकिन असंतुष्ट आत्मा वाले राजनीतिज्ञ इसे नहीं मानते हैं। वे पैसे को ही सब कुछ मानते हैं। इसी वजह से उनकी आत्मा भटकती रहती है।
असंतुष्ट आत्माओं के कुछ उदाहरण खुद मंत्री जी ने दिये हैं कि पार्षद, विधायक बनना चाहता है और विधायक मंत्री। अब मंत्री चाहता है कि उसे अच्छा मंत्रालय मिले। अच्छा मंत्रालय मिलने पर वह मुख्यमंत्री बनना चाहता है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उसकी आत्मा संतुष्ट नहीं होती। उसे भय लगा रहता है कि उसे केंद्रीय नेतृत्व हटा नहीं दे। यही बात केंद्रीय स्तर पर राजनीति लागू करने वालों पर लागू होती है। अपने विभाग का बढ़िया काम रहे मंत्री की आत्मा सोचती है कि प्रधानमंत्री क्यों नहीं बना जा सकता। बस यहीं आत्मा असंतुष्ट हो जाती है। चर्चा में यह बात आ ही जाती है कि मंत्री जी की आत्मा असंतुष्ट और बेचैन है, उसे प्रधानमंत्री बनकर ही संतुष्टि मिलेगी।

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