हाेलियाना हो गयी पाॅलिटिक्स
अब देश 24x7 कामेडी, हंसी ठिठोली के मूड में रहता है। मुल्क की पॉलिटिक्स कतई होलियाना हो गयी है, कुछ भी सीरियस लेना मुश्किल है। आगरा में कई दुकानें होती थीं, हर दुकान पर बोर्ड लगा रहता कि रामबाबू परांठेवाले की असली दुकान यही है। यही हाल कई दलों का हो लिया है, सबका दावा कि असली यही है। पॉलिटिक्स परांठों के लेवल पर आ जाये, तो इसे पॉलिटिक्स का उत्थान माना जाये या परांठों का पतन- यह मुश्किल सवाल है।
आलोक पुराणिक
लेखक आर्थिक पत्रकार हैं।
बुरा ना मानो चुनाव है-कहने का वक्त है, यूं कहना यह चाहिए था-बुरा ना मानो-होली है। चुनाव के वक्त और होली के वक्त बुरा ना मानना चाहिए कोई कुछ भी कर सकता है, कुछ का कुछ कर सकता है। कुछ दिन पहले वो साथ साथ थे। जी अभी वो अलग अलग हैं। पर क्यों, जी वैचारिक मतभेद हो गये। हैं, इतनी जल्दी कैसे हो गये, परसों तक तो साथ थे। इनका विचार था कि उस राज्य की लोकसभा सीटों में से एक भी सीट अपने सहयोगी को ना देंगे। सहयोगी का विचार था कि कम से कम से दो सीटें तो मिलनी चाहिए। दोनों के विचार ना मिले, तो वैचारिक मतभेद हो गये। दोनों अलग अलग हो गये। जी कुरसी पर मेरा हक है, जी यह विचार उनका है। जी यह कुरसी सिर्फ मेरी है, यह विचार उनका था। दोनों के विचार अलग हो जाये, तो वैचारिक मतभेद हो जाता है।
कुरसी ही धर्म
जी यही वैचारिक मतभेद होता है। बाकी और काहे का विचार, कुरसी ही परम विचार है। पर वो तो कुछ दिन पहले संतुष्ट थे। नहीं, जी एक दिन पहले वह कुछ कम संतुष्ट हो लिये थे, और आज सुबह तक वो असंतुष्ट ही हो लिये थे। असंतुष्ट तो बंदा एक दिन में ही हो सकता है, उसमें कौन सी बात है। उस राज्य में कई दलों का गठबंधन है। पर हरेक दल अपने अपने हिसाब से कैंडिडेट घोषित किये जा रहा है। दूसरे वाले ने कहा, नहीं यह सीट तो हमारी ही है। पहले वाले ने कहा-अभी तय नहीं हुआ कि यह सीट आपकी ही है। तय न होगा, तो क्या सीट हमारी नहीं होगी। देखिये आप गठबंधन धर्म ना निभा रहे। देखिये कुरसी से बड़ा कोई ‘धर्म’ नहीं, कुरसी पकड़े रहने से बड़ा कोई कर्म नहीं है। हम धर्म कर्म वाले लोग हैं। नो नो नो नो। ...इस तरह से राजनीतिक विमर्श का पहला दौर खत्म हुआ। पर पर पर सबने हाथ में हाथ डाल कर फोटू खिंचाये।
‘...और कितना चेंज लेंगे आप’
वैसे पांच साल पहले बताया था उन्होंने कि जी फिर हुआ यूं कि पांच सालों बाद कुछ ना चेंज हुआ, नालियां वैसे की वैसे भरी रहीं, सड़कें वैसी की वैसी गड्ढे वाली रहीं। पब्लिक नाराज हो ली। फिर चेंज आ गया, जी अगले चुनाव के लिए उन्होंने कैंडिडेट ही चेंज कर दिया है। पब्लिक ने पूछा-आपने कहा था कि चेंज करेंगे, कुछ ना हुआ चेंज, सब वैसा का वैसा ही।
चेंज वालों ने बताया कि देखिये हमने कैंडिडेट चेंज कर दिया, हो लिया चेंज। आपने कहा था कि सड़कों, नालियों की हालत में चेंज लायेंगे। लो जी पूरा कैंडिडेट ही चेंज कर दिया, और कितना चेंज लेंगे आप। जी हालात चेंज करने थे, हालात। तो जी मान लें कि हमारे पुराने कैंडिडेट का नाम हालात था, उसे चेंज कर दिया, तो अब मान लें कि हो गये हालात चेंज। हमें परफारमेंस चाहिए,कुछ ठोस काम होना चाहिए। उस काम के आधार पर वोट मांगे जाने चाहिए। जी हमने चेंज कर दिया है, कैंडिडेट चेंज को ही सच्चा चेंज मान लीजिये। मानने के कैसे मान लें जी वो पुराना कैंडिडेट तो एक बार भी एरिया ना आया। जी तब ही तो चेंज कर दिया। पर आपने तो वादा किया था कि हालात चेंज कर देंगे। अगर यह कैंडिडेट भी काम ना करे, कुछ पऱफार्म ना करे, तो क्या करेंगे। जी अगली बार इसे भी चेंज कर देंगे, हमारी प्रतिबद्धता है चेंज के प्रति जी। हर इलेक्शन में ही चेंज कर देंगे कैंडिडेट।
पॉलिटिक्स की कॉमेडी पर हंसी-ठिठोली
पहले मैं होली के आसपास ही कॉमेडी, होली ठिठोली देखता था, फिर मैं पाकिस्तानी न्यूज चैनल देखने लग गया तो अब मैं 24×7 कामेडी, हंसी ठिठोली के मूड में रहता हूं। मुल्क की पॉलिटिक्स कतई होलियाना हो गयी है, कुछ भी सीरियस लेना मुश्किल है। आगरा में जमुना किनारे के पास कई दुकानें हुआ करती थीं, हर दुकान पर बोर्ड लगा रहता था कि रामबाबू परांठेवाले की असली दुकान यही है। कई दुकानें थीं, सबका यह दावा था कि असली यही है। यही हाल महाराष्ट्र में एक दल का हो लिया है, सबका दावा है कि असली यही है। पॉलिटिक्स परांठों के लेवल पर आ जाये, तो इसे पॉलिटिक्स का उत्थान माना जाये या परांठों का पतन माना जाये, मुश्किल सवाल है। नेता बुरा मानें या ना मानें, परांठे जरूर बुरा मान सकते हैं। कांग्रेस केरल में लेफ्ट के अपोजीशन में है, पर वैसे देश भर में लेफ्टवाले कांग्रेस को अपना फ्रेंड बताते हैं। कौन कहां है असल में, यह विकट कन्फ्यूजन है। ऐसा कन्फ्यूजन अगर फिल्मों में हो जाये, तो कुछ यूं होलियाना सीन बनते कि एक दिन गब्बर सिंह ठाकुर के घर जाकर गुड मॉर्निंग बोले और कहे कि ठाकुर क्या हुकुम है। ठाकुर चकरायमान होकर पूछते-क्या गब्बर यहां कैसे। गब्बर कहते -जी आज मैं आपके फ्रेंड की पोजीशन में हूं।
शुभकामनाएं कोई देता नहीं, सिर्फ फारवर्ड ...
पॉलिटिक्स भी गब्बर के लेवल पर आ गयी है जी, बुरा ना मानो चुनाव है। वैसे बुरा मान भी लेंगे तो कर क्या लेंगे जी।
खैर, होली पर कोई आपको शुभकामनाएं देता नहीं है, सिर्फ फारवर्ड करता है, टुन्नू से मिली फारवर्डेड शुभकामनाएं मुन्नू आगे चुन्नू को फारवर्ड कर देता है। समझ लीजिये मामला कितना फर्जी है, हम ना भेजते शुभकामना, हमारी शुभकामनाओं से हमारा ही ना भला हुआ आज तक, किसी और का क्या होगा। कोई उम्रदराज होने की शुभकामनाएं देता है तो खौफ आ जाता है कि कुछ देर बाद यह पेंशन स्कीम जैसा कुछ बेचने लग जायेगा। फोकटी में कोई किसी का शुभ ना चाहता। होली पर एक गोपी दूसरी गोपी को डपट सकती है कि तूने पिछली होली पर फेसबुक पर मेरी फोटू को लाइक नहीं किया था, तुझे मैंने अनफ्रेंड कर दिया था। क्यों खेलूं तेरे साथ होली।
टीवी चैनलों की मुश्किल
टीवी चैनलों की आफत है होली हर साल आती है, कुछ नया दिखाना है। होली खेले रघुबीरा अवध में-अमिताभ बच्चन का यह होली गीत अब कतई फर्जी मालूम होता है। अमिताभ बच्चन सरीखा शाणा मानुष होली खेलने में टाइम वेस्ट नहीं करता, यह सब जानते हैं। होली खेले रघुबीरा के नृत्य के दौरान भी अगर उनपे आफर आ जाये कि प्लीज इस रंग का प्रचार कर दो, तो गीत को रोककर बच्चन साब कह देंगे- इसी रंग से खेलें होली, होली स्पांसर्ड बाय....। -अमिताभ बच्चन गीत रोककर ब्रांड एंबेसडर बन जायेंगे।