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राजनीतिक असंवेदनशीलता से बढ़ता स्वास्थ्य जोखिम

08:35 AM Oct 19, 2024 IST
राजनीतिक असंवेदनशीलता से बढ़ता स्वास्थ्य जोखिम
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ज्ञाानेन्द्र रावत

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दिल्ली में कूड़े के पहाड़ गंभीर समस्या बन चुके हैं, और इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी चिंता जताई है। प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए गठित विशेष कार्यबल की बैठक में कचरे के निपटान में हो रही देरी पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने सभी संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ मिलकर कचरा निपटान के लिए मौजूदा कानूनों के सख्त अनुपालन और कचरे से बिजली बनाने की योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। इसके साथ ही, सड़कों और निर्माण गतिविधियों में धूल नियंत्रण के उपायों को भी प्राथमिकता देने की बात की गई।
वास्तव में स्वच्छ भारत मिशन का मुख्य उद्देश्य दिल्ली में वर्षों से जमा कूड़े के ढेरों को समाप्त करना था, जो अब पहाड़ की शक्ल ले चुके हैं। यह मिशन 2 अक्तूबर, 2014 को शुरू हुआ, और एक महत्वपूर्ण पड़ाव 1 अक्तूबर 2021 को आया जब एसबीएम-2.0 की शुरुआत हुई। इस योजना के तहत कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया, और यह सुनिश्चित किया गया कि भविष्य में ऐसी समस्याएं न उभरें।
केंद्र सरकार ने कूड़े के ढेरों को समाप्त करने के लिए 3000 करोड़ रुपये से अधिक की योजना शुरू की थी, जिसमें राज्यों से सक्रिय भागीदारी की अपेक्षा की गई थी। हालांकि, राजनीतिक दांवपेच के चलते इन कूड़े के पहाड़ों का निवारण अब तक नहीं हो सका है। आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में केवल 15 फीसदी कूड़े के पहाड़ कम हो पाए हैं, जिसकी आवास और शहरी विकास मंत्रालय द्वारा भी पुष्टि की गई है। यह स्थिति समस्या के समाधान में अनिच्छा और समन्वय की कमी को दर्शाती है।
देश में 2,421 कूड़ाघर हैं, जहां 1,000 टन से अधिक ठोस कचरा जमा है। आवास और शहरी विकास मंत्रालय के अनुसार, कूड़े के पहाड़ों में लगभग 15,000 एकड़ जमीन पर 16 करोड़ टन से ज्यादा कचरा फंसा है, जिसका निस्तारण एक बड़ी चुनौती है। प्रयासों के बावजूद, केवल 470 स्थानों को पूरी तरह साफ किया जा सका है, जबकि 730 साइटें अभी तक निस्तारण की प्रक्रिया से बाहर हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि नगर निकायों के पास कचरे के निस्तारण की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है।
कुछ राज्यों की बात करें तो इस मामले में गुजरात शीर्ष पर है, जहां 202 लाख टन ठोस कचरे में से केवल 10.73 लाख टन कचरे का ही वहां निस्तारण होना बाकी है। जबकि देश की राजधानी दिल्ली में 203 लाख टन ठोस कचरे में से 126.02 लाख टन कचरे का निस्तारण अभी बाकी है। महाराष्ट्र में 388 लाख टन में से 242 लाख टन, पंजाब में 73.62 लाख टन में से 37.73 लाख टन, मध्य प्रदेश में 63.23 लाख टन में से 47.68 लाख टन, जम्मू-कश्मीर में 22.10 लाख टन में से 21.08 लाख टन, उत्तराखंड में 14.12 लाख टन में से 7.36 लाख टन और छत्तीसगढ़ में 6.54 लाख टन में से 0.52 लाख टन कचरे का निस्तारण अभी बाकी है। आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के अनुसार 1,250 डंप साइटों में कूड़ा निस्तारण का काम पिछले दिनों शुरू कर दिया गया है।
राजधानी दिल्ली में लाख कोशिशों के बावजूद कूड़े के पहाड़ खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। यहां चार बार तो समय सीमा भी बदली जा चुकी है। सरकार, नगर निगम के बीच दांवपेच के चलते अभी तय की गयी दिसम्बर, 2028 की समय सीमा में फिर बदलाव हो सकता है। दिल्ली में गाजीपुर, ओखला और भलस्वा ये तीन मुख्य लैंडफिल साइटें हैं। यहां ओखला और भलस्वा में कचरा निस्तारण का काम बंद पड़ा है। गाजीपुर लैंडफिल साइट पर निस्तारण प्रक्रिया की धीमी गति के कारण, वहां 30 लाख मीट्रिक टन कूड़े का निस्तारण होना चाहिए था, लेकिन अब तक केवल 12 लाख मीट्रिक टन कचरे का ही निस्तारण हो सका है।
वहीं, नगर निगम की स्थायी समिति के गठन में विलंब के कारण नरेला-बवाना में 3000 टन प्रतिदिन और गाजीपुर में 2000 टन प्रतिदिन कचरे से बिजली बनाने वाले नए प्लांट की योजना स्वीकृति न मिलने के चलते अधर में लटकी हुई है। तेहखंड लैंडफिल पर भी लगे कूड़े से बिजली बनाने के प्लांट की कूड़ा निस्तारण क्षमता में 1000 टन रोजाना बढ़ोतरी की योजना भी अधर में लटक गयी है।
मौजूदा हालात पर नजर डालें, तो गाजीपुर, ओखला और भलस्वा लैंडफिल साइटों में कुल 159.87 लाख टन कचरा मौजूद है। यदि निस्तारण की गति इसी रफ्तार से बनी रही, तो उम्मीद है कि 2028 तक इन कूड़े के पहाड़ों को खत्म किया जा सकेगा। यह बात दीगर है कि कूड़े के पहाड़ पहले से कुछ कम जरूर हुए हैं। लेकिन इनके आसपास रहने-बसने वाले लोग, प्रदूषित व जहरीला पानी पीने से संक्रामक रोग, बुखार, किडनी में पथरी सहित पेट के रोगों और जहरीली बदबूदार हवा में सांस लेने के चलते फेफड़े, आंत्रशोथ, हृदय रोग के शिकार होकर मौत के मुंह में जाने को विवश होंगे।
वास्तव में जानलेवा बीमारियों की चपेट में आकर अनचाहे मौत के मुंह में चले जाना इन लोगों की नियति बन गयी है। जब तक इन कूड़े के पहाड़ों की समस्या हल नहीं हो जाती तब तक आसपास बसी बस्तियों के लोगों को इन जानलेवा बीमारियों से निजात मिलना मुश्किल है।

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