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अमेरिकी सीक्रेट सर्विस चूक के राजनीतिक निहितार्थ

07:01 AM Jul 25, 2024 IST
अमेरिकी सीक्रेट सर्विस चूक के राजनीतिक निहितार्थ
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पुष्परंजन

भारत में इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी का स्टाफ लगभग 25 हज़ार है। उससे तीन गुना कम अमेरिकी सीक्रेट सर्विस का स्टाफ है। मात्र 8 हज़ार। यूएस गवर्नमेंट एग्जीक्यूटिव की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘2021 में अमेरिकन सीक्रेट सर्विस में लगभग 7,600 कर्मियों की तैनाती थी, जून, 2024 तक 400 स्टाफ और जुड़े। वित्तीय वर्ष 2026 तक इस संख्या को लगभग 10,000 कर्मचारियों तक बढ़ाने की योजना है।’ क्या स्टाफ की कम संख्या की वजह से वीवीआईपी सुरक्षा लचर रही, या फिर ये हैं ही वैसे? पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप पर हमले के बाद से यह सवाल, अमेरिकी सोशल मीडिया पर ज़ेरे बहस रहा है।
इंटेलिजेंस ब्यूरो के कर्मचारियों की संख्या बढ़ा भर देने से हमले रोके जा सकते हैं थे, तो महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या नहीं हुई होती। वर्ष 1967 की भुवनेश्वर चुनावी रैली को याद कीजिये, जब पत्थरबाज़ी में इंदिरा गांधी की नाक पर गंभीर चोट लगी। सूचना तंत्र मज़बूत होता, तो दो अक्तूबर, 1986 को राजघाट पर करमवीर सिंह नामक शख्स तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर गोली नहीं चला पाता। वहीं 5 जनवरी, 2022 को फ़िरोज़पुर दौरे के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफ़िले में सुरक्षा चूक नहीं हुई होती। लेकिन सवाल है कि जब अमेरिका महफूज़ नहीं है, तो दुनिया का कौन-सा हिस्सा सुरक्षित है? यह सवाल विक्रम-बेताल की तरह हमारे कंधों पर टंगा रहेगा। अमेरिकी सीक्रेट सर्विस की निदेशक किम्बर्ली चीटल का इस्तीफा दिया जाना, उन अटकलों को मज़बूत करता गया, जो इनकी क्षमता से लेकर ‘कॉन्सपिरेसी थ्योरी’ तक केंद्रित थी।
ट्रंप पर गोली दागने वाली घटना के प्रकारांतर अमेरिकी सीक्रेट सर्विस की निदेशक किम्बर्ली चीटल सोमवार को कांग्रेस की एक समिति के सामने पेश हुईं, तो न तो जनता, और न ही कांग्रेस को इस बारे में ज़्यादा जानकारी मिली। चीटल ने स्वीकार किया कि ट्रम्प की रैली में हुई शूटिंग से हमारे एजेंट बेख़बर थे। अमेरिकी ख़ुफ़िया प्रमुख और आंतरिक मंत्रालय की चुप्पी ने भारत समेत दुनियाभर में अटकलों का बाज़ार गर्म किया था। भारतीय सोशल मीडिया के तुर्रम ख़ान, ख़म ठोक कर कहने लगे कि हो न हो, यह सारा कुछ ट्रंप का किया धरा है, जिससे चुनावी तस्वीर उनके पक्ष में बदल जाये।
रिपब्लिकन इस पर अड़े हुए थे, कि दो साल की अवधि में सीक्रेट सर्विस के अधिकारियों ने ट्रम्प के सार्वजनिक कार्यक्रमों में अधिक एजेंटों और मैग्नेटोमीटर के लिए बार-बार अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया, बाहरी स्थानों के लिए अतिरिक्त स्नाइपर्स देने से भी मना किया था। मंगलवार को सीक्रेट प्रमुख पद से इस्तीफा देने से पहले चीटल ने कांग्रेस से कहा, ‘जिस दिन यह काण्ड हुआ, जितना अनुरोध ट्रंप की तरफ से किया गया था, उन्हें दिया गया।’ सोशल मीडिया इस घटना को लेकर दो खेमों में बंटा हुआ था। जो लोग पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप को लोकतंत्र के लिए खतरा मानते थे, उन्होंने इसे एक फर्जी घटना बताकर खारिज कर दिया। एक्स और टेलीग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म, ‘प्री-प्लांड’ और ‘मंचित किये जाने’ वाले आरोपों के पोस्ट से भर गए। एलन मस्क तक ने एक्स पर सवाल कर दिया, ‘एक स्नाइपर को पूरी राइफल किट के साथ राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के सबसे नज़दीकी छत पर रेंगने की अनुमति कैसे दी गई?’
अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्था की जो धाक समय-समय पर दुनियाभर में ज़माने की कोशिशें होती रही, ट्रंप कनपट्टी काण्ड से धराशायी हुई है। अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ 1 कैनेडी की 22 नवंबर, 1963 को टेक्सास के डलास में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उनके हत्यारे का नाम था, ली हार्वे ओसवाल्ड, जो एक पूर्व अमेरिकी मरीन था। जेम्स अर्ल रे एक अनजान सा अमेरिकी भगोड़ा था, जिसने 4 अप्रैल, 1968 को मार्टिन लूथर किंग ‘जूनियर’ की हत्या कर दी थी। कैनेडी और किंग की हत्याओं के बाद कई लोगों को यह स्वीकार करने में कठिनाई हुई कि एक अकेला, परेशान, महत्वहीन व्यक्ति इतिहास बदल सकता है।
अधिकांश लोग सीक्रेट सर्विस को एक ऐसा संगठन मानते हैं, जो राष्ट्रपति और हाई प्रोफ़ाइल शख्सियतों की सुरक्षा करता है। 1865 में जब इसकी स्थापना हुई थी, तब सीक्रेट सर्विस यूएस ट्रेजरी विभाग का हिस्सा थी। इसका काम धोखाधड़ी और नकली मुद्रा का पता लगाना था। 20 साल बाद सीक्रेट सर्विस ने तत्कालीन राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड को अनौपचारिक सुरक्षा प्रदान करना शुरू किया। 6 सितम्बर, 1901 को राष्ट्रपति विलियम मैककिनले की हत्या के बाद, सीक्रेट सर्विस ने राष्ट्रपतियों की सुरक्षा को अपने आधिकारिक कर्तव्यों में शामिल कर लिया। सीक्रेट सर्विस अभी भी वित्तीय अपराधों, धोखाधड़ी की जांच करती है, और हाई प्रोफ़ाइल शख्सियतों को सुरक्षा संबंधी जानकारी प्रदान करती है। वर्ष 2003 में सीक्रेट सर्विस को होमलैंड सुरक्षा विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया था।
लेकिन, पिछले एक दशक में कुछ ऐसी घटनायें हुईं, जिससे सीक्रेट सर्विस विवादों में घिरी रही है। वर्ष 2011 में सेमी-ऑटोमैटिक राइफल से लैस एक बंदूकधारी ने व्हाइट हाउस पर कई गोलियां चलाईं। वर्ष 2014 में चाकू के साथ एक घुसपैठिया व्हाइट हाउस की बाड़ फांदकर सामने के दरवाजे से अंदर चला गया था। 2015 में कथित तौर पर नशे में धुत एजेंटों ने व्हाइट हाउस में एक कार को दुर्घटनाग्रस्त कर दिया था। जो ट्रंप आज सीक्रेट एजेंसी के राजनीतिकरण का आरोप लगा रहे हैं, उन्होंने अपने समय में उसका दुरुपयोग भी किया था। 6 जनवरी 2021 को ‘कैपिटल हिल विद्रोह’ के समय ख़ुफ़िया एजेंटों ने ट्रंप के कहने पर टेक्स्ट मैसेजेज को हटा दिया था।
मगर, सवाल यह कि सीक्रेट सर्विस के डायरेक्टर पद से किम्बर्ली चीटल के इस्तीफे के बाद से यह क्या चुनावी मुद्दा नहीं बनेगा? डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस के राजनीतिक स्वास्थ्य के लिए यह सवाल कितना हानिकारक साबित होता है, उसका पता कुछ दिनों बाद ही चल पायेगा। फ़िलहाल, रोनाल्ड रोव, यूएस सीक्रेट सर्विस के कार्यकारी डायरेक्टर बनाये गए हैं। दो राजनीतिक दलों का एक पैनल इस पूरे कांड की जांच करेगा। पैनल में सात रिपब्लिकन, और छह डेमोक्रेट बैठेंगे। यह ठीक 11 सितंबर मॉडल का आयोग होगा, जिसमें व्यापक सम्मन शक्ति होगी।
27 नवंबर, 2002 को 9/11 आयोग की स्थापना की गई थी, जिसका उद्देश्य विश्व इतिहास में सबसे घातक आतंकवादी हमलों के सभी पहलुओं की जांच करना था। 9/11 आयोग की अध्यक्षता थॉमस कीन ने की थी, जिसमें पांच डेमोक्रेट और पांच रिपब्लिकन शामिल थे। 22 जुलाई, 2004 को 9/11 आयोग की रिपोर्ट जब आई, अमेरिकी जनता ने उसे निर्विवाद रूप से स्वीकार किया था। लेकिन, ट्रंप काण्ड पर जो आयोग बना है, उसके राजनीतिक निहितार्थ सीधा अमेरिकी मतदाताओं को प्रभावित करेंगे। क्या वह सर्वस्वीकृत होगा? इस पर शक़ ही है।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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