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सुक्खू के साहसिक फैसलों में सियासी दूरदृष्टि

06:58 AM Aug 05, 2024 IST
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ज्योति मल्होत्रा

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अवश्य ही हिंदी अंचलों के रूपक ‘राजा-रंक’ से बहुत अच्छी तरह वाफिक होंगे, यह द्योतक है उस बड़े अंतर का, जो मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होने वालों और उन मां-बाप के औलादों के बीच है जिन्हें दो जून की रोटी जुटाने के लिए दिन-रात कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। इस साल मार्च महीने में शिमला की सीली सर्दी में -सार्वजनिक स्थानों पर और बंद कमरों में- राजनीतिक कानाफूसी जमकर चली होगी, विद्रोही और वफादार खेमों में एक जैसे संकेत देते हुए, जब कांग्रेस के अपने विधायक विक्रमादित्य सिंह ने मुख्यमंत्री सुक्खू के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया और राज्य सरकार को लगभग तोड़ ही डाला था।
कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के दक्षिण भारतीय चतुर नेताओं के साहसिक प्रयासों से जमे घी को आग पकड़ने से पहले अलग किया जा सका। क्योंकि हिमाचल प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे और रामपुर बुशहर के पूर्व राजा वीरभद्र सिंह के पुत्र पहले तो इस इंतजार में रहे कि शायद कांग्रेस हाईकमान बगावत में उनका साथ देगा और सामान्य वर्ग से आते मुख्यमंत्री की जगह गद्दी उन्हें मिल जाएगी। लेकिन सुक्खू भी अपना मास्टर कार्ड खेल गए। हिमाचल पथ परिवहन निगम के पूर्व कंडक्टर के बेटे सुक्खू ने दिखा दिया कि वे पार्टी में सबसे निचले स्तर से उठकर यहां तक पहुंचे हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार खत्म करने का वादा किया, ठीक वैसे ही जैसे कि हाई कमान के गांधी परिवार के लोग करने पर जोर देते हैं। वे भाजपा के दिए लालचों में कभी नहीं फंसे। अंत में विक्रमादित्य सिंह डगमगाए तो लेकिन छह अन्य साथी कांग्रेसी एवं तीन आजाद विद्रोही विधायकों की तरह पार्टी नहीं छोड़ी, इन छह बागी कांग्रेसी विधायकों में चार उपचुनाव में हार गए। देखा जाये तो अब अवश्य ही वे विधायक किस्मत के फेर को कोस रहे होंगे। इतना ही नहीं, विक्रमादित्य सिंह मंडी लोकसभा सीट से भाजपा की कंगना रनौत से भी हार गए– जो कि सुक्खू का अन्य मास्टर कार्ड रहा, जब उन्होंने अपने इस युवा और कुलीन साथी को उत्साहित करते हुए, आसमान छूने के लिए, चुनावी रण में उतार दिया। मार्च महीने के विद्रोह के बाद खाली हुई सीटों में एक पर अपनी पत्नी कमलेश ठाकुर को जितवा कर सुक्खू ने अपनी स्थिति आगे और मजबूत कर ली है।
लेकिन यह राजनेता दूसरोंं के जैसा नहीं जो अपनी उपलब्धियों पर संतुष्ट होकर बैठ जाए। जहां पड़ोसी राज्य पंजाब से अनेक मुफ्त की रेवड़ियों की वजह से अपनी राजकोषीय स्थिति संभाले नहीं संभल रही, विशेषकर दशकों से दी जा रही मुफ्त की बिजली के चलते, वहीं हिमाचल के सुक्खू 2022 में हर परिवार को 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने के अपने चुनावी वादे से पीछे हट गए हैं। हाल ही उन्होंने संपन्न वर्ग के लिए बिजली सब्सिडी खत्म करने की घोषणा की है।
नए बिजली सुधार में कुछ शर्तें हैं, यह केवल उन पर लागू होगा जो आयकर चुकाने वाली श्रेणी में हैं, बाकियों के लिए भी मुफ्त की बिजली 300 से घटाकर 125 यूनिट कर दी गई है– पिछली भाजपा सरकार ने भी ठीक यही चुनावी वादा किया था। बिजली सब्सिडी केवल ‘एक परिवार-एक मीटर’ के आधार पर ही मिलेगी । यह पंजाब की तरह नहीं, जहां अमीरों ने मुफ्त बिजली की ऊपरी सीमा 300 यूनिट के भीतर बनाए रखने को एक ही घर में कई-कई मीटर लगवा लिए और संबंधित अधिकारी इस मामले में खुद को असहाय बताते हैं। अब हिमाचल में सभी बिजली कनेक्शन आधार कार्ड या राशन कार्ड से जुड़े होने जरूरी हैं। जिन्होंने नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लिए बगैर मीटर लगा रखे हैं उन्हें पूरा भुगतान करना पड़ेगा।
सुक्खू का यह कदम वह ध्यान नहीं खींच पाया जिसके वह हकदार हैं, लेकिन वे पूरी तरह इसके काबिल हैं। देशभर में बिजली जैसे लोकलुभावन विषय में सुधारक उपाय करने पर राजनेता विशेष रूप से कतराते हैं– लेकिन हिमाचल प्रदेश और पंजाब के बीच तुलनात्मक अंतर विशेष रूप में काफी अधिक है। हिमाचल की कुल 77 लाख जनसंख्या पंजाब की 3.17 करोड़ के सामने बहुत कम है, अधिकांश इलाका भी उपजाऊ मैदानी न होकर पहाड़ी है, साथ ही भरपूर पानी और मुफ्त की बिजली डकारने वाली गेहूं-चावल जैसी फसलें उगाने पर निर्भरता भी बहुत कम है। सुक्खू चतुर हैं। अपने सूबे को लेकर उनकी महत्वाकांक्षा स्पष्ट दिखाई देती है– उन्हें मालूम है यदि हिमाचल प्रदेश बढ़िया कर दिखाएगा तो यह उनके खुद के लिए भी अच्छा होगा। अपनी आस्तीन और बाहर पल रहे सांपों का फन कुचलकर उन्होंने अपनी स्थिति सफलतापूर्वक मजबूत कर ली है। उल्लेखनीय है कि बीती फरवरी में राज्यसभा के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ वोट डालने वालों को ‘काला नाग’ कहा गया गया था। इस उपलब्धि ने उन्हें लोगों की जेब से पैसा निकलवाने वाले अति-संवेदनशील विषय को छूकर राजनीतिक जोखिम उठाने के काबिल बनाया है।
सोशल मीडिया के इस युग में, जहां तारीफ हाथों-हाथ मिल जाती हैं, यह कृत्य काफी श्रेयस्कर है। केवल दक्षिण भारत के कुछ अमीर राज्य जैसे कि केरल और तमिलनाडु, इस विषय को छू पाएं हैं, वह भी काफी घबराहट के बाद। सुक्खू ने स्पष्ट रूप से उनका अनुसरण किया है। केरल ने नवम्बर, 2023 में मुफ्त बिजली को सीमित करते हुए केवल 30 यूनिट कर दिया था। तमिलनाडु में सिर्फ 100 यूनिटें मुफ्त हैं। सुक्खू ने कहा कि राज्य के सिर पर बहुत भारी कर्ज है, कुल ऋण 85000 करोड़ रुपये पार कर चुका है, केवल 2023-24 में ही राज्य बिजली बोर्ड का घाटा 1800 करोड़ रुपये रहा, जबकि राज्य सरकार ने 950 करोड़ रुपये बतौर सहायता राशि भी दिये हैं। हालांकि नए सुधारक उपायों से केवल 200 करोड़ रुपये ही बचने की उम्मीद है। लेकिन फिर यह भी तो देखने लायक है कि कौन-कौन हैं जिनकी जेब से पैसा निकलेगा– तमाम मौजूदा और पूर्व मंत्री, सभी वर्तमान और पूर्व सांसद एवं विधायक, तमाम आईएएस एवं आईपीएस, राज्य-काडर के अफसर, प्रथम और द्वितीय श्रेणी के सभी अधिकारी और वे सब जो आयकर चुकाते हैं। इस विषय में सुक्खू स्पष्टतः न केवल उत्तर भारत के शेष मुख्यमंत्रियों के लिए बल्कि बाकी पूरे भारत के लिए भी एक रोल मॉडल बनकर उभरे हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की भांति, जिन्होंने हालिया प्रस्तुत बजट में खाद्य, खाद और ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी को 7.8 प्रतिशत घटाया है यानी 413,466 करोड़ रुपये से 381,175 करोड़ रुपये। सुक्खू उन राजनेताओं में से हैं जिन्हें यह समझ है कि राजकोषीय बही-खाते को संतुलित रखना कितना महत्वपूर्ण है। उन्हें मालूम है अगला चुनाव तीन साल बाद है, इसलिए नाखुशगवार फैसलों की चुभन से पहले पार पा लेना ज्यादा सही विचार है। कहा जा रहा है कि अगला नम्बर पानी पर दी जाने वाली सब्सिडी का है– फिलहाल पूरे सूबे में पेयजल मुफ्त बराबर है– यहां तक कि महिलाओं को सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा वाले फैसले पर भी पुनर्विचार हो सकता है। वे उन स्कूलों का भी विलय करने की सोच रहे हैं जहां विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम है यानी प्रत्येक कक्षा में पांच से कम छात्र। इनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों को उन जगहों पर भेजा जाएगा जहां अध्यापक कम हैं और इन फालतू भवनों का उपयोग पुस्तकालय के रूप में किया जाएगा।
भले ही कथनी और करनी में अभी काफी अंतर है। लेकिन यदि सुक्खू अपने पहाड़ी सूबे की आर्थिकी में सुधार लाने में सफल रहते हैं तो वे उस समूह से अलग अपनी पहचान बना लेंगे जो स्थाई रूप से दिल्ली दरबार की जी-हजूरी करने में लगा रहता है ...और उन्हें यह करने से इंकार है। लेकिन अभी यह बताना जल्दबाजी होगी। यदि लक्षण वही रहे, जो दिखाई दे रहे हैं, तो सुखविंदर सुक्खू का सफर देखना रोचक रहेगा।

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