सियासी रंग बदलती गिरगिटी टोपियां
मनीष कुमार चौधरी
यह टोपी कोई आम टोपी नहीं है। यह देश के नेता की टोपी है। जिस नेता के सिर चढ़ी, वैसा ही रंग इस पर चढ़ गया। मूल रूप से इस टोपी का जन्म आजादी के बाद माना जाना चाहिए। तब से आज तक नेता की इस टोपी ने कई रंग देखे और बदले। अंग्रेजों के जमाने में भी नेता टोपी पहनता था, पर फिरंगियों की कैप व हैट के आगे इसकी पूछ नहीं थी। वह लाख चाहकर भी रंग नहीं बदल पाती थी। पहले नेताजी ने इसे गोद लिया हुआ था।
बचपन इसका कांग्रेस में बीता, जनसंघ की पाठशाला में पढ़ी, जवान होते-होते यह सोशलिस्ट हो गई। नेता ज्यों-ज्यों पार्टियां बदलता रहा, टोपी भी बदलती रही। कम्युनिस्टों की गलियों और मार्क्सवादियों के मोहल्लों से भी यह गुजरी। बाद में निर्दलियों ने इसे लपक लिया। जब नेता ने वाद सिर पर ढोने शुरू किए तो टोपी इन वादों की भूलभुलैया में हिचकोले खाने लगी। पहले इस पर समाजवाद का भूत चढ़ा, फिर संप्रदायवाद से होते हुए राष्ट्रवाद के रंग में रंग गई। जब राजनीति का आर्थिक उदारीकरण हुआ तो पूंजीवाद की चपेट में आ गई। नेता अपने चरित्र बदलता रहा, टोपी भी उसी रंग में रंगती गई। नेता धर्म और जाति अनुसार टोपी बदलने पहनने लगा तो टोपी भी धर्मप्रधान और जातिवादी हो गई।
रंग बदलने के क्रम में धीरे-धीरे टोपी गिरगिट हो गई। जब जैसा वक्त आया, वैसा रंग धारण कर लिया। कुछ यूं कि नेता कमजोर हो गया, टोपी शक्तिशाली हो गई। बेशर्म राजनीति के बेशर्म रंग चढ़ा कर यह थोड़ी उद्दंड भी हो चली थी। इसने राजनीति में खुद को इतनी मजबूती से स्थापित कर लिया कि कोई नेता अब अपने पसंद के रंग की टोपी नहीं पहन सकता। टोपी में वाद, पार्टी, जाति, धर्म.. इस तरह घुसकर एकमेव हो गये कि वह राजनीति का चरित्र बन गई है। अब ऐसा नहीं है कि नेता किसी भी रंग की टोपी पहन राजनीति का स्वांग रच ले। उसे रंग देख टोपी पहनने की जरूरत महसूस होने लगी।
पहले नेता की फितरत के अनुसार टोपी रंग बदलती थी, अब टोपी अपने आप में इतनी समर्थ हो गई कि अलग-अलग रंगों को मिलाकर नया रंग देने लगी। कभी वह लाल रंग में नजर आती तो कभी सफेद रंग में...। कभी हरे में दिखती... तो कभी हरा और पीला मिक्स कर केसरिया बन जाती। सफेद टोपी से शुरू हुआ यह सफर इतना रंगबिरंगा हो गया कि राजनीति की कालिख उसमें छुप गई। नेता की अलमारी में सभी रंगों की टोपियां रखी जाने लगीं। जब जैसा अवसर आया, उस रंग की टोपी पहन ली। नेता भले ही खादी का झक सफेद कुर्ता पहन ले, उसे जेबों में विभिन्न रंगों की टोपियां समेटकर रखनी पड़ती हैं। कौन जाने कब किस रंग की टोपी की आवश्यकता पड़ जाए।