सियासी मंथन से मैली यमुना में और कड़वाहट
अवधेश कुमार
हर साल छठ पर्व के समय दिल्ली में यमुना की प्रदूषित स्थिति और ज़हरीले तत्वों के कारण राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की स्थिति बन जाती है। समाचार माध्यमों के लिए यह एक प्रमुख मुद्दा बन जाता है, जिसमें नेताओं और विशेषज्ञों के बयान भी शामिल होते हैं। हालांकि, इस विवाद के बीच यमुना की दुखद सच्चाई उजागर होती है। हर वर्ष यही परिदृश्य दोहराया जाता है, जिससे समस्या का समाधान नहीं हो पाता।
हाल ही में दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने यमुना में डुबकी लगाई, जिसका व्यापक प्रचार हुआ। इसके बाद उन्हें अस्पताल जाना पड़ा, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यमुना का पानी कितना हानिकारक है। उनका यह स्टंट केवल नाटकीयता के लिए था, जबकि असलियत यह है कि यमुना के पानी की स्थिति से हर व्यक्ति परिचित है। छठ पर्व के दौरान हम महिलाओं और पुरुषों को गंदे और झागदार जल में डुबकी लगाते देखते हैं, लेकिन यह सोचने वाली बात है कि वे अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए किससे शिकायत करें। इस मुद्दे को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।
दिल्ली के पुराने लोग बताते हैं कि वे यमुना का पानी पीते थे, इसमें स्नान करते थे और इसका उपयोग खाना बनाने में करते थे। लेकिन आज की स्थिति यह है कि लोग यमुना के पानी को घर में पूजा-पाठ या किसी अन्य कर्म के लिए रखने का साहस भी नहीं जुटा सकते। कोई आस्थावान व्यक्ति भी नहीं चाहेगा कि उसके घर में पवित्रीकरण के लिए यमुना का जल हो। यह स्थिति न केवल यमुना के प्रदूषण को दर्शाती है, बल्कि हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति भी एक गंभीर सवाल खड़ा करती है।
हालांकि, यह नहीं सोचना चाहिए कि यमुना के जल पर निर्भर रहने वाले लोग दिल्ली में समाप्त हो गए हैं। यमुना के किनारे बसे पुराने लोग आज भी अपनी जीविका के लिए इस नदी में उतरते हैं, भले ही यह प्रदूषित हो। इन लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर इससे होने वाले प्रभावों पर शोध हुए हैं, जो चिंताजनक हैं। यमुना में गोताखोरों का एक बड़ा व्यवसाय रहा है, और आज भी यह पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। यमुना के प्रदूषण के कारणों और इसे ठीक करने के लिए आवश्यक कदमों पर कई सरकारी और गैर-सरकारी अध्ययन और रिपोर्टें उपलब्ध हैं। इनमें स्पष्ट है कि दिल्ली के कारखानों से निकलने वाले ज़हरीले रसायन और दूषित जल यमुना में मिलते हैं। इसलिए आवश्यक है कि यमुना में आने वाले सभी प्रदूषित तत्वों का शुद्धीकरण किया जाए, ताकि नदी को पुनर्जीवित किया जा सके।
दिल्ली में यमुना की लंबाई 22 किलोमीटर है, जो कुल 1370 किलोमीटर के दो प्रतिशत से भी कम है। फिर भी, यमुना के प्रदूषण में 80 प्रतिशत योगदान दिल्ली का है। सरकारों ने यमुना की शुद्धता के लिए धन आवंटन में कोई कमी नहीं की है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के अनुसार, इस दो प्रतिशत हिस्से के शुद्धीकरण के लिए 8000 से 9000 करोड़ रुपये खर्च करने का अनुमान है। वर्ष 2023 की पहली छमाही में, केंद्र सरकार ने दिल्ली जल बोर्ड को यमुना की सफाई के लिए लगभग 1200 करोड़ रुपये दिए, जिसमें नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत 1000 करोड़ रुपये और यमुना एक्शन प्लान-3 के तहत 200 करोड़ रुपये शामिल हैं। जल शक्ति मंत्रालय ने 11 परियोजनाओं के लिए दिल्ली सरकार को 2361.08 करोड़ रुपये दिए हैं, जिनका उपयोग गंदे जल के शोध के लिए एसटीपी के निर्माण में होगा। नमामि गंगे योजना के तहत भी 4290 करोड़ रुपये की स्वीकृति मिली, जिससे यमुना के गंदे जल को शुद्ध करने के लिए 23 परियोजनाएं बनाई जाएंगी, जिनमें से 12 दिल्ली में होंगी। इन सभी प्रयासों के बावजूद, यमुना की स्थिति में सुधार की आवश्यकता है।
यमुना के लिए आवश्यक एसटीपी निर्माण में दिल्ली सरकार की प्रतिबद्धता की कमी स्पष्ट है। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कई बार साफ यमुना का वादा किया, लेकिन परिणाम असंतोषजनक हैं। सारा दोष केंद्र सरकार पर डालते हैं। राजनीतिक दलों—आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस—में विवेकशील नेताओं की कमी नहीं है। अगर ये दल मिलकर सभी 23 एसटीपी का संचालन और निर्माण अपने जिम्मे लें, तो समस्या का समाधान संभव है। चालू एसटीपी की स्थिति को देखने और उन्हें फिर से सक्रिय करने की आवश्यकता है। साथ ही, गैर-सरकारी संगठनों को भी यमुना की सफाई में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, जैसे कि सामूहिक संकल्प लेना और कचरे के निस्तारण में सहयोग करना।
यमुना की गंदगी के पीछे तीन प्रमुख कारण स्पष्ट हैं। पहला, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दिल्ली में उत्पन्न गंदे जल का पूर्ण शोधन न किया जाना, जिससे यह सीधे यमुना में गिराया जाता है। यदि एसटीपी का निर्माण कर इस गंदे जल का सही तरीके से शोधन किया जाए, तो यमुना को प्रदूषण से बचाया जा सकता है। दूसरा, दिल्ली में फैक्टरियों की मौजूदगी, विशेषकर वे जो कपड़ों पर रंग चढ़ाने और रसायनों का उत्पादन करती हैं। इन फैक्टरियों से खतरनाक रसायनों को बिना शोधन के यमुना में गिराना, प्रदूषण का एक और बड़ा कारण है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए आवश्यक है कि प्रभावी नीतियों और मैकेनिज्म का विकास किया जाए।