विनम्रता से पात्रता
घड़े के ऊपर रखी हुई कटोरी ने घड़े से कहा, ‘तुम तो बड़े उदार हो। जो भी तुम्हारे पास आता है, उसे तुम भर दिया करते हो।’ कटोरी ने कहा, ‘मैं तो सदैव तुम्हारे साथ ही रहती हूं, तब भी तुम मुझे खाली रखते हो।’ घड़े ने कहा, ‘इसमें मेरा कोई दोष नहीं, तुम प्यासी हो, तुम खाली हो, तुम अतृप्त हो। यह तो तुम्हारी ही सोच का परिणाम है, तुम मेरे साथ रहती जरूर हो, लेकिन हर समय मेरे सिर पर चढ़ी रहती हो। तुम भी अगर नीचे उतरो, अपना अभिमान त्यागो, अपने अंदर पात्रता उत्पन्न करो और झुको, तो मैं तुम्हें भी भर दूंगा; लेकिन जब तक तुम अभिमान और अहंकार से मेरे सिर पर चढ़ी रहोगी, तब तक मैं तुम्हें कैसे भर सकता हूं।’ ज्यों ही कटोरी घड़े के सिर से उतरती है, उसके सामने झुकती है, वह स्वयं ही भर जाती है। जब कटोरी विनम्र हो गई, उसने पात्रता हासिल कर ली और भर गई।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार