जहरीला भूजल
हमारे नीति-नियंता लगातार आ रहे उन विभिन्न संकेतों और सर्वेक्षणों को नजरअंदाज करते रहे हैं, जो बताते रहे हैं कि पंजाब में भूजल लगातार जहरीला होता जा रहा है। यह जानते हुए भी कि भूजल में जहरीली धातुओं और प्रदूषकों की उपस्थिति खतरनाक स्तर तक जा पहुंची है। निस्संदेह, इस बाबत किसी प्रमाणिक जांच में बेहद कम प्रगति देखी गई है। दरअसल, पंजाब कई दशकों से इस संकट से लगातार पीड़ित है। लेकिन एक हालिया चौंकाने वाली रिपोर्ट बताती है कि पंजाब के भूजल में नाइट्रेट, लौह अयस्क, आर्सेनिक, क्रोमियम, मैंगनीज, निकल, कैडमियम, सीसा और यूरेनियम की खतरनाक उपस्थिति की पुष्टि हुई है। दरअसल, पंजाब में व्यावसायिक कृषि के क्रम में लगातार उत्पादन बढ़ाने के मकसद से जिस बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग हुआ है, उसका खमियाजा पंजाब के आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। दरअसल, देश की खाद्य शृंखला को सुनिश्चित करने के क्रम में हरित क्रांति में पंजाब ने जो योगदान दिया, उसकी कीमत किसानों और आम नागरिकों को चुकानी पड़ रही है। ये रासायनिक पदार्थ हमारे पेयजल व खाद्य पदार्थों में मिलकर गंभीर रोगों के वाहक बन रहे हैं। लेकिन पंजाब के इस महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद उसके पानी के संकट का समाधान तलाशने की कोई गंभीर पहल होती नजर नहीं आती। जिसका नतीजा यह हुआ कि प्रदूषित पानी की चपेट में आकर लोग कैंसर व अन्य गंभीर रोगों के शिकार बन रहे हैं। दरअसल, इन घातक रासायनिक पदार्थों के हमारे खान-पान में प्रवेश करने से उच्च स्तरीय अवसाद और तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियों का भी जन्म होता है। पेयजल व हमारे खाद्य पदार्थों में मैग्नीशियम व सोडियम की अधिकता से उपजे जानलेवा रोग जीवन पर संकट उत्पन्न कर सकते हैं। इसी तरह सीसा, निकल, यूरेनियम व मैंगनीज से दूषित पानी के उपयोग से कैंसर समेत कई अन्य गंभीर रोगों का खतरा बढ़ जाता है। लगातार गहराते इस संकट को नीति-नियंताओं को गंभीरता से लेना चाहिए।
दरअसल, हमारे राजनेताओं की प्राथमिकताओं में आम आदमी के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे शामिल ही नहीं रहे हैं। भूजल को जहरीला बनाने वाली फैक्ट्रियों व डिस्टिलरियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं होती क्योंकि वे राजनीतिक दलों की आय के स्रोत भी रहे हैं। विडंबना देखिये कि भूजल में अनुपचारित अपशिष्ट डालने पर जीरा डिस्टिलरी के खिलाफ ग्रामीण पिछले दो साल से आंदोलन कर रहे हैं। जो बताता है कि जनता से जुड़े गंभीर सरोकारों को भी सत्ताधीश नजरअंदाज करते हैं। दो साल से चला आ रहा आंदोलन बताता है कि जनता हालात बदलने के लिये प्रतिबद्ध है, लेकिन शासन-प्रशासन की उदासीनता समस्या के समाधान की राह नहीं दिखाती। बीते वर्ष पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने डिस्टिलरी को बंद करने की बात कही थी और इस बाबत एक रिपोर्ट भी मांगी थी। बताते हैं कि रिपोर्ट में भूजल में जहरीले प्रदूषण की पुष्टि भी हुई थी। दरअसल, आंदोलनकारी इस डिस्टिलरी को स्थायी रूप से बंद करने की मांग कर रहे हैं। हालांकि, इस बीच सरकार की तरफ से भी समस्या के निदान के लिये कुछ कदम उठाये गए हैं। इन उपायों के अंतर्गत उचित उर्वरकों का उपयोग तथा जैविक खेती के बारे में शिक्षित करने के लिये ’मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ योजना का क्रियान्वयन भी शामिल है। वहीं दूसरी ओर केंद्रीय और पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। इस दिशा में एक ईमानदार पहल की सख्त जरूरत है, जो नागरिकों के जीवन की रक्षा में सहायक बने। निस्संदेह, देश के जल शक्ति मंत्रालय को जल गुणवत्ता की निगरानी और सुधार को प्राथमिकता देनी चाहिए। वहीं दूसरी ओर किसानों को प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे हानिकारक रसायनों पर निर्भरता को कम करें। इसके स्थान पर परंपरागत प्रथाओं को अपनाएं ताकि उनका और आम लोगों का जीवन सुरक्षित रह सके। उन्हें फसल विविधीकरण अपनाने पर अतिरिक्त आय का आश्वासन दिया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो हम नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ ही करेंगे। हमारी लापरवाही एक महत्वपूर्ण जीवन संसाधन को एक जहर के स्रोत में तब्दील कर देगी।