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रूढ़ मुहावरों से बाहर निकल झांकती कविता

06:25 AM Aug 04, 2024 IST
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सुभाष रस्तोगी
बोधिसत्व हमारे समय के एक महत्वपूर्ण कवि हैं। उनके अब तक चार कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनके नाम है ‘सिर्फ कवि नहीं’, ‘हम जो नदियों का संगम है’, ‘दुखतंत्र’ और ‘खत्म नहीं होती बात’। उनकी कविताओं के भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हैं। बोधिसत्व साहित्य और सिनेमा दोनों में दखल रखते हैं तथा ‘शिखर’ और ‘धर्म’ जैसी फिल्‌मों के लिए वे जाने जाते हैं।
बोधिसत्व के सद्य: प्रकाशित पांचवें कविता-संग्रह ‘अयोध्या में काल पुरुष’ में कुल 11 गाथा कविताएं संगृहीत हैं। निराला जी भी अपनी आख्यानपरक कविताओं का एक संग्रह ‘गाथा’ नाम से निकालना चाहते थे। लेकिन वह हो नहीं पाया, जिसका उल्लेख जानकी बल्लभ शास्त्री के नाम लिखे उनके 11.6.1938 के पत्र में है। इस प्रकार गाथा कविताओं का संबंध सीधे निराला से जुड़ता है।
बोधिसत्व के इस संग्रह ‌में संगृहीत ‘जरासंध का अखाड़ा’, ‘अजातशत्रु और बिम्बिसार’, ‘सम्राट अशोक का नरक’ ‘श्रीकृष्ण की अन्त्येष्टि’ व अयोध्या में काल पुरुष’ में भारतीय संस्कृति के आराध्य पुराण पुरुष राम और कृष्ण हों, महात्मा बुद्ध हों अथवा इतिहास के महानायक प्रियदर्शी सम्राट अशाेक हों, अजातशत्रु और बिम्बिसार हों, सभी अपनी महाकाव्यात्मक भव्यता और दिव्यता खोकर अवश दिखाई देते हैं, इन सबकी भव्यता और दिव्यता पर सवालिया निशान लगाने का आखिर कवि का मंतव्य क्या है?
‘भारत दुर्दशा’, ‘हिरणी का अयोध्या की रानी कौसल्या से विनय-पत्र’, ‘दारा शिकोह का पुस्तकालय और औरंगजेब के आंसू’ तथा ‘संस्कृत के कवि और फारसी बोलने वाली लड़की का प्रेम’ बोधिसत्व के इस पांचवें कविता संग्रह ‘अयोध्या में काल पुरुष’ की कुछ ऐसी मानीखेज गाथा कविताएं हैं जिनमें संवेदना की एक ऐसी सदानीरा नदी प्रवहमान है जो पाठक के मन को भीतर से गहरे में बांधती है। इनमें भी ‘भारत-दुर्दशा’ अपनी कहन व कथ्य में एक अद‍्भुत कविता है, जिसका आख्यान न पुराण से लिया गया है न इतिहास से। इसमें आज के भारत का ऐसा धधकता हुआ कटुतम यथार्थ है जिसमें व्यंग्य की धार पाठक की अंतश्चेतना को भीतर से उधेड़कर रख देती है। देखें यह पंक्तियां जो काबिलेगौर हैं— ‘रास्ते में देश मिला/ भागता दौड़ता चला जा रहा था/ मैंने पूछा कहां जा रहे हो/ बोला उधर ही जिधर सब ले जा रहे हैं हांककर।’
समग्रत: बोधिसत्व ने अपनी इन गाथा कविताओं की मार्फत ‘समकालीन कविता के बहुत से रूढ़ मुहावरों से बाहर निकलने की कोशिश की है’ और एक सीमा में यह गाथा कविताएं हमारे समकाल के विद्रूप का आईना भी बनकर सामने आई हैं।

पुस्तक : अयोध्या में काल पुरुष लेखक : बोधिसत्व प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 160 मूल्य : रु. 250.

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