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खुशियों की खेती का काव्य

12:31 PM Aug 07, 2022 IST

रितु गुप्ता

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पंजाबी साहित्य के लब्धप्रतिष्ठित कवि डॉ. सुदर्शन गासो की कुल 79 कविताओं के गुलदस्ता रूपी काव्य-संग्रह ‘मैंने समुद्र से कहा’ भले ही हिंदी में उनका प्रथम काव्य संग्रह है किंतु उनकी काव्यात्मक यात्रा दीर्घकालीन है। उनकी कविताओं में जीवन की सच्चाई को रेखांकित करने की सृजनात्मकता है। मनुष्य की जीवन यात्रा के अनेक आयामों से उभरे सवालों को टटोलती इन कविताओं को पढ़ना किसी सुखानुभूति से कम नहीं है। इनकी कविताएं कृत्रिम कारीगरी से दूर हैं। अपनी कविताओं के माध्यम से वे सीधे संवाद करते हैं। संग्रह की पहली कविता है ‘छोटी चीजें’। समय और समाज की धड़कनें इस कविता के माध्यम से स्पंदित होती हैं :-

‘छोटी चीजों में भी

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होता है बड़प्पन

चिड़िया अपने छोटे

पंखों से जीत लेती है

नीला अंबर…’

जीवन की कोमलता और विडंबनाएं उनकी कविताओं में अभिव्यक्त होती हैं। वहीं कवि अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में जो अलख जगाना चाहता है, डॉ. गासो का काव्य संग्रह उसमें सफल है। ‘बेटी’ कविता की इन पंक्तियों में बेटी के निश्छल प्रेम, समर्पण और अस्तित्व को सहज रूप में प्रस्तुत किया है –

‘दुनिया के दु:ख हरती बेटी

काम सुबह से करती बेटी

दुनिया ऐसी कब होनी थी

अगर धरा पर कदम ना धरती बेटी…’

जीवन के सत्य को गंभीरता से स्वीकार करते हुए उनके भीतर का कवि पलायनवादी नहीं है। वे अपनी कविताओं में धैर्य और संयम को सामने रखते हैं। उनकी कविता ‘विजय के रंग’ में यह देखा जा सकता है। संग्रह की कविताओं में मानवीय अनुभवों के साथ-साथ मानव और प्राकृतिक दुनिया के अलग-अलग पड़ावों के मार्मिक अनुभवों-प्रसंगों को उभारने वाले बिंब हैं।

‘पवन के पल्लू में

बांध देना कुछ खुशियां

कुछ सुख की बातें

ताकि पहुंच जाएं

किसी दूसरे शहर, गांव

उन भाइयों और बहनों के पास जो जूझ रहे हैं…।’

संकलन की सभी कविताएं विविध भावों को समाविष्ट कर अलग अंदाज बयां करती हैं। डाॅ. गासो की कविताएं हमारी सत्यचित्त वेदना में अपना स्वर मिलाती हैं तथा किसी भी चीख को अनसुना नहीं करतीं। संग्रह की कविता ‘खुशियों की खेती’ में सादगी और सरसता से दु:खों को दूर करने का प्रयास किया है, बानगी देखिए –

‘दुखों की खेती के बारे में मत सोचना

दुखों की खेती किसी एक जगह नहीं होती

अगर होती भी है तो उसका असर पड़ता है

पूरी दुनिया पर…

आओ शुरू करें केवल खुशियों की खेती…।’

नई विचार शैली के साथ इस काव्य संग्रह ‘मैंने समुद्र से कहा’ की प्रत्येक कविता का अर्थ पाठकों को सहजता से समझ आ जाता है। कविताएं संयमित और अनुशासित हैं। संग्रह रोचक एवं पठनीय है। उन्होंने यह संग्रह जिंदगी को खूबसूरत बनाने में लगे हुए लोगों को समर्पित किया है।

पुस्तक : मैंने समुद्र से कहा कवि : डॉ. सुदर्शन गासो प्रकाशक : चेतना प्रकाशन, लुधियाना पृष्ठ : 88 मूल्य : रु. 150.

आध्यात्मिक चिंतन के साथ आधुनिक दृष्टि

रश्मि बजाज

समसामयिक हिंदी कविता में वरिष्ठ कवि-कहानीकार विष्णु सक्सेना द्वारा रचित उनका द्वितीय प्रबंध-काव्य ‘सुनो राधिका सुनो’ अपने दिव्य प्रेम-जगत एवं आध्यात्मिक जीवन-दर्शन के साथ एक अलग प्रकार की कृति बनकर समक्ष आता है।

अद्वैत से द्वैत में प्रयाण किए शरीरधारी राधा-कृष्ण के सात्विक प्रेम को शब्दबद्ध करने वाला यह खंडकाव्य कवि को निधिवन में हुए उनके ‘अलौकिक अनुभव’ की परिणति है। आत्मयोगी एवं कर्मयोगी श्रीकृष्ण और उनकी चिर- संगिनी राधा का संवाद यह कृति कृष्ण के प्रेमावतार रूप का आख्यान करती है, आत्मिक युगलप्रेम का चारु चित्रण करती है एवं कवि की आदर्श प्रेम की धारणा को भी स्थापित करती है। खंड के उत्तरार्ध में ‘कामयुग’ बनते कलियुग पर भी कवि की चिंता एवं चिंतन प्रकट होते हैं।

कृष्ण-राधा के प्रेम के माध्यम से कवि ने सात्विक प्रेम का संपूर्ण दर्शन इस खंडकाव्य में प्रस्तुत किया है। विशुद्ध प्रेम विरह-वेदना में तप कर और निखर कर उभरता है। मात्र समर्पण का इच्छुक यह प्रेम नि:स्वार्थ एवं निरापेक्षी है। इस निरहंकारी प्रेम में ‘मैं’ का भाव समाप्त हो जाता है, कोई बंधन, कोई कामना नहीं है, मानव के परमानंद स्वरूप पर पड़े हर लौकिक आवरण को यह प्रेम हटा डालता है और शेष बचता है ‘सत चित्त स्वरूप परमानंद’। यही प्रेम मनुष्य को ‘वसुधैवकुटुंबकम’ की उदात्त भावना की अनुभूति भी कराता है। प्रेम का यही उन्नयनकारी स्वरूप ही मानव के लिए शुभकर है। भूलोक में राधा-कृष्ण के प्रेमरास व प्रेमलीला का यही उद्देश्य है :-

‘प्रेम के सात्विक रूप की अनुभूति करवाने/ जनमानस को प्रेम सिखाने/ हम आए हैं इहलोक।’

आख्यान ‌को आधुनिक दृष्टि देते हुए कवि ने कृष्ण-राधा प्रेम को समतामूलक प्रेम संबंध के रूप में चित्रित किया है। कृति की संवादात्मक संबोधन-शैली तथा मुक्तछंद कथ्य की संप्रेषणीयता को और अधिक बढ़ाते हैं। भारतीय चिंतन परंपरा एवं संस्कृति के अनुरूप शिव-शक्ति एवं अर्द्धनारीश्वरत्व के मूल भाव वाले, प्रेम को आधिदैविक एवं आधिभौतिक स्तर पर प्रस्तुत करने वाले किंतु आधुनिक चिंतन से संपन्न इस खंडकाव्य का साहित्य-जगत में स्वागत होगा।

कृति को सम्मान

वरिष्ठ कवि व कहानीकार विष्णु सक्सेना को उ.प्र. हिंदी संस्थान लखनऊ से 2021 के लिए उनके दूसरे खंड काव्य ‘सुनो राधिके सुनो’ के लिए ‘जय शंकर प्रसाद’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। सक्सेना पेशे से इंजीनियर हैं व सन‍् 2000 में एचएमटी पिंजौर से डिप्टी चीफ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त होकर साहित्य सेवा में लगे हुए हैं। इससे पहले उनका काव्य संग्रह ‘बैंजनी हवाओं में’ तथा खंड काव्य ‘अक्षर हो तुम’ राज्य श्रेष्ठ कृति के रूप में हरियाणा साहित्य अकादमी से पुरस्कृत हो चुके हैं। उनके अब तक 4 काव्य संग्रह बैंजनी हवाओं में, गुलाब कारखानों में बनते हैं, सिहरन सांसों की व धूप में बैठी लड़की, दो कहानी संग्रह बड़े भाई व वापसी, एक लघु कथा संग्रह एक कतरा सच तथा दो खंड काव्य प्रकाशित हो चुके हैं। तथा 45 संकलनों में उनकी कविताएं, कहानियां व समीक्षाएं प्रकाशित हो चुकी हैं।

पुस्तक : सुनो राधिके सुनो (काव्य- संग्रह) कवि : विष्णु सक्सेना प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली पृष्ठ : 122 मूल्य : रु.250.

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काव्यखुशियों