कविताएं
भारत डोगरा
गंगा की लहरें
इन लहरों को ध्यान से सुनो
यह गढ़वाली भी बोलती हैं और
बंगाली भी हिंदी और उर्दू भी
भोजपुरी के साथ कई
आदिवासी भाषायें
यह लहरें बोलती हैं
जिनमें मिल गई हैं
मछलियों और पक्षियों की बोलियां
इनमें सुबह का उल्लास है तो
शाम की उदासी भी है
दोपहर का उजाला है तो
रात के रहस्य भी हैं
इनमें एक
सभ्यता की कहानी है
उसके उत्थान और उत्कर्ष की
पतन और अपयश की
इसमें कहानियां हैं
पर्वत के पीड़ की
घाटी के नीर की
दियारा के दर्द की
डेल्टा के दुख की
कई कहानियां हैं
दिनोंदिन बढ़ रहा
अत्याचार-अनाचार के
शिकार लोगों का
जीव-जन्तुओं का
इन लहरों में प्रलाप है
हां, इनमें मां का आशीर्वाद है
सदा रहा, सदा रहेगा
पर इसके ऊपर उठता आज
मां का विलाप है
इसे सुनो, इसे समझो,
यह सभ्यता की जननी के
हृदय का आघात है।
अंधेरे रास्ते
रंग-बिरंगी है रोशन है सजा रखी है,
ये नुमायश आपने अच्छी लगा रखी है।
दिल बहलाने से बात बनती
तो यहीं रुक जाते,
पर अंदाज है कि इसमें कोई
उम्मीद नहीं रखी है।
जो रास्ते अभी अंधेरों में घिरे लिपटे हैं,
उनमें कुछ दीप जलाने की
साध बचा रखी है।
इन राहों पर साथ मिलकर
चलें हम सब,
जिन्होंने इन्हें रोशन करने की
ठान रखी है।