कविताएं
दिविक रमेश
एकांत
एक प्रकाश-यात्रा
एकांत ही है जहां
न किसी का भय चलता है
और न धर-पकड़ की
षड्यंत्री चाल ही।
एकांत ही जहां
मिलती है राह
एकांत प्रकाश की।
एकांत ही जहां
नहीं बैठ पाता आदमी
हाथ पर हाथ धर
अकेला।
विरासत का संबल
कभी-कभी जब चिंता से
बेहद व्याकुल हो जाता हूं
आती पुरखों की याद
गुलामी में ही जिनकी जाने कितनी
मर-खप गईं पीढ़ियां
पैदा होने से मरने तक जो
यह कभी जान ही नहीं सके
आजादी कैसी होती है!
जब भी मुझको दु:ख-कष्ट
सहनसीमा के बाहर लगते हैं
ऋषि-मुनि आते हैं याद
तपस्यामय ही जिनका जीवन था
जो स्वेच्छा से अति की हद तक
काया को अपनी स्वयं तपाया करते थे।
संबल मिलता है मुझको अपने पुरखों से
तप-त्याग, धैर्य या सहनशीलता
की समृद्ध विरासत हो जिसकी इतनी
दु:ख-कष्टों से वह कैसे घबरा सकता है
चिंता से वह कैसे व्याकुल हो सकता है!
प्रतिदान
कुछ लोग मिले थे जीवन में
नि:स्वार्थ जिन्होंने मुझसे प्रेम अथाह किया
करके समाज की सेवा मैं अनवरत
अक्षय वह कर्ज उतारा करता हूं।
कविता लिखना जब शुरू किया
सोचा था जीवन-यापन का जरिया होगी
मन को समृद्ध बनाया पर इसने इतना
अब स्वार्थ साधने में लज्जा सी होती है।
जिन दु:ख-तकलीफों की खातिर
ईश्वर को कोसा करता था
उन कष्टों ने ही मांज-मांज कर
इतना मुझको चमकाया
अब स्वेच्छा से दु:ख सह ईश्वर से
माफी मांगा करता हूं।
हेमधर शर्मा