कविताएं
प्रकाश मनु
जूड़े में खिला फूल
कल रात के जूड़े में एक फूल खिला
रात काली थी सुरमई और प्यारी
रात गंधवती थी
जंगली वनस्पतियों की पुकार-सी
आदिम और अर्थवान
कल रात के जूड़े में एक फूल खिला।
कल रात के जूड़े में खिला एक तारा
उजला नन्ही हीरकनी-सा तारा
और चांद मुस्कुराया धीरे से
और तमाम-तमाम नन्हे तारे
उजले मोतियों की माला पहने
उसके इर्द-गिर्द नाचते थे
हंसी की मीठी फुहार लिए।
गुनगुनाती रागिनियों-सी
गुनगुनाती थी हवा
खिलखिलाती थी हवा
पल में इधर तो पल में
उधर जाती थी हवा
भीगती रही चांदनी की चादर रात भर
जड़ी ओस के मोतियों से...
कल रात के जूड़े में एक फूल खिला।
कल रात चांद हंसा
एक प्यारी-सी कंटीली हंसी,
आसमान उजला था
एक सुरमई उजाला फैला
धरती से आसमान तक
चिहुंका बनपांखी कोई पत्तों के झुरमुट में
कल रात के जूड़े में फिर एक फूल खिला...
हां, रात के जूड़े में एक फूल खिला!
नेताजी
बहुत दिनों के बाद हमारे नेताजी!
करते हमको याद हमारे नेताजी!
गली-गली में वादों का फिर बुसा हुआ
लेकर चले प्रसाद हमारे नेताजी!
जो भी पूंछ हिलाता है इनके आगे
देते उसको दाद, हमारे नेताजी!
नये-नये मुद्दों को अक्सर देते हैं
तरह-तरह से खाद, हमारे नेताजी!
ऐसे, वैसे, चाहे जैसे कुर्सी का
चखना चाहें स्वाद, हमारे नेताजी!
जन-गण-मन को रोग सैकड़ों लगे रहें
रहें सदा आबाद हमारे नेताजी!
सुनो भई साधो!
ज़ोर समूचा लगा रहे हैं नेताजी!
वोट-वोट बड़बड़ा रहे हैं नेताजी!
गन्दी गलियों में, हर गंदे टोले में,
भर-भर आश्वासन, ले जाते झोले में;
जिनकी बदबू से भौंहंें चढ़ जाती थीं
उन्हें गले से लगा रहे हैं नेताजी!
चमचों के संग तरह-तरह का गणित बने,
साथ में चमचे घूमें देखो तने-तने;
जाति-धर्म की सबको देकर लॉलीपोप
बच्चों जैसा मना रहे हैं नेताजी!
खूब हवाई किले बनाये जाते हैं,
रोज़ अनगिनत जाल बिछाए जाते हैं;
जहां-जहां पर मूंछें ऊंची होती थीं
पूंछ वहां पर हिला रहे हैं नेताजी!
- अशोक 'अंजुम'