कविताएं
हेमधर शर्मा
विचारों की फसल
‘मैं नहीं छोड़ जाऊंगा
धन-संपदा विरासत में कोई
बीमा भी कोई नहीं
कि मरने पर तुमको प्रतिदान मिले
बच्चो, निराश पर मत होना
ये लेखन, जो
मिट्टी के लगता मोल अभी
अनमोल किसी दिन
साबित होने वाला है
आने वाली पीढ़ियों को
यही राह दिखाने वाला है।’
वह लेखक था आश्वस्त स्वयं,
बच्चों को भी
आश्वस्ति यही देने की
कोशिश करता था
निर्धन होकर भी मन से था समृद्ध
नहीं चिंता भविष्य की अपनी या
बच्चों की कोई करता था
बोये थे उसने बीज विचारों के जो,
था निश्चिंत
बड़े होकर फल से वे पेड़ सभी
लद जायेंगे
दुनिया को वैचारिकता से
समृद्ध खूब कर जायेंगे।
जाने पर कैसी थी जमीन,
या बीज बांझ थे!
फसल नहीं लहलहा सकी,
समृद्ध न मन हो सके
नहीं सह पाया सदमा,
लेखक वह मर गया
समझ ही पाया नहीं अंत तक,
गलती कहां हुई
बंजर तो बीज न हरगिज थे,
क्यों नहीं उगे?
सदियां बीतीं, वह पीढ़ी मर-खप गई,
नई कोंपल फूटी
लहलहा उठी दुनिया में
फसल विचारों की
बोये थे बीज विचारों के
जो लेखक ने वे फलीभूत अब हुए
नहीं दुनिया में वह सशरीर
देख पाया यह सब
पर कहते हैं बारिश की बूंदों,
या कोयल की कूकों में
उस लेखक की आवाज सुनाई देती है!
नहीं लिख पाता कविता
पवन भी मनभावन बहती
पक्षी भी शोर मचाते हैं
मेघ भी नभ में छाते हैं
रिमझिम गीत गाते
इतना कुछ होने पर
नहीं लिख पाता कविता...
प्रेम भी जीवन में
सूरज भी आंगन आता
चंद्रमा भी खिड़की से झांकता
मन ही मन मुस्कुराता
इतना कुछ होने पर
नहीं लिख पाता कविता
जाता हूं बाग-बगीचे
सरिता को निहारता
झरनों को देख रोमांचित हो जाता
इतना कुछ होने पर
नहीं लिख पाता कविता
किससे उपाय पूछूं
भावों में डूबकर
कैसे फिर कविता लिखूं
न कोई दुकान मिली
न कहीं पर बात जमी
इतना कुछ होने पर
नहीं लिख पाता कविता
पुरुषोत्तम व्यास