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कविताएं

05:58 AM Nov 19, 2023 IST
कविताएं
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अरुण आदित्य

आश्रय

एक ठूंठ के नीचे दो पल के लिए रुके वे
फूल-पत्तों से लदकर झूमने लगा ठूंठ
अरसे से सूखी नदी के तट पर बैठे ही थे
कि लहरें उछल-उछलकर मचाने लगीं शोर
सदियों पुराने एक खंडहर में शरण ली
और उस वीराने में गूंजने लगे मंगलगान
भटक जाने के लिए वे रेगिस्तान में भागे
पर अपने पैरों के पीछे छोड़ते गए
हरी-हरी दूब के निशान

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थक-हारकर वे एक अंधेरी सुरंग में घुस गए
और हजारों सूर्यों की रोशनी से नहा उठी सुरंग
प्रेम एक चमत्कार है या तपस्या
पर अब उनके लिए एक समस्या है
कि एक गांव बन चुकी इस दुनिया में
कहां और कैसे छुपाएं अपना प्रेम?

धरती के रफूगर

(एक)
कामगार—
सीमेंट और रेत के छंद से
एक कविता रचता है
उधड़े हुए पलस्तर की बड़ी महीन
तुरपाई करता है
और कहीं यदि सूत भर भी
कमी रह जाए... तो
उसे फिर... फिर
एक सधी लय देता है।

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(दो)
विशाल गगनचुम्बी
अट्टालिकाओं के मुख्य द्वार पर
लगी होती है
उसके मालिक की नामपट्टिका
लिखा क्यों नहीं होता
कामगार का नाम
मैं सोचता हूं

(तीन)
दुनियाभर के
कामगारो सुनो
भले ही इतिहास के किसी पन्ने पर
हाशिए पर भी
तुम्हारा नाम दर्ज न हो
लेकिन तुम होते हो—
अपने समय के पहरुआ
तुम ही हो—
जो कंक्रीट की एक समानांतर
दुनिया रचते हो।
सुभाष रस्तोगी

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