भटकन में रास्ता दिखाती कविताएं
सरस्वती रमेश
जि़ंदगी के रास्ते बड़े टेढ़े-मेढ़े होते हैं। इन रास्तों पर चलते हुए भटक जाना मनुष्य का सहज स्वभाव है। रास्तों से भटककर कभी तो वह स्वयं ही वापस लौट आता है और कभी कोई पुकार उसे वापस खींच लाती है। कुछ यही भटकन और लौटने के आग्रह से भरी हुई हैं ‘नाज़ुक लम्हे’ की कविताएं, जिसे रचा है कवयित्री आशमा कौल ने।
घर, रिश्ते, प्यार और हमारा अपना मन हमारी ज़िंदगी, का अहम हिस्सा होता है। असल में हमारी पूरी दुनिया ही इनके इर्द-गिर्द बुनी हुई होती है। आशमा कौल ने जीवन के इन अहम हिस्सों से उपजे महीन भावों को अपनी कविताओं में पिरोया है। उनकी कविताएं कई अहम प्रश्न उठाती हैं तो कई सटीक उत्तर भी देती हैं।
‘घर वही है/ जहां खुद की/ खुद से पहचान हो।’
संग्रह की कविताएं आकार में छोटी और भाव में बड़ी हैं। खासकर प्रेम पर लिखी हुई कविताएं पाठकों को आवेग से भर देती हैं। कम शब्दों में ज्यादा कह देना कविता को अधिक रोचक बनाने का काम करता है। कवयित्री ने इसी रोचकता को दिखाया है प्रेम कविताओं में :-
‘रूह भीग जाती है/ जिस्म भीग जाता है/ मुलाकातें गीली हो जाती हैं/ बातें नशीली हो जाती हैं/ जब इश्के सैलाब आता है।’
इसके अलावा, ज़िंदगी, सागर, प्रकृति, दर्द और मुस्कान, विषय पर भी कविताएं लिखी गई हैं। कुछ कविताएं प्रकृति के रहस्य खोलती हैं तो कुछ जीवनदर्शन बताती हैं। कमियों और अभावों के बीच भी ज़िंदगी जीने का प्रोत्साहन देती हैं कविताएं। सुंदरता को अपनाने और कुरूपता को छोड़ते जाने का संदेश है यह संग्रह।