समकाल का आईना दिखाती कविताएं
सुभाष रस्तोगी
दिविक रमेश वरिष्ठ कवि बाल-साहित्यकार, अनुवादक एवं चिन्तक के रूप में जाने-माने हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के सर्वोच्च ‘बाल साहित्य भारती सम्मान’ सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से वे अलंकृत हैं। उनके अब तक 13 कविता-संग्रह एवं बाल साहित्य की लगभता 50 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं वहीं संस्मरण, अनुवाद, आलोचना और संपादन की भी अनेक पुस्तकें उनके रचनात्मक खाते में हमें उपलब्ध हैं। एक काव्य-नाटक ‘खण्ड-खण्ड अग्नि’ भी प्रकाशित हुआ है।
दिविक रमेश मुख्यत: कवि के रूप में जाने जाते हैं और कविता लिखते हुए उन्हें पचास वर्ष से ऊपर हो गए हैं। इनके तीन चयनित रचनाओं के संग्रह भी आ चुके हैं। उनका पहला कविता-संग्रह ‘रास्ते के बीच’ वर्ष 1977 में प्रकाशित हुआ था जिसके लिए कविताओं का चयन हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि शमशेर बहादुर सिंह ने किया था।
दिविक रमेश के सद्यः प्रकाशित कविता-संग्राह ‘समकाल की आवाज़’ में कुल 69 कविताएं संगृहीत हैं। समकाल की आवाज़ उसी आवाज़ को कहा जा सकता है, जो अपने समय और समाज को सही रूप में प्रतिबिंबित करने के साथ-साथ उसे आगे की ओर ले जाती हो। निस्संदेह, कवि के इस कविता-संग्रह की कविताएं ‘समकाल की आवाज़’ का आईना बनकर सामने आई हैं। कवि का मानना है कि लक्षित या अलक्षित दोनों रूपों में एक ईमानदार कविता, भले ही वह श्रेष्ठ न भी हो, मनुष्यता को बचाती है, सदैव उसकी रक्षक की भूमिका में होती है... कविता वहां भी राह तलाश लेती है जहां वह दिखती नहीं है।
कवि की एक कविता ‘बहुत कुछ है अभी’ की ये पंक्तियां काबिलेगौर हैं, ‘अभी मरा नहीं है पानी/ हिल जाता है जो भीतर तक/ सुनते ही आग/ अभी शेष है बेचैनी बीज में।’
दिविक रमेश की एक कविता जो पाठक के मन को गहरे में उद्वेलित करती है-‘मां के पंख नहीं होते/ कुतर देते हैं उन्हें/ होते ही पैदा/ खुद उसी के बच्चे/ मां के पंख नहीं होते।’
कवि का मानना है कि आदमी पृथ्वी पर खाली हाथ नहीं अाता और न ही खाली हाथ लौटता है। जानें कवि से ही, ‘लाता है/ संभावनाओं से लदी लताएं/ आता है उम्मीदों के गट्ठर उठाए/ लिए कितनी ही कल्याणकारी योजनाएं/ पृथ्वी से/ जाते हैं साथ/ हमारे जज्बात/ वे आंखों में बसे समंदर हमारे/ बनकर आप?/ एक उत्सव का समापन भर होता है/ आदमी का जाना।’
समग्रतः दिविक रमेश के सद्यः प्रकाशित कविता-संग्रह ‘समकाल की आवाज़’ की कविताएं अपने समवेत पाठ में अपने समय और समाज के समकाल का एक व्यापक परिदृश्य उपस्थित करती हैं।
पुस्तक : समकाल की आवाज़ लेखक : दिविक रमेश प्रकाशक : न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 126 मूल्य : रु. 225.