मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

मनुष्यता के चिन्हों को रेखांकित करती कविताएं

07:04 AM Mar 03, 2024 IST

सुभाष रस्तोगी

Advertisement

समकालीन कविता के अत्यन्त महत्वपूर्ण कवि मंगलेश डबराल के छह कविता संग्रह ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज भी एक जगह है’ व ‘स्मृति एक दूसरा समय है’, तीन गद्य-संग्रह एक बार आयोबा, ‘लेखक की रोटी’, ‘कवि का अकेलापन’ और साक्षात्कारों का एक संकलन हमें उपलब्ध है। उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘कुमार विकल स्मृति सम्मान’ एवं गजानन माधव मुक्तिबोध, राष्ट्रीय साहित्य सम्मान’ आदि से नवाजा जा चुका है।
मंगलेश डबराल का सद्य: प्रकाशित कविता संग्रह ‘पानी का पत्थर’ उनके निधन के बाद प्रकाशित हुआ है जिसमें कुल 43 कविताएं संगृहीत हैं और इसकी प्रकाश्य प्रति तैयार संगीता डबराल ने की है। इस सद्य: प्रकाशित कविता-संग्रह ‘पानी का पत्थर’ की कविताएं अपने समवेत पाठ में स्मृतियों का एक बेहद आत्मीय कोलाज प्रस्तुत करती है। यह कविताएं पहाड़, पत्थ्ार और पानी की स्मृतियों को टटोलती हैं और शहरी जीवन के मैदानी बीहड़ में मनुष्यता के चिन्हों को रेखांकित करती है। मंगलेश डबराल अंत तक अपनी कविताओं का संशोधन-संपादन करते रहे और यह उनके कवि-मन की निरंतर उमड़न-घुमड़न का साक्ष्य बनकर सामने आई हैं। लेकिन कविताएं अपने मौजूदा स्वरूप में भी संपूर्ण हैं। यथा ‘पानी और घास’ शीर्षक कविता में कवि का अंतिम परिवर्तन संपादन 2020 का है और 9 दिसम्बर, 2020 को उनका निधन हुआ। हो सकता है यह कविता अभी और विस्तार पाती, लेकिन यह चित्र भी स्वयं में संपूर्ण है- ‘घास के लिए पानी जितना तरल हो अच्छा है/ पानी को घास की हरी मांसलता बहुत प्रिय है/ रात उनका स्थायी पता है/ पानी और घास एक शाश्वत प्रेमकथा के पात्र हैं।’ यहां ‘घास की हरी मांसलता’ का बिंब अपने व्यंजनागत अर्थ में स्वयं में अद्भुत तो है ही, मौलिक भी है। पानी पत्थर को किस हद तक मुलायम बना देता है। यह कवि से ही जानें : ‘पानी इस पत्थर को मुलायम बना चुका है/ इस हद तक कि इसे भी पानी कह सकते हैं/ गौर से देखें तो यह बहता हुआ दिखाई देगा।’ यह नि:संदेह कवि ने अपनी कलम से तूलिका का काम लिया है।
‘चाची का भूत’, ‘कायर स्त्रियों से मुझे चिढ़ है’, ‘प्रेमियो!’, ‘शीर्षकहीन पांच’, ‘शीर्षकहीन छह’, ‘घर के बारे में दो कविताएं’, ‘पिता के लिए एक कविता’, ‘पूर्वज’, ‘तानाशाह इतिहास को पसंद नहीं करता’ और लोग मंगलेश डबराल के इस सद्य: प्रकाशित कविता संग्रह ‘पानी का पत्थर’ की कुछ ऐसी मानीखेज कविताएं हैं जिनकी अनुगूंज पाठक की चेतना में देर तक गूंजती रहती है। कवि का मानना है कि ‘यह समय ही ऐसा है/ सारी खबरें बाजार से होकर गुजरती हैं/ और बाजार हमेशा हादसों को छिपाने की कोशिश करता है। वह चीजों को ढांप देता है चमकीली पन्नियों से/ दुकानों में सजे हुए दुखों से।’ ‘तानाशाह इतिहास को पसन्द नहीं करता’ कविता में हमारे समय की खतरनाक खबरें दर्ज हैं। मंगलेश डबराल के इस सद्य: प्रकाशित कविता संग्रह ‘पानी का पत्थर’ में स्मृतियां हैं जो कवि के दायें-बाएं चलती हैं। स्मृतियों के कोलाज रचती यह कविताएं उनकी राजनीतिक-सामाजिक पक्षधरता को भी रेखांकित करती हैं। इन कविताओं से कवि की रचना प्रक्रिया का भी पता चलता है।
पुस्तक : पानी का पत्थर लेखक : मंगलेश डबराल प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 103 मूल्य : रु. 199.

Advertisement
Advertisement