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मानवीय चेतना के आवेग से भरी कविताएं

11:59 AM Jul 03, 2022 IST
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सरस्वती रमेश

कविताएं प्रतिरोध का सशक्त माध्यम रही हैं। कभी समाज की सोई हुई चेतना जगाने के लिए तो कभी शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जब तब कविताएं लिखी जाती रही हैं। ‘उपशीर्षक’ मानवीय चेतना के आवेग से भरी कविताओं का संग्रह है, जिसे रचा है कुमार अम्बुज ने।

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कुमार अम्बुज की कविताओं का वितान विस्तृत है। कविताओं में विषय की विविधता है। अम्बुज की कविताओं में सभ्यताओं का रुदन है, परम्पराओं की मृत्यु का शोक है। जीवन के संघर्षों से उपजी पीड़ा कवि को गहरे तक कुरेदती है। अपनी मार्मिकता के कारण कविता पाठक के हृदय तक पहुंचती है। पिता पर लिखी एक कविता में वो कहते हैं :-

‘…इस जीवन में

इतनी उलझनें, इतनी बारिश, इतनी लू

इतना ट्रैफिक और इतना धुआं है कि एक सुबह

या किसी शाम वे अचानक गायब हो जाएंगे।’

कवि की चिंता में व्यक्ति नहीं, समाज है मगर समाज की खोखली और दिखावटी नैतिकता पर वह तंज करने से नहीं चूकते।

‘धर्मालयों में बजती रहती है घंटियां, चीखते हैं लाउडस्पीकर

गुंबदों पर चढ़ती चली जाती है ऐश्वर्य की नैतिकता।’

संग्रह में छोटी से बड़ी कविताओं का संकलन है। कविताएं जितनी छोटी हैं उतनी मारक भी। कवि ने अपनी कविताओं की रचना यथार्थ के धरातल पर की है। वे किसी कल्पनालोक में नहीं जीते। जीवन की कड़वी सच्चाई स्वीकार करते हैं :-

‘जैसे वस्तुओं को, जानवरों को नहीं पता होता

कि वे कहां ले जाए जाते हैं

वैसे इन लोगों को भी नहीं पता

वे किस सफर में धकेले जा रहे।’

तमाम संघर्षों के बावजूद कवि आशाओं के दीप निरंतर जलाते हुए आगे बढ़ते हैं।

पुस्तक : उपशीर्षक कवि : कुमार अम्बुज प्रकाशन : राधाकृष्ण पेपरबैक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 175.

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Tags :
कविताएंचेतनामानवीय
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